Sunday, November 8, 2015

पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)


गणेश द्वारा दिया गया वरदान 

                    

                    शमी और मन्दार हिन्दू मतावलम्बियों के पवित्र एवं पूजनीय वृक्ष हैं। गणपति और शिव की आराधना तो इनके साथ ही पूर्ण माने जाते हैं। इसका कारण शमी और मन्दार को विघ्नहर्ता गणेश से प्राप्त एक वरदान है जिसकी चर्चा गणेश पुराण के क्रीड़ाकांड में वर्णित कथा में की गई है। कथा इस प्रकार है :-

ऋषि औरव की कथा नारद मुनि के मुख से 

Mandaar flower / मन्दार फूल 

                    

                         एक बार नारद मुनि तीनों लोकों में विचरते हुए स्वर्गलोक में देवराज इंद्र के पास पहुँचे। इंद्र ने उनका यथोचित स्वागत किया। वार्तालाप के क्रम में इंद्र ने मुनि से औरव ऋषि की कथा सुनाने का आग्रह किया। नारदमुनि ने सहर्ष इस प्रकार कथा सुनाई, "एक समय में मालवा में औरव नाम के ऐसे विद्वान ब्राह्मण हुए जिनका तेज वेदों के ज्ञान से सूर्य के सामान प्रदीप्त था एवं उन्हें देवताओं के सामान शक्ति प्राप्त थी। बहुत दिनों बाद उनकी पत्नी ने एक अत्यंत सुन्दर पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम शमी रखा गया। ऋषि शमी को बहुत ही स्नेह दिया करते थे। जब वह सात वर्ष की हुई तो उन्होंने शमी का विवाह धौम्य ऋषि के पुत्र मन्दार से किया। मन्दार शौनक ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहा था, अतः विवाह के पश्चात शमी को उसके माता पिता के पास छोड़कर शिक्षा पूरी करने पुनः शौनक के आश्रम चला गया। जब मन्दार और शमी पूर्ण यौवन को प्राप्त हुए तब मन्दार अपने ससुराल गया और शमी को विदा कराकर पुनः शौनक के आश्रम की ओर वापस चला। रास्ते में एक महान तपस्वी ऋषि भृशुण्डी का आश्रम पड़ता था जो गणपति के अनन्य भक्त थे। अपनी तपस्या से उन्होंने भगवान गणेश को प्रसन्न किया था जिन्होंने ऋषि को यह वरदान दिया था की गणेश की तरह ऋषि भृशुण्डी भी अपने कपाल से सूंढ़ निकाल सकते हैं। जब शमी और मन्दार भुशुण्डी के आश्रम के पास पहुंचे तो उन्हें गणेश की तरह सूंढ़ निकाले देख कर दोनों को हँसी आ गई। इस पर ऋषि बहुत क्रुद्ध हो गए और कुपित हो कर उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि - तुम दोनों वृक्ष बन जाओ, ऐसा वृक्ष कि जिसके पास पशु -पक्षी भी न आएं।ऐसा ही हुआ। मंदार ऐसा वृक्ष बना जिसकी पत्तियां कोई पशु नहीं खाता और शमी ऐसा वृक्ष बनी जिसपर काँटों की अधिकता के कारण कोई पक्षी शरण नहीं लेता। कई दिनों पश्चात भी जब शमी और मंदार ऋषि शौनक के आश्रम नहीं पहुंचे तब ऋषि उनकी खोज में निकले। पहले वे शमी के पिता औरव के घर गए। वहाँ उन्हें न पा कर ऋषीद्वय खोजते हुए भृशुण्डी के आश्रम पर आये जहाँ उन्हें सारे वृत्तांत की जानकारी हुई। उन्होंने भृशुण्डी ऋषि से दोनों को शापमुक्त करने का अनुरोध किया किन्तु भृशुण्डी ने इसमें अपनी असमर्थता व्यक्त की। तब उन्होंने भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या प्रारम्भ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर गणपति दस हाथ ऊँचे सिंह पर आरूढ़ हो प्रकट हुए।  गणपति ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। उन्होंने शमी और मन्दार को शापमुक्त कर पुनः पूर्वावस्था में लाने का वरदान माँगा। किन्तु गणेश अपने प्रिय भक्त भृशुण्डी की अवहेलना नहीं करना चाहते थे अतः यह वरदान देने से मना कर दिया परन्तु बदले में यह वरदान दिया कि ये दोनों वृक्ष तीनो लोकों में पूजनीय होंगे और शिव तथा स्वयं उनकी पूजा बिना इनकी उपस्थिति में पूर्ण नहीं माने जायेंगे ।यह कहकर गणपति अंतर्ध्यान हो गए। ऋषि शौनक तो अपने घर लौट गए परन्तु ऋषि औरव ने अपना शरीर वहीँ त्याग दिया। उनका तेज अग्नि रूप में शमी पेड़ के तने में स्थिर हुआ।" इस प्रकार नारद ऋषि ने इंद्र को औरव की कथा सुनाई। 

