पार्थिव शिवलिंग (चित्र गूगल से साभार) |
पार्थिव शिवलिंग का निर्माण एवं पूजन घर में भी किया जा सकता है और शिवालय, मंदिर अथवा नदी के किनारे भी। यदि घर में किया जाय तो शिवलिंग का आकार अँगूठे के बराबर रखना चाहिए। दूसरी जगहों पर अधिकतम छः इंच का रखना चाहिए। रुद्रष्टाध्यायी मन्त्र के साथ शिवलिंग का अभिषेक विभिन्न वस्तुओं से किया जा सकता है। यथा जल, गंगाजल, दूध, गन्ने का रस, शहद, इत्यादि। किस वस्तु से अभिषेक से क्या फल प्राप्त होता है इसे जानने के लिए पढ़ें →शिव -अभिषेक।
पूजन में नैवेद्य एवं प्रसाद यथा फल और मिठाई अर्पित करना चाहिए। चन्दन, बिल्वपत्र, कनेर, तगर, गेंदा, गुलाब, अपराजिता एवं कमल का पुष्प शिवजी के शृंगार में उपयोग किया जा सकता है। शिवजी को प्रिय दूर्वा दल और भांग अर्पित करना चाहिए। महादेव को क्या प्रिय है यह जानने के लिए पढ़ें - भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ? जो नैवेद्य एवं प्रसाद शिवलिंग से सटाकर रखा जाये उसे ग्रहण नहीं किया जाता है। इसे विसर्जित कर देना चाहिए। जो शिवलिंग के पास में रखा जाये उसे ही पूजा के पश्चात् ग्रहण करना चाहिए।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा, अभिषेक एवं आरती के पश्चात् इनका विसर्जन किसी नदी, तालाब अथवा समुद्र में करना चहिये। इस पूजा और विसर्जन से भक्त को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह शीघ्र विवाह, पुत्र -प्राप्ति, उत्तम स्वास्थ्य और धन देनेवाला होता है।
पार्थिव शिवलिंग के निर्माण के लिए सबसे उत्तम मिट्टी गंगा नदी के तल की होती है। इसे मृत्तिका कहते हैं। भागलपुर रेलवे स्टेशन, बिहार से लगभग ११ किलोमीटर दूर गोनू धाम शिवालय में बना शिवलिंग पत्थर का नहीं वरन इसी मृत्तिका का बना होता है। गोनूधाम में दूर दूर से पहली ब्यायी गाय का पहला दूध महादेव को अर्पित करने लोग आते हैं। मान्यता है कि इससे गाय अधिक दूध देती है।
इसके अतिरिक्त किसी तालाब या पवित्र स्थल से प्राप्त मिट्टी को महीन चलनी या छननी से छानकर पंचगव्य के साथ मिलाकर आटे की लोई जैसे बनाकर दोनों हाथों से ऊँगली के आकर का शिवलिंग बनाया जाता है। पार्थिव शिवलिंग बनाने के विषय में पढ़ें → Parthiv Shivlinga -पार्थिव शिवलिंग।
पूजन में नैवेद्य एवं प्रसाद यथा फल और मिठाई अर्पित करना चाहिए। चन्दन, बिल्वपत्र, कनेर, तगर, गेंदा, गुलाब, अपराजिता एवं कमल का पुष्प शिवजी के शृंगार में उपयोग किया जा सकता है। शिवजी को प्रिय दूर्वा दल और भांग अर्पित करना चाहिए। महादेव को क्या प्रिय है यह जानने के लिए पढ़ें - भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ? जो नैवेद्य एवं प्रसाद शिवलिंग से सटाकर रखा जाये उसे ग्रहण नहीं किया जाता है। इसे विसर्जित कर देना चाहिए। जो शिवलिंग के पास में रखा जाये उसे ही पूजा के पश्चात् ग्रहण करना चाहिए।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा, अभिषेक एवं आरती के पश्चात् इनका विसर्जन किसी नदी, तालाब अथवा समुद्र में करना चहिये। इस पूजा और विसर्जन से भक्त को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह शीघ्र विवाह, पुत्र -प्राप्ति, उत्तम स्वास्थ्य और धन देनेवाला होता है।
गोनूधाम, भागलपुर, बिहार Image source, Google Map |
पार्थिव शिवलिंग के निर्माण के लिए सबसे उत्तम मिट्टी गंगा नदी के तल की होती है। इसे मृत्तिका कहते हैं। भागलपुर रेलवे स्टेशन, बिहार से लगभग ११ किलोमीटर दूर गोनू धाम शिवालय में बना शिवलिंग पत्थर का नहीं वरन इसी मृत्तिका का बना होता है। गोनूधाम में दूर दूर से पहली ब्यायी गाय का पहला दूध महादेव को अर्पित करने लोग आते हैं। मान्यता है कि इससे गाय अधिक दूध देती है।
इसके अतिरिक्त किसी तालाब या पवित्र स्थल से प्राप्त मिट्टी को महीन चलनी या छननी से छानकर पंचगव्य के साथ मिलाकर आटे की लोई जैसे बनाकर दोनों हाथों से ऊँगली के आकर का शिवलिंग बनाया जाता है। पार्थिव शिवलिंग बनाने के विषय में पढ़ें → Parthiv Shivlinga -पार्थिव शिवलिंग।
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(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
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