Saturday, March 6, 2021

भगवान शिव को क्या क्या अर्पित करें ? (हिंदी ब्लॉग)

     भगवान शिव आशुतोष हैं, थोड़े में भी प्रसन्न हो जाने वाले।  बस भाव होना चाहिए। किन्तु भक्तों का मन कहाँ मानता। वे चाहते हैं कि जहाँ तक हो सके शिवजी को उनकी प्रिय वस्तुएँ उनको अर्पित करें। बाबा भोलेनाथ को पूर्ण प्रसन्न करें ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो सके। 
शिव नटराज


       आइये जानें कि महादेव बाबा भोलेनाथ को क्या क्या प्रिय है:-

1. श्रद्धा और विश्वास - जैसा कि हम सब जानते हैं किसी भी पूजा में सबसे पहला और आवश्यक चीज है श्रद्धा और विश्वास। बिना इसके कैसी भी पूजा करें, कुछ भी अर्पण करें उसका बहुत महत्व नहीं है। शिव पूजन में भी सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा और विश्वास का होना। बाबा तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस के प्रारम्भ में माँ सरस्वती और श्रीगणेश की वंदना के बाद यही बात कही है। उन्होंने दूसरे संस्कृत के श्लोक में इस तरह लिखा है ,  

भावनीशंकरौ    वन्द्ये    श्रद्धा     विश्वास    रूपिणौ ,
याभ्याम्  विना  ना पश्यन्ति सिद्धा: स्वांतस्थमीश्वरम् । 
(मैं माता पार्वती और भगवान शंकर की वंदना करता हूँ जो श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक हैं। श्रद्धा और विश्वास के बिना सिद्ध पुरुष भी अपने अंतःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते)

   यह इतना महत्वपूर्ण है कि यदि श्रद्धा और विश्वास हो तो शिवजी का ध्यान मात्र करने पर वे प्रसन्न हो जाते हैं।


2. हिम-जल स्नान - भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान जगत के कल्याण के लिए था। इसके कारण उनके शरीर में भीषण गर्मी उत्पन्न हुई जिसे शांत करने के लिए लोगों ने उनपर शीतल जल डालना शुरू किया जिससे उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। तब से भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें हिम-जल स्नान कराया जाता है। कई श्रद्धालु तो प्रतिदिन कम से कम एक लोटा शीतल जल शिवलिंग पर जरूर अर्पित करते हैं जिसे जलाभिषेक कहते हैं।
      नारियल का जल भी शीतल होता है अतः सूखे नारियल को फोड़ कर उसका जल भी शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। शीतल जल का महत्व और भी बढ़ जाता है यदि वह गंगाजल हो। जब माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर आयी थी तो उनका वेग कम करने के लिए भगवान् शिव ने सबसे पहले उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था।
     गंगाजल अर्पण के बराबर ही महत्व है शिव पर "ध्रुव का फूल" अर्पित करने का। इसके बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - "ध्रुव का फूल".
     सावन का महीना भी शिव को प्रिय है क्योंकि झमझम वर्षा में शिव आनन्दित होते हैं। कहा जाता है कि सावन के महीने में ही पहली बार शिवलिंग प्रकट हुए थे। सोमवार का दिन भी शिव को पसंद है और यदि सोमवार सावन का हो तो फिर क्या कहने? सावन की सोमवारी तो शिव भक्तों की आराधना का विशेष दिन होता है।


3. त्रिपुण्ड और चन्दन -  त्रिपुंड तीन सामानांतर पड़ी रेखाएँ होती हैं जो कपाल पर लगायी जाती हैं। चन्दन के लेप को तीनों बीच वाली उँगलियों के सिरे पर लगा कर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाया जाता है। शिवभक्त अपने कपाल पर भी त्रिपुण्ड लगाते हैं।   
त्रिपुण्ड और चन्दन