                       इसलिए आज भी शिव और गणेश के मंदिरों में हवन से पहले शमी की लकड़ियों को घिसकर अग्नि प्रज्जलित की  जाती है और उसमे आहूतियां डाली जाती हैँ। बिना मंदार पुष्प और शमी पत्रों के शिव एवं गणपति की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।  

पवित्र शमी वृक्ष का प्रसंग महाभारत में 

                     शमी वृक्ष का प्रसंग महाभारत में भी आता है।  जब पांडवों ने बारह वर्ष के बनवास के बाद एक वर्ष का अज्ञातवास प्रारम्भ किया तो उन्होंने अपने भेष और नाम बदले थे तथा अपने अपने अस्त्र शस्त्र विराटनगर के बाहार श्मशान में एक बड़े शमी वृक्ष के अंदर ही छिपाया था।

भगवन राम के पूर्वज राजा रघु और शमी वृक्ष 

                   त्रेता काल में भी शमी वृक्ष का एक प्रसंग है। वरतन्तु ऋषि का शिष्य उनसे किसी बात पर नाराज हुआ और आश्रम छोड़कर जाने की इच्छा प्रकट की। गुरु ने शिष्य से गुरु -दक्षिणा में चौदह कोटि स्वर्ण मुद्राएं मांगी। शिष्य अयोध्या के राजा रघु के पास गया और उनसे यह राशि मांगी। राजा रघु ने उस समय एक बड़ा यज्ञ किया था जिसमे अपार दान करने के कारण उनका खजाना पूरा खाली हो गया था। उन्होंने उस ब्राह्मण से कुछ समय माँगा और यह धन प्राप्त करने के लिए आश्विन शुक्ल दशमी की तिथि को इंद्र की राजधानी अमरावती पर चढ़ाई करने का निश्चय किया। नारद मुनि द्वारा यह सूचना इंद्र को प्राप्त हुई। इंद्र राजा रघु को नाराज नहीं करना चाहते थे। अतः उन्होंने अपने खजांची कुबेर को बुला कर अयोध्या पर धन वर्षा करने का आदेश दिया। नियत तिथि से पहले की रात को कुबेर ने ऐसा ही किया। धन वर्षा एक बड़े शमी वृक्ष के उपर हुई। जब राजा रघु ने यह जाना तो ब्राह्मण को सारा धन लेने के लिए बुलाया। परन्तु उसने अपनी आवश्यकतानुसार चौदह कोटि स्वर्ण मुद्राएं ही लीं और गुरु - दक्षिणा चुकाई। दान के उद्देश्य से प्राप्त धन की बची अपार राशि रघु ने स्वयं रखना अपने आत्मसम्मान के विपरीत माना और यह घोषणा की कि जिसे भी आवश्यकता हो यह ले जाये। वह शुभ तिथि दसहरा थी। इसी परम्परा को रखते हुए रामचन्द्र ने भी इसी तिथि को शमी की पूजा कर लंका पर आक्रमण के लिए चुना। आज भी किसी विशेष कार्य पर निकलने से पहले लोग विशेषकर राजपूत शमी की पूजा या शीश नवाते हैं।    

