Tuesday, February 18, 2020

महाशिवरात्रि - Mahashivaratri

महाशिवरात्रि पर भगवान् शिव का श्रृंगार
           महाशिवरात्रि - (Mahashivaratri) शिवभक्तों का महान पर्व है। जिनकी शिव में आस्था है वे इस पर्व को भक्तिभाव से मनाते हैं। शिवरात्रि तो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है जिसे मास शिवरात्रि व्रत बोलते हैं किन्तु हिन्दू पञ्चाङ्ग के फाल्गुन मास की कृष्ण त्रयोदशी को जो शिवरात्रि पड़ती है उसे महाशिवरात्रि व्रत कहते हैं। इस दिन का विशेष महत्त्व है क्योंकि माना जाता है कि इसी दिन भगवान् शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था। पुरुष और प्रकृति के सांकेतिक मिलन का यह पर्व विश्वकल्याण के लिए अतिमहत्वपूर्ण है। 
        
    कभी काश्मीर जिसे अब कश्मीर बोलते हैं शैव हिन्दू सम्प्रदाय का गढ़ था। वहाँ शिवरात्रि को हर - रात्रि बोलते थे, हर शिव को ही कहते हैं। हर-रात्रि का अपभ्रंश हररात्र, फिर हेरात हो गया।भारत के अलावा इस पर्व को नेपाल में भी धूम-धाम से मनाया जाता है।  
          शिव आदियोगी हैं, नटराज हैं, गुरु हैं, ब्रह्म हैं। महाशिवरात्रि हिन्दुओं के लिए जगत में अन्धकार और अज्ञान पर विजय का पर्व है। इस दिन को शिवभक्त भगवान शिव को याद कर, ध्यान-उपवास करते हुए और "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का जप करते हुए मनाते हैं। मन की शुद्धि और संयम का विशेष महत्त्व है। कुछ भक्त महाशिवरात्रि को रात्रि जागरण करते हैं और प्रायः मंदिर में जरूर जाते हैं। कुछ ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु भी जाते हैं। इस दिन शिवलिंग पर शिव के प्रिय वस्तुओं को अर्पण करते हुए अभिषेक भी किया जाता है। महाशिवरात्रि का पर्व इतना प्राचीन है कि कब से इसकी शुरुआत हुई यह नहीं कहा जा सकता।
   
       अधिकतर हिन्दू पर्व दिन में मनाये जाते हैं किन्तु महाशिवरात्रि त्रयोदशी और चतुर्दशी की रात्रि में मनाया जाता है। यह पर्व आध्यात्मिक उत्थान का व्रत है परन्तु अब यह पर्व उत्सव के रूप में भी मनाया जाने लगा है। रात्रि में झाँकियाँ निकली जाती हैं जिसमें शिव-पार्वती वर-वधू के रूप में आगे होते हैं। बाराती होते हैं -नंदी, देवगण, भूत, पिशाच, शिवगण, और डरावनी शक्ल के भेषधारी। सभी बाजे-गाजे के साथ नाचते चलते हैं। 
         अनेक पुराणों में भी महाशिवरात्रि का वर्णन मिलता है यथा लिंग-पुराण, स्कन्द पुराण, पद्म-पुराण। इनमें महाशिवरात्रि मनाने के सम्बन्ध में विविधता है। एक मत के अनुसार इस दिन भगवान शिव के द्वारा वह अलौकिक नृत्य किया जाता है जिसमें वे इस जगत की उत्पत्ति, पालन और अंत करते हैं। शिव से सम्बंधित मन्त्र, स्तोत्र, कथा का पाठ करते हुए भक्तजन इस नृत्य में साथ होते हैं और सर्वत्र शिव की उपस्थिति का आभास करते हैं। अन्य मत के अनुसार इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था और यह मत अधिक प्रचलित भी है। तीसरा मत कहता है कि यह वो विशेष दिन है जिस दिन भक्तजन भगवान शिव को शिव के प्रतीक यथा शिवलिंग, रुद्राक्ष आदि को अर्पण कर अपने पूर्व के पापों से मुक्त होते हैं और धर्मपथ पर चलते हुए शिवधाम को प्राप्त करते हैं।
    
     महाशिवरात्रि से नृत्य की परम्परा पुरातन समय से चली आ रही है। शिव नृत्य कला के भी आदिगुरु हैं इसलिए नटराज भी कहे जाते हैं। कई पुराने मंदिरों यथा खजुराहो, मोढेरा, कोणार्क और चिदंबरम में वार्षिक नृत्य महोत्सव आयोजित किये जाते हैं जहाँ विश्व के कोने कोने से कलाकार आकर अपनी नृत्यकला प्रदर्शित करते हैं। ये महोत्सव नृत्यांजलि के नाम से जाने जाते हैं अर्थात नृत्य द्वारा शिव की आराधना।      शिव स्तुति के लिए "शिवमानस पूजा", "शिवप्रातःस्मरणस्तोत्र", "शिव पंचाक्षरी स्तोत्र", "शिवषडक्षर स्तोत्र", "रुद्राष्टक" और "रूद्रष्टाध्यायी" का उपयोग किया जाता है। "शिवमहिम्नस्तोत्र" की तो अपनी विशेष महत्ता है। 
       भगवान शिव आशुतोष हैं अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले। अतः महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को बिल्वपत्र, भाँग, धतूरा, पञ्चामृत, अर्पित करते हुए स्तुति - पूजा करें और अभिषेक कर उन्हें प्रसन्न करें।
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