Friday, April 9, 2021

शीघ्र विवाह और मनचाहा वर प्राप्त करने का उपाय (रामचरितमानस में)

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        जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है कि यह उपाय युवतियों के लिए ही है। कई मानस के मर्मज्ञ कहते हैं कि मानस में वर्णित ये माता पार्वती की स्तुति शीघ्र विवाह और मनचाहा (शिव या राम जैसा) वर प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। जब श्री राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुर गए थे तो एक दिन सुबह की बेला में ऋषि की आज्ञा लेकर पूजा हेतु फूल तोड़ने दोनों भाई पुष्प-वाटिका में गये। संयोग से सीता जी, जिनके स्वयंवर की तैयारी में उनके पिता राजा जनक जी लगे थे, भी इसी उद्देश्य से वहां अपनी सहेलियों के साथ आयीं। पुष्प-वाटिका में श्रीराम और सीताजी ने पहली बार एक-दूसरे को देखा। देखते ही दोनों के हृदय में वे एक दूसरे को भा गये। बाबा तुलसीदास जी ने पुष्प-वाटिका के इस प्रसङ्ग का बहुत ही सरस वर्णन किया है। 

श्रीराम-जानकी
      इस अवसर के बाद सीता जी के मन में श्रीराम जी को ही वर रूप में पाने की कामना हुई। भगवती पार्वती ने कठिन तपस्या से मनचाहे वर शिवजी को पाया था और वे उनकी कुलदेवी भी थीं अतः माता पार्वती की पूजा और स्तुति से उन्हें प्रसन्न कर अपनी कामना पूर्ति करने का निश्चय सीताजी ने किया। पूजा के बाद जो पार्वती माता की स्तुति सीताजी ने किया वही स्तुति बाबा तुलसीदासजी की रचना श्रीरामचरितमानस से उद्धरित करते हुए नीचे लिख रहा हूँ। इसी स्तुति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने सीताजी को वरदान दिया कि तुम्हारे मन में जैसे वर की इच्छा है वैसा ही वर तुम्हें मिलेगा। और यह वरदान फलित भी हुआ। सीता-स्वयंवर में श्रीराम ने ही शिव-धनुष तोड़ने का लक्ष्य प्राप्त किया और दोनों ने एक दूसरे को पाया। 

   इस स्तुति को कुँवारी कन्याओं को प्रतिदिन गौरी पूजन में पढ़ना चाहिये। इससे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है ऐसा कई मानस मर्मज्ञ कहते हैं। 

भगवती पार्वती स्तुति

जय जय  गिरिबरराज किसोरी ।  जय महेस मुख चंद चकोरी।|

जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता।|

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ  बेदु नहिं जाना।|

भव भव बिभव पराभव करिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।|

पतिदेवता   सुतीय  महुँ     मातु  प्रथम  तव  रेख।

महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।|

सेवत  तोहि  सुलभ  फल चारी।  बरदायिनी पुरारि पिआरि।|

देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।|

मोर  मनोरथु  जानहु  नीकें। बसहु  सदा  उर पुर सबही कें।|

कीन्हेउँ  प्रगट  न  कारन तेहीं। अस  कहि चरन गहे बैदेहीं।|

बिनय  प्रेम  बस  भई  भवानी। खसि  माल मूरति मुसुकानी।|

सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियँ भरेऊ।|

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।|

नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।|

मनु  जाहिं  राचेउ  मिलिहि  सो  बरु सहज सुन्दर साँवरो।

करुना    निधान   सुजान    सीलु    सनेहु   जानत   रावरो।|

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।

तुलसी  भवानिहि  पूजि  पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।|

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल   मंगल   मूल   बाम   अंग   फरकन   लगे।|