                       शमी वृक्ष का वैज्ञानिक नाम mimosa cineraria एवं  prosopis cineraria है। आज यह हर हिन्दू के घर में एक जाना माना वृक्ष है। लोग इसे मुख्य गेट के पास लगते हैं। देवताओं को शमी पत्र अर्पित करने का मन्त्र मेरे ब्लॉग "शमी पत्र (The holi shami leaves)" में दिया है। मन्दार का लोकप्रिय नाम आक या अकबन है। इसके बारे में मेरे ब्लॉग "आक (aak) के फूल - The Crown Flower" में पढ़ा जा सकता है।

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Thursday, July 30, 2015

Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

What should be the daily routine of prayers of a Shiva Devotee? {हिंदी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें} 

Shiva (Pic source Google)

          For a Shiva devotee, Shiva is the supreme God. He is the almighty with all the three types of natures (
Sata, raja, Tama -सत, रज,तम) in him. He is the supreme truth, He is the savior and blissful that is why He is the best, the most beautiful. This fact is reflected in this Sanskrit phrase - Satyam Shivam Sundaram (सत्यम शिवम् सुंदरम). Shiva is omnipresent. Nobody can say from what time He is in being or till what time will he be present because he is present from even before the universe or time came into existence, which means He has no beginning and he will remain even after the existence of the universe or time ends, means He has no end. शिव परब्रह्म परमात्मा हैं, उनका न आदि है न अंत है। Every living thing in this universe has taken birth from his parents, but this is not the case with Shiva. He is from himself, so He is also called 'Swayambhu' (स्वयंभू) or 'Shambhu' (शंभू ). On the one hand, He is present in the universe as "Nirguna" (without having qualities or attributes) for which Yogis meditate to bring him into imagination (dhyana). On the other hand, He is present in folk tales and Hindu mythology as a family man with His wife Parvati, children Ganesha and Kartikeya, and the vehicle and gatekeeper Nandi, the bull. Together they are called "Panch-Mahadev" (पंच महादेव). 

            Shivalinga represents Shiva Himself. Some historians relate it to phallic worship but in fact, its round shape represents the universe. Shiva is also called "Ardhanarishwar" (अर्धनारीश्वर) because his half part is Goddess "Parvati", the strength of Shiva. So He along with "Parvati" is also called "Shiva-Shakti". As this universe can not be without power/energy, Shiva too can not be separated from Shakti. Even in the Shivalinga the Goddess is present at the base of it towards the north. So when Shiva is worshiped, the Goddess too be worshiped and vice versa. In short, one can sing "Stuti" of Goddess as "Sapta Shloki Durga" which I will write in the coming blogs. 

            

    Sometimes Shiva is worshiped as a god with five heads, each head having a separate name. And Shiva Gayetri for this form is as follows, 

ॐ पञ्चवक्त्राणि विद्महे महादेवाय धीमहि 

तन्नो          रुद्रः         प्रचोदयात  । ।

       There have been endless prayers, stories, descriptions, and methods of worship of Shiva, but we are here to discuss daily Shiva worship which should be short and satisfying and then one can perform his worldly duty. But whatever worship is done should be with full devotion and belief in God. I have mentioned this in my earlier blog - What-lord-shiva-likes?

When the Shiva devotee gets up from bed in the morning

          The first thing that should be done after getting up from bed in the morning is remembering God and saying "Namaskar" to them. There is a very lovely "Stotra" called "Shiva Pratah Smaran Stotram" that should be recited. I have written it in Roman and Sanskrit with the meaning in my blog Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण)!  (link). Again I am giving the "Stotrain Sanskrit. 

           Next is at the time when one takes a bath and goes for the worship. Light a lamp (दीप). After the body purification with water, the 'dhyana' of Shiva should be done with a prayer. There are different "Dhyana prayers" for different "Swaroopa" of God. I am giving here the "Dhyana prayer" for "Mahamaheshwar" Shiva. 


 A potful of cold water along with "Bail leaves"( बिल्व - पत्र ), "Doob" grass tips (दूर्वा दल), 'Chandan' paste (चन्दन ) and flowers of Aak and Dhatura be offered to Shiva-linga. At least water and "Bail leaves" ( बिल्व - पत्र ) must be offered. Next is the time for "Mantra Jaap". The "Akshamala" should be worshiped with the "Ain hrin akshmalikayai Namah" mantra (it is given in this link). The "Shiva Panchakshari Mantra" should be repeated (जप) at least five times and if time allows it should be 108 times.

