Thursday, July 11, 2019

सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक

पार्थिव शिवलिंग
(चित्र गूगल से साभार)
           महादेव को प्रसन्न करने का एक उत्तम उपाय है पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक, और वह भी सावन में। यह एक आसान उपाय है और फलदायी भी। सावन में महादेव की पूजा वैसे ही महत्वपूर्ण है। रामचरितमानस में भी भगवान् श्रीराम द्वारा पार्थिव शिवलिंग के पूजन का वर्णन दो बार मिलता है। एक वन - गमन के समय जब गंगा पार कर रहे थे (केवट प्रसङ्ग) और दूसरी बार लंका विजय के लिए प्रस्थान करने से पूर्व सेतुबंध रामेश्वरम में। भगवान श्रीराम द्वारा रामेश्वरम में शिव पूजा का भक्त हनुमान के प्रसङ्ग में एक कथा विख्यात है। शिव पूजन का उचित समय जान कर प्रभु राम ने महावीर हनुमान को शिवलिङ्ग लाने भेजा। हनुमानजी सहर्ष शिवलिंग लाने गए। उन्हें सुन्दर शिवलिंग खोजने में देर हो गयी। इधर पूजन का समय निकलता जा रहा था। देर होती देख प्रभु राम ने मिट्टी का अर्थात पार्थिव शिवलिंग बनाकर महादेव का पूजन किया जिसमे १०१ कमल पुष्प अर्पित किये। इन्हीं १०१ कमल पुष्पों में से एक शिवजी ने प्रभु की परीक्षा हेतु छिपा दिए थे। एक कमल घटता देख प्रभु श्रीराम अपनी एक आँख शिवलिंग पर अर्पित करने को उद्यत हुए क्योंकि सभी उनकी आँखों की तुलना कमल से करते थे और उन्हें राजीवनयन भी कहते थे। यह देख महादेव बहुत ही प्रसन्न हुए और माँ भवानी सहित उन्हें दर्शन दिया तथा विजयी होने का आशीर्वाद दिया। इधर जब महावीर हनुमान शिवलिंग लेकर आये तो उनके शिवलिंग के स्थान पर पार्थिव शिवलिंग का पूजन देख दुखी हुए। प्रभु श्रीराम उन्हें दुखी देखकर बोले, "हनुमान ! आप दुखी ना होवें। पार्थिव शिवलिंग को हटाकर आप अपना लाया शिवलिंग स्थापित करें। हम उन्हें भी पूजेंगे।" यह सुनकर हनुमानजी ने पार्थिव शिवलिंग हटाने का प्रयास किया पर हटा न सके। अतुलित बल के धाम हनुमानजी ने अपनी पूंछ से मिट्टी के शिवलिंग को लपेटा और पूरा जोर लगा दिया। पर टस से मस न कर सके। तब महावीर हनुमान ने अपनी गलती समझी। जो भी शक्ति किसी में होती है वह उसकी नहीं होती वरन वह प्रभु की कृपा से होती है। उन्होंने प्रभु श्रीराम से क्षमा माँगी। प्रभु ने बगल में उनका लाया शिवलिंग भी स्थापित किया।   
          पार्थिव शिवलिंग का निर्माण एवं पूजन घर में भी किया जा सकता है और शिवालय, मंदिर अथवा नदी के किनारे भी। यदि घर में किया जाय तो शिवलिंग का आकार अँगूठे के बराबर रखना चाहिए। दूसरी जगहों पर अधिकतम छः इंच का रखना चाहिए। रुद्रष्टाध्यायी मन्त्र के साथ शिवलिंग का अभिषेक विभिन्न वस्तुओं से किया जा सकता है। यथा जल, गंगाजल, दूध, गन्ने का रस, शहद, इत्यादि। किस वस्तु से अभिषेक से क्या फल प्राप्त होता है इसे जानने के लिए पढ़ें →शिव -अभिषेक
          पूजन में नैवेद्य एवं प्रसाद यथा फल और मिठाई अर्पित करना चाहिए। चन्दनबिल्वपत्र, कनेर, तगर, गेंदा, गुलाब, अपराजिता एवं कमल का पुष्प शिवजी के शृंगार में उपयोग किया जा सकता है। शिवजी को प्रिय दूर्वा दल और भांग अर्पित करना चाहिए। महादेव को क्या प्रिय है यह जानने के लिए पढ़ें - भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ? जो नैवेद्य एवं प्रसाद शिवलिंग से सटाकर रखा जाये उसे ग्रहण नहीं किया जाता है। इसे विसर्जित कर देना चाहिए। जो शिवलिंग के पास में रखा जाये उसे ही पूजा के पश्चात् ग्रहण करना चाहिए।       
          पार्थिव शिवलिंग की पूजा, अभिषेक एवं आरती के पश्चात् इनका विसर्जन किसी नदी, तालाब अथवा समुद्र में करना चहिये। इस पूजा और विसर्जन से भक्त को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह शीघ्र विवाह, पुत्र -प्राप्ति, उत्तम स्वास्थ्य और धन देनेवाला होता है।
गोनूधाम, भागलपुर, बिहार
Image source, Google Map 
           

     पार्थिव शिवलिंग के निर्माण के लिए सबसे उत्तम मिट्टी गंगा नदी के तल की होती है। इसे मृत्तिका कहते हैं। भागलपुर रेलवे स्टेशन, बिहार से लगभग ११ किलोमीटर दूर गोनू धाम शिवालय में बना शिवलिंग पत्थर का नहीं वरन इसी मृत्तिका का बना होता है। गोनूधाम में दूर दूर से पहली ब्यायी गाय का पहला दूध महादेव को अर्पित करने लोग आते हैं। मान्यता है कि इससे गाय अधिक दूध देती है। 

           इसके अतिरिक्त किसी तालाब या पवित्र स्थल से प्राप्त मिट्टी को महीन चलनी या छननी से छानकर पंचगव्य के साथ मिलाकर आटे की लोई जैसे बनाकर दोनों हाथों से ऊँगली के आकर का शिवलिंग बनाया जाता है। पार्थिव शिवलिंग बनाने के विषय में पढ़ें → Parthiv  Shivlinga -पार्थिव शिवलिंग।  



































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