श्रीमद्भागवतमहापुराण ऐसा ग्रन्थ है जिसकी रचना करने के बाद महर्षि वेद व्यास को अत्यंत संतोष प्राप्त हुआ जबकि उसके पहले वे अनेक ग्रन्थ लिख चुके थे। यह पुराण काफी लोकप्रिय है एवं इसकी कथा (जिसे भागवत कथा के नाम से जाना जाता है) भारत ही नहीं बल्कि अब विदेशों में भी भक्तजन बड़े भक्ति भाव से सुनते हैं। भागवत-कथा बाँच कर कई कथा वाचक प्रसिद्ध हुए हैं। इसमें नवधा भक्ति का प्रसंग भक्त प्रह्लाद की कथा में आता है जो सतयुग के काल का है। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद के पिता थे और असुरों के राजा। हिरण्यकश्यप बहुत ही बलशाली और अहंकारी था किन्तु उसका सबसे बड़ा अवगुण था कि वह विष्णु का विरोधी था। चूँकि उसने तप से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु के लिए असंभव शर्तें पूरी होनी जरुरी थी। अर्थात एक प्रकार से उसने लगभग अमरत्व ही पा लिया था। इस कारण उसे किसी का भय न था और स्वयं को भगवान विष्णु से बड़ा ही समझता था। कोई भी उसके आगे विष्णु की प्रशंसा नहीं कर सकता था। किन्तु उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था क्योंकि जब वह काफी छोटा था तब एक दिन अपने पिता का स्नेह न पाकर दुखी था तो संयोग से देवऋषि नारदजी की नजर पड़ी। नारदजी ने प्रह्लाद को भगवान् विष्णु की महिमा बताई तथा उनकी भक्ति करने का उपदेश दिया। प्रह्लाद विष्णु भक्त बन गया। जब हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो वह नाराज हुआ और पुत्र को समझाया तथा उसे उन गुरुओं के पास शिक्षा लेने भेजा जो हिरण्यकश्यप को विष्णु जी से बड़ा बताते थे। जब शिक्षा की अवधि पूरी हुई तो गुरु उसे ले कर हिरण्यकश्यप के पास आये। प्रह्लाद को देखकर हिरण्यकश्यप का पुत्र के प्रति स्नेह जाग्रत हुआ तथा उसने प्रह्लाद को गोद में बिठा कर माथे को चूमा। बहुत स्नेह के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि गुरु से जो तुमने शिक्षा प्राप्त की, उनमें से कोई अच्छी बात हमें बताओ। तब जो भक्त प्रह्लाद ने बात बतायी वही नवधा भक्ति से सम्बंधित है। उसने कहा, पिताजी
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् |
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ||
अर्थात् विष्णु भगवान की भक्ति के नौ भेद हैं - भगवान के गुण-लीला-नाम आदि का श्रवण, उन्हीं का कीर्तन, उनके रूप नाम आदि का स्मरण, उनके चरणों की सेवा, पूजा-अर्चा, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन।
इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा।
क्रियते भगवत्यद्धा तन्मन्येSधीतमुत्तमम्।।
यदि भगवान के प्रति समर्पण के भाव से यह नौ प्रकार की भक्ति की जाय तो मैं उसी को उत्तम अध्ययन समझता हूँ।
भक्त प्रह्लाद के ये वचन सुनकर हिरण्यकश्यप आगबबूला हो गया और शिक्षा देने वाले गुरुओं को बुरा भला कहने लगा। किन्तु गुरुओं ने कहा कि ये सब उन्होंने नहीं सिखाया, ये तो इसकी जन्मजात बुद्धि है। तब उसने प्रह्लाद से ही पूछा कि किसने तुम्हे ये सब सिखाया। प्रह्लाद उसे विष्णु जी की महिमा सुनाता गया और उसका क्रोध बढ़ता गया।
ये कथा तो जगजाहिर है कि जब विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद को मारने उसका पिता उद्धत हुआ तो स्वयं भगवान विष्णु नृसिंह अवतार लेकर खम्भे से प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप के मृत्यु की सारी शर्तें पूरी करते हुए उसका अंत किया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
हमलोग यहाँ नवधा भक्ति की चर्चा कर रहे थे। भक्त प्रह्लाद द्वारा बताये गए नवधा भक्ति को हमलोग समझते हैं। ये भक्ति इस प्रकार हैं,
1. श्रवण - ईश्वर की शक्ति, कथा, लीला, महत्व, इत्यादि का अतृप्त मन से श्रद्धा भाव से निरंतर सुनना। इसके उदहारण हैं राजा परीक्षित।
2. कीर्तन - ईश्वर के नाम, चरित्र, गुण और पराक्रम का उत्साह और आनंद के साथ कीर्तन करना। इसके उदहारण हैं श्री शुकदेव जी।
3. स्मरण - ईश्वर की शक्ति, माहात्म्य और नाम का निरंतर अनन्य भाव से स्मरण करते रहना और उनमें रम जाना। भक्त प्रह्लाद इसके उदहारण हैं।