"ॐ नमः  शिवाय "

 Next should be the eleven times 'Jaap'  of the following mantra:- 

"ॐ अघोरेभ्यSथ घोरेभ्य घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः । 

सर्वशर्वेभ्यो        नमस्तेस्तु           रूद्ररुपेभ्यः ।।"

 (This Aghor mantra is considered to be one of the greatest "Mantra", as described by Pushpadant in Shiva_Mahimna_stotra.)  

           Now comes the time for worship of Lord Shiva and what other worship will be more appropriate than Shiva_Manas_Puja. I have written it in Roman and Devanagari script with meaning in my earlier blog which link is in the previous sentence. Again I am giving the Sanskrit shlokas in jpeg format below:
Shiva Manas Puja in pic form
           The "Akshmalika" should be again worshiped and at least eleven times the "Japa" of "Mahamrityujaya Mantra" should be done. It is as follows:-

"ॐ हौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्  मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ "

               Now in the last, before "Aarti" , following prayer should be said.

वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगतकारणं,

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनामपतिं

वन्दे सूर्य शशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुंदप्रियं

वन्दे भक्त जनाश्रियंच वरदं वन्दे शिवं शंकरं  

In the last we should ask Shiva for forgiveness as follows,

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेSहर्निशम् मया

दसोSयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। 

आवाहनं न जानामि   न जानामि विसर्जनं

पूजां चैव न जानामि   क्षम्यतां परमेश्वर ।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं   भक्तिहीनं   सुरेश्वर

यत्पूजितं  मया  देव  परिपूर्णं   तदस्तुमे।  

               Nowadays "Aarti" (आरती) song is very popular in the last of the worship. These are written in Hindi. In ancient times "Aarti" was simply shown to God with a lamp (दीप). If one likes, then the most popular "Aarti" of Shiva "Jai Shiv Omkara.." may be sung. And finally...

पापोSहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः

त्राहिमाम बाबा भोलेनाथ सर्वपाप हरोहरः।

          This short method of Shiva worship should be adopted by those devotees who have time constraints. At least In the holy month of "Sawan," this little worship must be done.

      Now comes the evening time when after "Dhoopa-Deepa" a short four-line "Stuti" may be recited as follows:--

नमस्तुंग शिरश्चुम्बि चन्द्र चामर चारवे

त्रैलोक्य नगरारम्भ मूलस्तम्भाय शम्भवे

चन्द्राननार्ध   देहाय   चन्द्रांशुशित  मूर्तये

चन्द्रार्कानल नेत्राय  चन्द्रार्ध शिरसे नमः।

            There is a famous "Stotra" of Shiva composed by "Rawana" called "Shiva_Tandava_Stotra" which is read in the evening time, but it is a long "Stotra" in difficult Sanskrit which everyone is not comfortable with. So if one can recite it, it should be read in the evening. Otherwise, some "bhajans" may be sung. After this evening's worship, again the above "क्षमा प्रार्थना" for forgiveness should be recited.
 
         For those who follow this "Daily Shiva Prayer", it takes not more than ten minutes when remembered (Say within a month). So make it a daily habit. Even if not possible at least follow it in the holy month of "Sawana" for the pleasure of Shiva.
||शिवार्पणम्||     

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Tuesday, June 23, 2015

Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

Worship of God Shiva in imagination & 'Dhyana'


 
In our daily lives, we see Hindus worship the Gods by offering different flowers, fruits, leaves, clothes, scents (सुगन्धि) etc. "Panchopachar" (पंचोपचार- Duly offering the God five things) and "Shodashopchar" (षोडशोपचार- Duly offering the God sixteen things) worships are performed. These are detailed worships and generally, require professional priests (पंडित) and money to purchase 'Puja' things and give donations (दान). But there is another way of worshiping God which neither requires money nor priests because this worship is done in the imagination. Since this whole universe may be imagination, so our great "Rishis" and "Munis" have truly given us this method of worship in the imagination and "Dhyana".This worship is called "Manas Puja" ie worship in mind. Its result or "Punya" is no less than physical worship. In "Manas Puja", keeping the eyes closed the things to be offered to God are imagined and prayed to be accepted by God. "Manas Puja" for different gods have been composed by the great "Rishis" and "Munis"