4. बिल्व -पत्र - बिल्व पत्र अर्थात बेलपत्ते को कौन शिवभक्त नहीं जानता। इसके तीन पत्ते शिव के तीन नेत्रों (चंद्र, सूर्य और अग्नि), तीन गुणों (सत, रज और तम) और तीन आयुधों (त्रयायुधम) का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव पूजन में इसका बहुत महत्त्व है। माना जाता है कि बिल्व पत्र माता लक्ष्मी के हृदय से उत्पन्न हुआ और शिव को यह बहुत प्रिय है। शिव को अर्पित करने से यह तीन जन्मों के पापों का नाश करता है। बिल्व पत्र पर आठ श्लोकों का एक बड़ा सुन्दर अष्टक रचा गया है जिसे बिल्वाष्टक कहते हैं। इसके बारे में जो ऊपर बताया है वह इस अष्टक के प्रथम श्लोक में ही लिखा है। यह श्लोक निचे लिख रहा हूँ, इसे शिव पर बेलपत्र अर्पित करते समय मन्त्र के रूप में भी बोला जाता है।     

त्रिदलं  त्रिगुणाकारं  त्रिनेत्रं  च  त्रयायुधम् ।
त्रिजन्म पाप संहारम् बिल्वपत्रं शिवार्पणं ॥
     भगवान शिव को अर्पित किये जाने वाले बेलपत्र को कोमल, बिना दाग वाला, बिना फटा और बिना छेद वाला होना चाहिए। बेल का सिर्फ पत्ता ही नहीं बल्कि फल भी शिव को अर्पित किया जाता है। बिल्वपत्र के महत्त्व को जानने के लिए अंग्रेजी में इस ब्लॉग पर जाएँ - Bilvashtak. बेलपत्र के बारे  जानने के लिए हिंदी ब्लॉग - बिल्वपत्र (बेलपत्र) पर जायें।  

5. अर्क पुष्पम् - यह आक का फूल है जिसे अकबन, मदार या मंदार के नामों से भी जाना जाता है। यह फूल या इसके कली (बिना खिले फूल) की माला शिव को बहुत प्रिय है। यह फूल दो तरह का पाया जाता है -एक जो हल्का बैंगनी और सफ़ेद का मिश्रण होता है, दूसरा जो पूरा सफ़ेद होता है। सफ़ेद फूल को श्वेतार्क कहा जाता है इसका विशेष महत्त्व है। आक फूल के बारे में ज्यादा जानने के लिए इस लिंक पर जाएँ - आक के फूल 

अर्क पुष्प, आक या अकबन


6. धतूरा - भोंपू की तरह दिखने वाला यह फूल शिव को पसंद है। इसका पौधा स्वयं ही आसपास की जगहों में उगता है जिसे कम पानी  की आवश्यकता होती है। इसका फल गोल और ऊपर में नर्म काँटेदार होता है, इसके भीतर छोटे छोटे बीज भरे होते हैं जो जहरीला भी होता है। इसका फल भी शिव को अर्पित किया जाता है। धतूरा का फूल सफ़ेद रंग से लेकर हल्का गुलाबी, पीला या हल्का बैंगनी हो सकता है। धतूरे के बारे में विशेष जानकारी के लिए इस हिंदी ब्लॉग को पढ़ें - धतूरे का फूल


7. दूब/दूर्वा -  दूब जमीन पर फैलनेवाली एक आम घास है जिसे मवेशी बड़े चाव से खाते हैं। इस घास के अग्रभाग जिसमें तीन पत्तियाँ हों उन्हें तोड़कर गुच्छे में शिवजी पर अर्पित करते हैं जैसे गणेश जी पर करते हैं।शिवलिंग पर दूब के अर्पण से बुरे ग्रहों के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
दूब / दूर्वा


8. दूध - जिस प्रकार जलाभिषेक किया जाता है उसी तरह शिवलिङ्ग पर गाय के दूध की धारा डालकर जलाभिषेक किया जाता है। दुग्ध से अभिषेक के बाद जलाभिषेक अनिवार्य है। इससे प्रसन्न होकर महादेव संतान सुख देते हैं और अकालमृत्यु दूर कर लम्बा जीवन प्रदान करते हैं।विभिन्न वस्तुओं से शिवजी के अभिषेक के बारे में यहाँ पढ़ें - शिव-अभिषेक
बाबा बासुकीनाथ का दुग्धाभिषेक


