एक शिव-भक्त की नित्य प्रार्थना कम-से-कम क्या होनी चाहिए ?
परमेश्वर शिव 🙏
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एक शिव-भक्त के लिए शिव परमेश्वर हैं। वे सभी तीनों गुणों (सत, रज और तम) से परिपूर्ण सर्व-शक्तिशाली हैं। वे परम सत्य हैं, तारण करने वाले और परमानन्द के दाता हैं। यही कारण है कि शिव सबसे सुन्दर हैं। यह तथ्य संस्कृत के प्रसिद्ध विशेषण-समूह से प्रकट होता है जो शिव की विशेषता बताते हैं - सत्यम शिवम् सुंदरम. शिव सर्वव्यापी हैं, अनादि हैं और अनन्त हैं। अर्थात वे हर स्थान पर हैं, न कोई उनका जन्म है और न उनका अन्त। इस ब्रह्माण्ड के जन्म से पहले से शिव हैं और जब इसका अन्त होगा तब भी वे रहेंगे क्योकि वे परमेश्वर हैं। शिव परब्रह्म परमात्मा हैं, उनका न आदि है न अंत है।
इस ब्रह्माण्ड में हर जीव अपने माता -पिता से जन्म लेता है किन्तु शिव के साथ ऐसा नहीं है। वे स्वयं से हैं, इसीलिए उन्हें स्वयंभू या शंभू भी कहा जाता है। एक तरफ तो वे निर्गुण -निराकार ब्रह्म के रूप में इस ब्रह्माण्ड में हैं जिनको ध्यान में लाने के लिए योगीजन परम तप करते हैं तो दूसरी तरफ वे लोकगाथाओं और हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक गृहस्थ की तरह माने जाते हैं जो पत्नी पार्वती, पुत्र कार्तिक और गणेश, वाहन और द्वारपाल वृषभ नन्दी के साथ कैलाश पर्वत पर वास करते हैं। ये शिव -परिवार कहलाते हैं और पंच महादेव के नाम से भी जाने जाते हैं।
शिवलिंग स्वयं भगवान शिव का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ इतिहासकार शिवलिंग को लिंग-आराधना से जोड़ते हैं किन्तु इसका गोल आकार वस्तुतः ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। शिव अर्धनारीश्वर भी कहलाते हैं क्योंकि उनका आधा बायाँ भाग देवी पार्वती हैं जो कि शिव की शक्ति भी हैं। अतः पार्वती के साथ शिव को शिव-शक्ति भी कहा जाता है। जिस तरह यह ब्रह्माण्ड बिना उर्जा या शक्ति के नहीं हो सकता, उसी तरह शिव को भी शक्ति से अलग नहीं किया जा सकता। शिवलिंग में भी देवी पार्वती का स्थान शिवलिंग के निचले भाग में होता है। अतः जब भी शिव की पूजा होती है भगवती पार्वती को भी पूजा जाता है और जब भगवती की पूजा होती है तो शिव को भी पूजा जाता है। शिव का पार्वती से ऐसा अपार प्रेम है कि कुँवारी कन्यायें भगवान शिव की तरह ही वर की कामना करती हैं। संक्षेप में भगवती की पूजा सप्तश्लोकी दुर्गा स्त्रोतों के पाठ से भी की जा सकती है जिसे मैं आगामी ब्लॉग पोस्ट में लिखूंगा।
कभी-कभी शिव को पाँच सिर वाले भगवान के रूप में भी पूजा जाता है जिसमें प्रत्येक सिर के अलग अलग नाम होते हैं। इनके लिए शिव-गायत्री इस प्रकार है,
ॐ पञ्चवक्त्राणि विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात । ।
भगवान शिव के अनंत प्रार्थनाएं, कहानियाँ, बखान और पूजा विधि हैं किन्तु हमलोग यहाँ शिव की नित्य आराधना की चर्चा करेंगे जो संतुष्टि देनेवाला और संक्षिप्त हो ताकि फिर व्यक्ति अपने नित्य के व्यवसाय में लग जाये। पर जो भी छोटी सी पूजा करे पूर्ण भक्ति-भाव, विश्वास और ध्यान से करे। मैंने इसे अंग्रेजी ब्लॉग-पोस्ट What-lord-shiva-likes? में भी लिखा है।
जब शिव-भक्त सबेरे बिस्तर से उठें
बिस्तर से उठते ही सर्वप्रथम सुबह में शिव को ध्यान में लाते हुये उन्हें प्रणाम करें। इसके लिए एक बहुत ही प्यारा स्तोत्र है "शिव प्रातः स्मरण स्तोत्रं" जिसे यादकर नित्य प्रातः पढ़ा जा सकता है। मैंने इसे अपने ब्लॉग पोस्ट Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण)! (link) में रोमन लिपि और संस्कृत में अर्थ सहित लिखा है। मैं पुनः इस स्तोत्र को यहाँ संस्कृत में दे रहा हूँ :-
इसके बाद जब भक्त स्नान कर पवित्र हो कर पूजा के लिए बैठें तो एक दीप जलायें। जल से शरीर-आसन की शुद्धि के पश्चात् शिव का ध्यान श्लोक पढ़कर करना चाहिए। शिव के विभिन्न स्वरुप के लिए कई अलग अलग श्लोक हैं। यहाँ "महामहेश्वर शिव" के ध्यान का श्लोक दे रहा हूँ :-