Shiva the "Supreme God" is popular in all societies of Hindus from general to tribal. The Great Guru the "Adi Sankaracharya" has composed a very popular "Manas Puja" of Shiva that is short and lovely. It is called "Shiva Manas Puja" (शिव मानस पूजा). Reciting this prayer with full devotion and imagination (मन लगा कर ध्यानपूर्वक) is equally rewarding. It is given below:--

ShivaManasPuja

Ratnaih Kalpitam Aasanam Himjalaih Snanam ch Divyambaram

Nana Ratna Vibhooshitam    Mrigmadamodankitam Chandanam

Jatichampakvilvapatra  Rachitam  Pushpam  ch  Dhoopam Tatha

Deepam Dev  Ddayanidhe  Ppashupate   Hritkalpitam  Grihyataam.


 Sauvarne  navratna  khand  rachite          paatre   ghritam   paayasam

Bhakshyam panchvidham payodadhiyutam rambha phalam panakam

Shakanamyutam     jalam        ruchikaram     karpur    khandojjwalam

Tambulam   mansa   maya   virachitam    bhaktya   prabho   sweekuru.


Chhatram chamaryoryugam vyajanakam chadarshakam nirmalam

Veena     bheri    mridang   kahalkala    geetam    ch    nrityam   tatha

Sashtangam     pranati     stutirbahuvidha    hyetat   samastam maya 

Sankalpen      samarpitam      tav    vibho    pujam    grihana  prabho. 


Aatma wam Girija matih   sahacharah pranah   shariram griham

Puja     te     vishayopbhograchana            nidra     samadhirsthitih

Sancharah     padyoh     pradakshinavidhih    stotrani   sarvagirau

Yadyat karma karomi tat tad akhilam Shambho tavaaraadhanam.


Karcharankritam   Vakkayajam   Karmajam  Wa

Shrawan Nayanjam Wa Manasam Waapraadham

Vihitamavihitam Wa Sarvametat   Kshamaswa

Jay  Jay  Karunabdhe         Srimahadev Shambho.

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Meaning

(O God! O Kind one! O Master of animals! Please accept these:- the throne made of jewels, the cold water bath, the divine cloth studded with different jewels, the sandalwood paste mixed with musk scent, the handful of jasmine-Champa flowers with bael leaves, incense and lamp- I have imagined them in my heart.

Full of devotion I have mentally made rice-milk pudding with clarified butter in a golden pot studded with new jewel pieces, five types of dishes made with milk and curd, bananas, sweet drinks, clean tasty water scented with many vegetation along with camphor, and betel leaves. O, God! Please accept these.

With my very determination, I offer you an umbrella, two crests(चँवर), a fan, a clean mirror, Veena(वीणा), Mrudang(मृदंग), playing instrument Dundubhi(दुन्दुभी), song and dance, prostrate(साष्टांग प्रणाम) and prayers in many ways. O, God! Please accept these.

O Shambho! You are my spirit, mother Parvati is my wisdom, your troop is my life(प्राण), my body is tour temple, my involvement in materialistic things is your worship, my sleep is the state of trance, my movement is your circum-ambulation and all my words are your prayers. Thus whatever karma I do is all your worship.

My sins through my hands, feet, speech, karma, hearing, seeing, or thinking - be they obvious or hidden- please forgive all of them, O sea of pity! O Mahadeva Shambho! Hail to You! Hail to You!)    

     

Shiva Manas Puja in Sanskrit is also written below:--

शिवमानसपूजा -Shiva Manas Puja

The last stanza "Karcharankritam ......" is a prayer for asking forgiveness to different types of sins from Shiva. This shloka is recited on the completion of any "Shiva Pujan" just like this shloka:--

पापोSहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः

त्राहिमाम बाबा भोलेनाथ सर्वपाप हरोहरः।

(Papoahan Papakarmahan Papatma Papasambhavah
Trahimam Baba Bholenath Sarva Paap Haroharah )

Bholenath in this shloka is replaceable by His particular name where worship is being performed. Example- Basukinath, Baidyanath, Somnath, Vishwanath, and so on.

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