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(इस स्तुति का भावार्थ है - हे पर्वतराज हिमाचल की पुत्री आपकी जय हो, जय हो। महादेव के मुखरूपी चन्द्रमा को देखनेवाली चकोरी आपकी जय हो। हे बिजली सी कांति से युक्त जगतजननी, हे गणेश और कार्तिक की माता आपकी जय हो। हे माता न आपका आरम्भ है, न मध्य है और न अंत है।  आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न करनेवाली, पालन करनेवाली और नाश करनेवाली हैं। आप विश्व को मोहित करनेवाली हैं और स्वतंत्र रूप से विहार करनेवाली हैं।   

       पति को इष्टदेव माननेवाली श्रेष्ठ नारियों में हे माता आपकी प्रथम गणना है। आपकी अपार महिमा को हजारों सरस्वती और शेष भी नहीं कह सकते। 

     हे वर देने वाली त्रिपुरारी शिव की पत्नी, आपकी सेवा से चारों फल सुलभ हो जाते हैं। हे देवि ! आपके चरणकमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं। 

   मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं क्योंकि आप सदा सबके हृदय रुपी नगरी में रहती हैं। इसी कारण मैं उसको प्रकट नहीं कर रही, यह कहकर सीताजी ने उनके चरण पकड़ लिये। भगवती पार्वती सीताजी के विनय और प्रेम के वश में हो गयीं, उनके गले से माला खिसक के गिर गयी और उनकी मूर्ति मुस्कुरायी। सीताजी ने आदरपूर्वक प्रसादरूपी माला को उठा कर सिर से लगाया। माता पार्वती का हृदय हर्ष से भर गया और वे बोलीं - "हे सीता ! मेरी सच्ची आशीष सुनो, तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। नारदजी का वचन सदा पवित्र और सत्य है। जो वर तुम्हारे हृदय में बसा है वही वर तुम्हे मिलेगा। जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो  गया है वही स्वाभाव से सुन्दर, साँवला वर तुम्हें मिलेगा। वह दया से पूर्ण और सर्वज्ञ है, तुम्हारे शील और स्नेह को जनता है।"

    इस प्रकार गौरीजी का आशीर्वाद सुनकर सीताजी सभी सखियों सहित हृदय से हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं - भवानीजी को बार-बार पूज कर सीताजी प्रसन्न मन से महल को लौट चलीं। 

   गौरीजी को अनुकूल जान कर सीताजी को जो हर्ष हुआ वह कहा नहीं जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बायें अंग फड़कने लगे।)


       जिस प्रकार माता भवानी सीताजी पर प्रसन्न हुईं उसी प्रकार वे उनकी आराधना -पूजन करने वालों पर भी प्रसन्न होवें। 🙏जय माँ भवानी🙏

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           इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाएँ:-
























44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri

39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि


38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक

35. श्रीविद्या - सर्वोपरि मन्त्र साधना

34. श्री दुर्गा के बत्तीस नाम - भीषण विपत्ति और संकटों से बचानेवाला

33. मैथिलि भगवती गीत - "माँ सिंह पर एक कमल राजित"

32. माँ दुर्गा की देवीसूक्त से स्तुति करें -Praise Goddess Durga with Devi-Suktam!


31. शनि की पूजा -क्या करें क्या न करें। The worship of God Shani, What to do & what not!

30. संस्कृत सूक्तों के प्रारम्भ में शीर्षक का क्या अर्थ है ?


25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Thursday, April 1, 2021

राम कथा (अष्टश्लोकी – आठ श्लोकों में), श्रीरामाष्टकः

श्रीराम / Sri Ram

        धार्मिक ग्रंथों को यदि देखा जाय तो सबसे लोकप्रिय है रामकथा। महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण जो संस्कृत में है वह अन्य भाषाओं में रचित रामकथाओं का मूल है। सरल हिंदी अवधी में तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस तो रामकथाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके बारे में मैंने ब्लॉग पोस्ट "तुलसीदास – अनोखे रस लालित्य के कवि" में लिखा भी है । किंतु ये राम कथाएं चाहे रामायण हो या श्रीरामचरितमानस, लंबी हैं और रामभक्तों का एक ही दिन में इन्हें पढ़ पाना काफी कठिन है। उनकी इच्छा होती है कि संक्षिप्त में राम कथा लिखी जाती तो प्रतिदिन उसका पाठ करते। कुछ अधिक उत्साहित एक भक्त ने सिर्फ दो पंक्तियों में राम कथा कही वो भी भोजपुरी में । उन्होंने कहा,