4. पाद सेवन - ईश्वर के चरणों में स्वयं को सौंप कर उनका आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सब कुछ समझना। माता लक्ष्मी इसका उदहारण हैं।
5. अर्चन - पवित्र सामग्रियों एवं पूर्ण भक्ति और श्रद्धा भाव से ईश्वर के चरणों में पूजा समर्पित करना। इसके उदहारण हैं पृथुराजा।
6. वंदन - ईश्वर की मूर्ती को अथवा उनके भक्तजनों, गुरु, आचार्य, संतजनों, ब्राह्मण, माता-पिता आदि को पूर्ण आदर और सत्कार के साथ पवित्र भाव से प्रणाम करना या सेवा करना। अक्रूरजी इसके उदहारण हैं।
7. दास्य - ईश्वर को अपना स्वामी और स्वयं को उनका दास समझकर पूर्ण श्रद्धा भाव से उनकी सेवा करना। उदहारण श्री हनुमान जी।
8. सख्य - ईश्वर को ही अपना परम मित्र मान कर उनको अपना सर्वस्व समर्पण करना तथा सच्चे भाव से अपने पाप और पुण्य को उनसे निवेदन करना। इसके उदहारण हैं अर्जुन।
9. आत्मनिवेदन - स्वयं को ईश्वर के चरणों में पूर्ण रूप से सदा के लिए समर्पित कर देना और अपनी कुछ भी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की परम और सर्वोत्तम अवस्था है। बलिराजा इसके उदहारण हैं।
इन नौ प्रकार की भक्ति में एक चीज सबसे महत्वपूर्ण है और वह है ईश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण का भाव होना। यदि इस भाव से आप मंदिर की सफाई का भी कार्य करते हैं तो वह भक्ति का ही एक प्रकार है।
अब हमलोग दूसरे धर्मग्रन्थ श्रीरामचरितमानस, जो तुलसीदासजी द्वारा रचित है, के अरण्य काण्ड में वर्णित नवधा भक्ति के बारे में जानें जो ऊपर की नवधा भक्ति से थोड़ा सा भिन्न है। सबसे पहले हमलोग इसका प्रसंग जानें।
सीता-हरण के पश्चात् जब श्री राम उन्हें ढूंढते हुए वन में भटक रहे थे तो वे शबरी जी के आश्रम में पहुंचे। शबरी जी एक सरल आदिवासी महिला थीं जिन्हें उनके गुरु ने बताया था कि एक दिन भगवान श्रीराम तुमसे मिलने अवश्य आयेंगे। उनको न मन्त्र आता था न जप-तप, उनके मन में श्रीराम के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति थी। गुरु के वचन में पूर्ण विश्वास कर वे युवावस्था से ही प्रतिदिन आश्रम की सफाई कर मीठे फल चुनकर लातीं और भगवान के आने की प्रतीक्षा करतीं। युवावस्था बीत गयी पर शबरीजी की भक्ति, श्रद्धा और विश्वास में कमी न आयी। आखिर एक दिन भगवान आ ही गए। शबरीजी के हर्ष का अंत न था। उन्होंने श्रीराम को रसीले और स्वादिष्ट कन्द, मूल और फल ला कर दिये। भगवान् ने बार -बार प्रशंसा कर उन्हें प्रेम सहित खाया। उन्हें देख कर शबरी जी का प्रेम अत्यंत बढ़ गया और वे हाथ जोड़ कर सामने खड़ी हो गयीं और बोली - "मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूँ? मैं नीच जाति की और अत्यंत मूढ़बुद्धि हूँ। हे पापनाशन ! अधम से भी अधम में भी मैं स्त्री और मंदबुद्धि हूँ।"
शबरी जी को प्रभु राम का दर्शन (फोटो गूगल से साभार) |
प्रभु बोले - हे भामिनि, मेरी बात सुन। मैं तो केवल एक भक्ति ही का सम्बन्ध मानता हूँ। जाति, पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुराई- इन सब के होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है, जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखायी पड़ता है।
{जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई।।
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।}
आगे श्रीराम जी ने शबरी जी को इस प्रकार नवधा भक्ति की शिक्षा दी जो सब के लिए अनुकरणीय है।
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा । दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।।
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।।
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई।।
सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें।सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।।
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई । तो कहुँ आजु सुलभ भई सोई।।
अर्थात - मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ। तू सावधान हो कर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग।
दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम।
तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़ कर मेरे गुण समूहों का गान करे।
मेरे (राम) मन्त्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास - यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है।
छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वाभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना।
सातवीं भक्ति है जगत भर को समभाव से मुझमे ओतप्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक कर के मानना।
आठवीं भक्ति है जो कुछ भी मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना।
नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का न होना।
इन नवों में से जिनके एक भी होती है वह स्त्री पुरुष जड़ चेतन कोई भी हो, हे भामिनि ! मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है वह गति तेरे लिये सुलभ हो गयी है।
और भगवान् श्री राम के वचन के अनुसार शबरी जी को वह परम गति प्राप्त हुई जिसके लिए बड़े बड़े ऋषि मुनि आकांक्षा रखते हैं। हम ईश्वर में आस्था रखने वाले भक्तजनों को प्रह्लाद जी और शबरी जी का आभारी होना चाहिए जिनकी कृपा और भक्ति से नवधा-भक्ति का ज्ञान सबके लिए सुलभ हुआ।
===<<<>>>===
अध्यात्म ब्लॉग के पोस्टों की सूची :--
43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology
42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं
41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"
40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri
39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि
38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath
37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)
36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक
34. श्री दुर्गा के बत्तीस नाम - भीषण विपत्ति और संकटों से बचानेवाला
32. माँ दुर्गा की देवीसूक्त से स्तुति करें -Praise Goddess Durga with Devi-Suktam!
31. शनि की पूजा -क्या करें क्या न करें। The worship of God Shani, What to do & what not!
30. संस्कृत सूक्तों के प्रारम्भ में शीर्षक का क्या अर्थ है ?
28. अक्षय तृतीया - Akshay Tritiya!
27. निर्वाण षट्कम, आत्म षट्कम
26. A Topic from Geeta :: गीता - ज्ञान, क्या कर्म फल ही ईश्वर देते हैं?
Shop online at -- AMAZON
Shop online at -- FLIPKART
24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय।
23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?
22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan
21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!
20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !
18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)
17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)
Shop online at -- AMAZON
Shop online at -- FLIPKART
15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)
14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)
13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)
12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना
11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)
10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !
09. जप कैसे करें ?
Shop online at -- AMAZON
Shop online at -- FLIPKART
07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!
05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?
04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!
03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !! {Listen it in only three minutes on YouTube}
02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?
01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....
Shop online at -- AMAZON
Shop online at -- FLIPKART
No comments:
Post a Comment