एक लोटा जल के साथ बिल्व - पत्र , "दूब घास" अग्रभाग (दूर्वा दल), चन्दन लेप, आक और धतूरा के फूल शिवलिंग पर अर्पित किये जाने चाहिए। कम-से-कम जल और बेलपत्र अवश्य अर्पित करें। कुछ भोग और आचमन जल दें फिर आता है मन्त्र-जाप का समय। अक्षमाला की पूजा करें "ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः" मन्त्र से (मन्त्र इस लिंक में दिया हुआ है). शिव पंचाक्षरी मन्त्र से अक्षमाला पर कम-से-कम पांच बार जप करें अगर समय मिले तो 108 बार करें।
"ॐ नमः शिवाय "
फिर ग्यारह बार निम्न मन्त्र का जाप करें :-
"ॐ अघोरेभ्यSथ घोरेभ्य घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः ।
सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेस्तु रूद्ररुपेभ्यः ।।"
(शिव-महिम्न स्तोत्र में पुष्पदंत कहते हैं कि इस अघोर मन्त्र से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है।)
अब आता है भगवन शिव की पूजा का समय और "शिव मानस पूजा" से अधिक उपयुक्त और क्या होगा ? मैंने इसे रोमन और देवनागरी लिपि में अर्थ सहित ब्लॉग में लिखा है जिसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है - Shiva_Manas_Puja. मैं पुनः यहाँ संस्कृत श्लोकों को JPEG फॉर्मेट में दे रहा हूँ:- चित्र में शिव-मानस पूजा
अक्षमालिका की पुनः पूजा करते हुए कम-से-कम ग्यारह बार महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करना चाहिए। यह नीचे दिया गया है:-
"ॐ हौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ "
अंत में आरती से पहले निम्नलिखित प्रार्थना करें,
वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगतकारणं,
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनामपतिं
वन्दे सूर्य शशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुंदप्रियं
वन्दे भक्त जनाश्रियंच वरदं वन्दे शिवं शंकरं
अंत में भूल-चूक के लिए क्षमा मांगते हुए निम्न स्तोत्र पढ़ें :-
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेSहर्निशम् मया
दसोSयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तुमे।
इसके बाद शिव को दीप-धूप दिखाते हुए आरती करें। आजकल हिंदी में आरती गीत साथ में गाने का प्रचलन है। यदि चाहें तो "ॐ जय शिव ओंकारा .." से आरती गए सकते हैं। अब भगवान शिव को पूजा समर्पित करते हुए भूमि पर सिर लगा कर सभी पापों के लिए क्षमा मांगें :-
पापोSहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः
त्राहिमाम बाबा भोलेनाथ सर्वपाप हरोहरः।
यह संक्षिप्त शिव-पूजा विधि उनलोगों को अपनानी चाहिए जिन्हें समय का आभाव है। कम-से-कम सावन माह में इतनी पूजा अवश्य करें।
अब आती है संध्या पूजा जब महिलाएँ दीप जला कर घर के कोने-कोने और तुलसी पिण्डा को दिखाती हैं तब शिव-भक्त को धूप-दीप दिखा कर निम्नलिखित चार पंक्तियों की स्तुति पढ़नी चाहिए।
नमस्तुंग शिरश्चुम्बि चन्द्र चामर चारवे
त्रैलोक्य नगरारम्भ मूलस्तम्भाय शम्भवे
चन्द्राननार्ध देहाय चन्द्रांशुशित मूर्तये
चन्द्रार्कानल नेत्राय चन्द्रार्ध शिरसे नमः।
पूजा समाप्ति के समय संध्या को रावण द्वारा रचित शिव-तांडव स्तोत्र पढ़ने का बोला गया है किन्तु यह लम्बा और कठिन संस्कृत में है जिसे हर कोई नहीं पढ़ सकता। ऐसे में अंत में कुछ शिव-भजन गा कर संध्या पूजा को विराम देना चाहिए फिर क्षमा हेतु ऊपर लिखित "क्षमा प्रार्थना" पढ़ना चाहिए।
अगर इन स्तोत्रों और श्लोकों को याद कर लिया जाए तो इस दैनिक शिव पूजा में दस मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता। अतः इसे नित्य की आदत बनायें। यदि यह संभव न हो तो कम से कम सावन के पवित्र माह में शिव कृपा हेतु अवश्य अपनाएं।
||शिवार्पणम्||
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