राम जनमलन, वन में गईलन, 

रावण मारलन,   घरे अयलन।।

(अर्थात, श्रीराम ने जन्म लिया, वे वन को गये जहाँ उन्होंने रावण को मारा फिर वापस घर लौट गये)

     इसे सुनकर एकबारगी तो हँसी भी आती है किन्तु कुछ भोजपुरी भाषी गर्व से कहते हैं - "सबसे संक्षिप्त रामायण तो हमारी भोजपुरी में है।" खैर, जैसी भक्त की इच्छा और भाव। 

        जिनके पास पतली वाली हनुमान चालीसा की छोटी पुस्तिका है उन्होंने ध्यान दिया होगा चालीसा के आगे और भी कई चीजें दी गयी हैं, यथा संकटमोचक हनुमान अष्टक, बजरंग बाण, श्रीरामावतार, आरती, इत्यादि। इन्हीं में एक है - श्रीरामाष्टक। वस्तुतः संस्कृत में रचित इसके आठ श्लोकों में से पहले चार  श्लोकों में  विष्णु और उनके रामावतार और कृष्णावतार की स्तुति की गयी है। बाकी के चार श्लोकों में ही रामकथा संक्षिप्त में कही गयी है। रामभक्तों की सुविधा हेतु तुलसीदास जी रचित "रामाष्टक" नीचे दे रहा हूँ, इसे (यूट्यूब पर सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें):-

श्रीरामाष्टकः

हे  रामा  पुरुषोत्तमा नरहरे  नारायणा  केशवा। 

गोविंदा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।। 

हे कृष्ण   कमलापते  यदुपते  सीतापते श्रीपते। 

वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम।।


आदौ रामतपोवनादिगमनं  हत्वा मृगं कांचनम्।

वैदेहीहरणं   जटायुमरणं    सुग्रीवसंभाषणम् ।। 

बालीनिर्दलनं    समुद्रतरणं    लंकापुरीदाहनम्।

पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननं  एतद्धि  रामायणम् ।।

                

(अर्थ - हे पुरुषोत्तम राम, आप ही नरहरि, नारायण, केशव, गोविन्द, गरुड़ध्वज, गुणनिधि, दामोदर और माधव हैं और हे कृष्ण, आपही कमलापति, यदुपति, सीतापति और श्रीपति हैं अर्थात आपदोनों एक ही हैं। हे वैकुण्ठ के स्वामी, चराचर के मालिक, लक्ष्मीपति ! आप हमारी रक्षा करें, हमारा उद्धार करें।

      प्रारम्भ में श्रीराम तपोवन आदि वनों में गये, वहाँ उन्होंने सोने के हिरण को मारा। फिर सीता जी का हरण हुआ, पक्षीराज जटायु मारे गये, श्रीराम सुग्रीव से मिले, बाली का वध किया। (हनुमानजी द्वारा) समुद्र को लाँघ कर लंकापुरी जलाया गया। इसके पश्चात् श्रीराम ने रावण और कुम्भकरण का वध किया, यही रामायण है।

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14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

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12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

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Saturday, March 6, 2021

भगवान शिव को क्या क्या अर्पित करें ? (हिंदी ब्लॉग)

     भगवान शिव आशुतोष हैं, थोड़े में भी प्रसन्न हो जाने वाले।  बस भाव होना चाहिए। किन्तु भक्तों का मन कहाँ मानता। वे चाहते हैं कि जहाँ तक हो सके शिवजी को उनकी प्रिय वस्तुएँ उनको अर्पित करें। बाबा भोलेनाथ को पूर्ण प्रसन्न करें ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो सके। 
शिव नटराज


