जय माँ भवानि |
स्तुति के बाद इसका अर्थ भी दिया गया है। यह अष्टक-स्तुति अर्थ सहित गीता प्रेस से साभार लिया गया है।
इस स्तुति को आप यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं जिसे अर्थ के ठीक नीचे एम्बेड किया गया है। लिंक यहाँ है।
भवान्यष्टकम्
(माँ भवानि की अष्टक-स्तुति)
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता |
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||1||
भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः |
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||2||
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् |
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||3||
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् |
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||4||
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः |
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||5||
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् |
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||6||
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये |
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||7||
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः|
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ||8||
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अर्थ : हे भवानि! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री,भृत्य, स्वामी, स्त्री, विद्या और वृत्ति - इनमें से कोई भी मेरा नहीं है , हे देवि ! अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।| 1||
मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दुखों से भयभीत हूँ; कामी, लोभी, मतवाला तथा संसार के घृणित बंधनों में बंधा हुआ हूँ, हे भवानि ! अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।| 2 ||
हे भवानि ! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तंत्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।| 3 ||
न मैं पुण्य जानता हूँ न तीर्थ, न मुक्ति का पता है न लय का। हे मातः ! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि ! अब केवल तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।| 4 ||
मैं कुकर्मी, बुरी संगती में रहनेवाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ, हे भवानि ! मुझ अधम की अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।|5 ||
मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता, हे शरण देने वाली भवानि ! अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।|6 ||
हे शरण्ये ! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के मध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानि ! अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।|7||
हे भवानि ! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यंत दुर्बल, दीं, गूँगा, विपदग्रस्त और नष्टप्राय हूँ, अब एकमात्र तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो।|8||
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