9. भांग - यद्यपि भांग का सेवन समाज में अच्छा नहीं मन जाता किन्तु शिव को अर्पित करने का अर्थ है कि भक्त इस बुराई का त्याग कर रहा है। इससे शिव प्रसन्न होते हैं। जलाभिषेक के बाद भांग शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है, इसके बाद पुनः जलभिषेक करना होता है।                       

10. कनेर का फूल -  पीला कनेर का फूल शिव जी को पसंद है। प्रायः प्रत्येक शिव मंदिर के पास पीला कनेर का पेड़ लगाया जाता है। 

11. पञ्चामृत - पूजा में काम आनेवाली ये पाँच अमृत तुल्य द्रव हैं जिन्हें मिलकर पंचामृत बनाया जाता है - मधु, गुड़, गाय का दही, घी और दूध।पञ्चामृत से शिव अभिषेक करने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है ऐसी मान्यता है।  

12. पंचाक्षरी मन्त्र -  "ॐ नमः शिवाय" है पंचाक्षरी मन्त्र जिसमें ॐ प्रणवाक्षर है जो प्रत्येक मन्त्र से पहले लगाया जाता है। यह छोटा सा मन्त्र है किन्तु बहुत ही प्रभावशाली क्योंकि भगवन शिव इससे बहुत प्रसन्न होते हैं। शिव पूजा के समय कम से कम पांच या ग्यारह बार इस मन्त्र को अवश्य जपना चाहिए। 

         इनके अलावा मधु (शहद), पान, सुपाड़ी, कपूर, अपराजिता फूल, जूही फूल, चम्पक फूल, शिवलिंग फूल, पंचमुखी रुद्राक्ष, दही, घी, खीर, धूप, दीप, केला और नारियल भी शिव को अर्पित किया जाता है क्योंकि ये उन्हें पसंद हैं। शिव नटराज हैं, उन्हें गीत और नृत्य भी बहुत पसंद हैं। अतः कुछ भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए गीत, नृत्य और वाद्य भी उनकी सेवा में पेश करते हैं। यद्यपि कुछ लोग नारद के श्राप के कारण चम्पक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से मना करते हैं किन्तु आदिशंकराचार्य द्वारा रचित शिवमानस पूजनस्त्रोतम में स्पष्ट लिखा है,
"जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं  पुष्पं  धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्"
हाँ, एक फूल है केतकी जिसे कभी शिव को अर्पित नहीं करना चाहिए क्योंकि स्वयं भगवान शिव ने उसे श्राप दिया था।  
       शिव को कुछ अर्पण करने का एक अर्थ भी है कि उस चीज का त्याग करना विशेषकर भांग, धतूरा, कनेर, आक जैसे हानिकारक वस्तुओं के सन्दर्भ में। शिवलिंग पर चढ़ाये गए फल या मिष्टान्न को स्वयं उठा कर इसी कारण ग्रहण नहीं किया जाता (पंडितजी अगर दें तो अलग बात है), शिव को नैवेद्य शिवलिंग के सामने रख कर अर्पित किया जाता है। भांग, धतूरा, कनेर, आक जैसे कुछ चीजों को अर्पित करने का एक अर्थ और है कि शिव तुच्छ वस्तुओं से भी प्रसन्न हो जाते हैं जिसके कारण साधारण भक्त भी शिव की सेवा में बेझिझक आ सकते हैं।  
        कई लोगों को देखा है कि पूजा के बाद प्रणाम करने के लिए अपने सर को शिवलिङ्ग पर सटाते हैं जो सही नहीं है। हम अपना सर शिवलिंग पर अर्पित तो नहीं करते ना ? प्रणाम करने का सही तरीका है कि दोनों हाथों से शिवलिंग को स्पर्श करते हुए कपाल (Forehead) को धरती से स्पर्श कराएँ।        
          शिव पूजन में ऊपर वर्णित चीजें अर्पित की जा सकती हैं किन्तु जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि उनके प्रति सच्ची श्रद्धा, विश्वास और भक्तिभाव होना चाहिए।  
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