       आइये जानें कि महादेव बाबा भोलेनाथ को क्या क्या प्रिय है:-

1. श्रद्धा और विश्वास - जैसा कि हम सब जानते हैं किसी भी पूजा में सबसे पहला और आवश्यक चीज है श्रद्धा और विश्वास। बिना इसके कैसी भी पूजा करें, कुछ भी अर्पण करें उसका बहुत महत्व नहीं है। शिव पूजन में भी सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा और विश्वास का होना। बाबा तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस के प्रारम्भ में माँ सरस्वती और श्रीगणेश की वंदना के बाद यही बात कही है। उन्होंने दूसरे संस्कृत के श्लोक में इस तरह लिखा है ,  

भावनीशंकरौ    वन्द्ये    श्रद्धा     विश्वास    रूपिणौ ,
याभ्याम्  विना  ना पश्यन्ति सिद्धा: स्वांतस्थमीश्वरम् । 
(मैं माता पार्वती और भगवान शंकर की वंदना करता हूँ जो श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक हैं। श्रद्धा और विश्वास के बिना सिद्ध पुरुष भी अपने अंतःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते)

   यह इतना महत्वपूर्ण है कि यदि श्रद्धा और विश्वास हो तो शिवजी का ध्यान मात्र करने पर वे प्रसन्न हो जाते हैं।


2. हिम-जल स्नान - भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान जगत के कल्याण के लिए था। इसके कारण उनके शरीर में भीषण गर्मी उत्पन्न हुई जिसे शांत करने के लिए लोगों ने उनपर शीतल जल डालना शुरू किया जिससे उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। तब से भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें हिम-जल स्नान कराया जाता है। कई श्रद्धालु तो प्रतिदिन कम से कम एक लोटा शीतल जल शिवलिंग पर जरूर अर्पित करते हैं जिसे जलाभिषेक कहते हैं।
      नारियल का जल भी शीतल होता है अतः सूखे नारियल को फोड़ कर उसका जल भी शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। शीतल जल का महत्व और भी बढ़ जाता है यदि वह गंगाजल हो। जब माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर आयी थी तो उनका वेग कम करने के लिए भगवान् शिव ने सबसे पहले उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था।
     गंगाजल अर्पण के बराबर ही महत्व है शिव पर "ध्रुव का फूल" अर्पित करने का। इसके बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - "ध्रुव का फूल".
     सावन का महीना भी शिव को प्रिय है क्योंकि झमझम वर्षा में शिव आनन्दित होते हैं। कहा जाता है कि सावन के महीने में ही पहली बार शिवलिंग प्रकट हुए थे। सोमवार का दिन भी शिव को पसंद है और यदि सोमवार सावन का हो तो फिर क्या कहने? सावन की सोमवारी तो शिव भक्तों की आराधना का विशेष दिन होता है।


3. त्रिपुण्ड और चन्दन -  त्रिपुंड तीन सामानांतर पड़ी रेखाएँ होती हैं जो कपाल पर लगायी जाती हैं। चन्दन के लेप को तीनों बीच वाली उँगलियों के सिरे पर लगा कर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाया जाता है। शिवभक्त अपने कपाल पर भी त्रिपुण्ड लगाते हैं।   
त्रिपुण्ड और चन्दन


4. बिल्व -पत्र - बिल्व पत्र अर्थात बेलपत्ते को कौन शिवभक्त नहीं जानता। इसके तीन पत्ते शिव के तीन नेत्रों (चंद्र, सूर्य और अग्नि), तीन गुणों (सत, रज और तम) और तीन आयुधों (त्रयायुधम) का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव पूजन में इसका बहुत महत्त्व है। माना जाता है कि बिल्व पत्र माता लक्ष्मी के हृदय से उत्पन्न हुआ और शिव को यह बहुत प्रिय है। शिव को अर्पित करने से यह तीन जन्मों के पापों का नाश करता है। बिल्व पत्र पर आठ श्लोकों का एक बड़ा सुन्दर अष्टक रचा गया है जिसे बिल्वाष्टक कहते हैं। इसके बारे में जो ऊपर बताया है वह इस अष्टक के प्रथम श्लोक में ही लिखा है। यह श्लोक निचे लिख रहा हूँ, इसे शिव पर बेलपत्र अर्पित करते समय मन्त्र के रूप में भी बोला जाता है।     

त्रिदलं  त्रिगुणाकारं  त्रिनेत्रं  च  त्रयायुधम् ।
त्रिजन्म पाप संहारम् बिल्वपत्रं शिवार्पणं ॥
     भगवान शिव को अर्पित किये जाने वाले बेलपत्र को कोमल, बिना दाग वाला, बिना फटा और बिना छेद वाला होना चाहिए। बेल का सिर्फ पत्ता ही नहीं बल्कि फल भी शिव को अर्पित किया जाता है। बिल्वपत्र के महत्त्व को जानने के लिए अंग्रेजी में इस ब्लॉग पर जाएँ - Bilvashtak. बेलपत्र के बारे  जानने के लिए हिंदी ब्लॉग - बिल्वपत्र (बेलपत्र) पर जायें।  

5. अर्क पुष्पम् - यह आक का फूल है जिसे अकबन, मदार या मंदार के नामों से भी जाना जाता है। यह फूल या इसके कली (बिना खिले फूल) की माला शिव को बहुत प्रिय है। यह फूल दो तरह का पाया जाता है -एक जो हल्का बैंगनी और सफ़ेद का मिश्रण होता है, दूसरा जो पूरा सफ़ेद होता है। सफ़ेद फूल को श्वेतार्क कहा जाता है इसका विशेष महत्त्व है। आक फूल के बारे में ज्यादा जानने के लिए इस लिंक पर जाएँ - आक के फूल 

अर्क पुष्प, आक या अकबन


6. धतूरा - भोंपू की तरह दिखने वाला यह फूल शिव को पसंद है। इसका पौधा स्वयं ही आसपास की जगहों में उगता है जिसे कम पानी  की आवश्यकता होती है। इसका फल गोल और ऊपर में नर्म काँटेदार होता है, इसके भीतर छोटे छोटे बीज भरे होते हैं जो जहरीला भी होता है। इसका फल भी शिव को अर्पित किया जाता है। धतूरा का फूल सफ़ेद रंग से लेकर हल्का गुलाबी, पीला या हल्का बैंगनी हो सकता है। धतूरे के बारे में विशेष जानकारी के लिए इस हिंदी ब्लॉग को पढ़ें - धतूरे का फूल


7. दूब/दूर्वा -  दूब जमीन पर फैलनेवाली एक आम घास है जिसे मवेशी बड़े चाव से खाते हैं। इस घास के अग्रभाग जिसमें तीन पत्तियाँ हों उन्हें तोड़कर गुच्छे में शिवजी पर अर्पित करते हैं जैसे गणेश जी पर करते हैं।शिवलिंग पर दूब के अर्पण से बुरे ग्रहों के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
दूब / दूर्वा


8. दूध - जिस प्रकार जलाभिषेक किया जाता है उसी तरह शिवलिङ्ग पर गाय के दूध की धारा डालकर जलाभिषेक किया जाता है। दुग्ध से अभिषेक के बाद जलाभिषेक अनिवार्य है। इससे प्रसन्न होकर महादेव संतान सुख देते हैं और अकालमृत्यु दूर कर लम्बा जीवन प्रदान करते हैं।विभिन्न वस्तुओं से शिवजी के अभिषेक के बारे में यहाँ पढ़ें - शिव-अभिषेक
बाबा बासुकीनाथ का दुग्धाभिषेक


9. भांग - यद्यपि भांग का सेवन समाज में अच्छा नहीं मन जाता किन्तु शिव को अर्पित करने का अर्थ है कि भक्त इस बुराई का त्याग कर रहा है। इससे शिव प्रसन्न होते हैं। जलाभिषेक के बाद भांग शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है, इसके बाद पुनः जलभिषेक करना होता है।                       

10. कनेर का फूल -  पीला कनेर का फूल शिव जी को पसंद है। प्रायः प्रत्येक शिव मंदिर के पास पीला कनेर का पेड़ लगाया जाता है। 

11. पञ्चामृत - पूजा में काम आनेवाली ये पाँच अमृत तुल्य द्रव हैं जिन्हें मिलकर पंचामृत बनाया जाता है - मधु, गुड़, गाय का दही, घी और दूध।पञ्चामृत से शिव अभिषेक करने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है ऐसी मान्यता है।  

12. पंचाक्षरी मन्त्र -  "ॐ नमः शिवाय" है पंचाक्षरी मन्त्र जिसमें ॐ प्रणवाक्षर है जो प्रत्येक मन्त्र से पहले लगाया जाता है। यह छोटा सा मन्त्र है किन्तु बहुत ही प्रभावशाली क्योंकि भगवन शिव इससे बहुत प्रसन्न होते हैं। शिव पूजा के समय कम से कम पांच या ग्यारह बार इस मन्त्र को अवश्य जपना चाहिए। 

         इनके अलावा मधु (शहद), पान, सुपाड़ी, कपूर, अपराजिता फूल, जूही फूल, चम्पक फूल, शिवलिंग फूल, पंचमुखी रुद्राक्ष, दही, घी, खीर, धूप, दीप, केला और नारियल भी शिव को अर्पित किया जाता है क्योंकि ये उन्हें पसंद हैं। शिव नटराज हैं, उन्हें गीत और नृत्य भी बहुत पसंद हैं। अतः कुछ भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए गीत, नृत्य और वाद्य भी उनकी सेवा में पेश करते हैं। यद्यपि कुछ लोग नारद के श्राप के कारण चम्पक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से मना करते हैं किन्तु आदिशंकराचार्य द्वारा रचित शिवमानस पूजनस्त्रोतम में स्पष्ट लिखा है,
"जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं  पुष्पं  धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्"
हाँ, एक फूल है केतकी जिसे कभी शिव को अर्पित नहीं करना चाहिए क्योंकि स्वयं भगवान शिव ने उसे श्राप दिया था।  
       शिव को कुछ अर्पण करने का एक अर्थ भी है कि उस चीज का त्याग करना विशेषकर भांग, धतूरा, कनेर, आक जैसे हानिकारक वस्तुओं के सन्दर्भ में। शिवलिंग पर चढ़ाये गए फल या मिष्टान्न को स्वयं उठा कर इसी कारण ग्रहण नहीं किया जाता (पंडितजी अगर दें तो अलग बात है), शिव को नैवेद्य शिवलिंग के सामने रख कर अर्पित किया जाता है। भांग, धतूरा, कनेर, आक जैसे कुछ चीजों को अर्पित करने का एक अर्थ और है कि शिव तुच्छ वस्तुओं से भी प्रसन्न हो जाते हैं जिसके कारण साधारण भक्त भी शिव की सेवा में बेझिझक आ सकते हैं।  
        कई लोगों को देखा है कि पूजा के बाद प्रणाम करने के लिए अपने सर को शिवलिङ्ग पर सटाते हैं जो सही नहीं है। हम अपना सर शिवलिंग पर अर्पित तो नहीं करते ना ? प्रणाम करने का सही तरीका है कि दोनों हाथों से शिवलिंग को स्पर्श करते हुए कपाल (Forehead) को धरती से स्पर्श कराएँ।        
          शिव पूजन में ऊपर वर्णित चीजें अर्पित की जा सकती हैं किन्तु जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि उनके प्रति सच्ची श्रद्धा, विश्वास और भक्तिभाव होना चाहिए।  
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