हिन्दू सनातन धर्म में जप का महत्वपूर्ण स्थान है। जप अर्थात बार बार नाम या मन्त्र का बोलकर या मन ही मन पाठ करना। ईश्वर का नाम जितना भी लें उतना ही अच्छा , इसमें गिनने की आवश्यकता नहीं। भागवत में उपसंहार में कहा गया है :-
नाम संकीर्तनं यस्य सर्व पाप प्रणाशनम् ।
प्रणामो दुःख शमनः तं नमामि हरिं परम् ॥
(मैं उन 'हरि' को प्रणाम करता हूँ जिनका नाम संकीर्तन सभी पापों को समाप्त करता है और जिन्हें प्रणाम करने मात्र से सारे दुःखों का नाश हो जाता है। )
नाम संकीर्तन नवधा भक्ति अर्थात नौ प्रकार की भक्ति में से एक है। ईश्वर का नाम कभी भी लिया जा सकता है। कई धर्मात्मा तो राम-राम बोलने का अभ्यास ही कर लेते हैं। किन्तु कई बार गिन कर जप करने की आवश्यकता होती है , विशेष कर मंत्र -जप में। क्योंकि कुछ मंत्रो का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए मन्त्रों की एक निश्चित संख्या जप का अनुमोदन किया गया है। ग्रह शांति के लिए किये जाने वाले जपों की संख्या कई हज़ार में होती है। इनकी गिनती के लिए प्रायः माला का सहारा लिया जाता है। एक माला के जप की संख्या १०८ (one hundred and eight) होती है। प्रायः इसके गुणकों ( multiples ) में ही कुल जप संख्या होती है। 108 की संख्या क्यों रखी गई है इसके बारे में कई लोगों के अलग अलग विचार हैं। शत अर्थात सौ (hundred) एक गंभीर संख्या है किन्तु प्रचलन है कि शुभ कामों की संख्या के अंत में शून्य नहीं होना चाहिए अतः इसमें एक और शुभ संख्या 8 को जोड़कर एक माला में जप की संख्या 108 रखी गई है। आठ की संख्या का महत्व कितना है यह अष्टक स्तुति से ही जाना जाता है। फिर 100 के जप में अनजाने में कुछ त्रुटि या छूट जाने पर यह इसकी भरपाई (make up) भी करता है। यह भी देख सकते हैं की 108 एक विशेष संख्या है जिसके अंकों का योग 9 है जो दस अंकों में सबसे ज्यादा है।
जपमाली /जपझोली (Bag for 'jap') |
जप की माला प्रायः 108 या 54 मनकों (beads) की होती है जिसमे एक और मनका बड़ा रखा जाता है या एक अतिरिक्त मनका के साथ धागों के गुच्छे का लॉकेट रखा जाता है , इसे सुमेरु कहते हैं। 108 मनकों वाली माला में तो सीधे 108 बार जप हो जाता है किन्तु 54 मनकों वाली माला में नियम यह है कि 54 बार जप करने के बाद अगले 54 जप माला को उल्टा कर किया जाता है ताकि सुमेरु को पार न किया जाये। जप करते समय माला को ढँक कर रखना चाहिए अतः कंधे पर रखे गमछे से इसे ढँक लिया जाता है। जप करते समय माला को जमीन पर सटना नहीं चाहिए अतः उत्तम है कि एक जपमाली (जपझोली) का उपयोग किया जाय ताकि जप करते समय न तो माला भूमि से स्पर्श करे और न दिखाई पड़े। जपमाली एक छोटी सी झोली होती है जिसके अंदर माला रखी भी जाती है और इसमें हाथ घुसा कर जप भी किया जाता है। चूँकि जप में तर्जनी (Fore finger) का उपयोग वर्जित है सो जपमाली में एक छेद होता है जिससे तर्जनी को बाहर रखा जाता है। इसके अंदर सुमेरु को स्पर्श से जाना जा सकता है। जप हमेशा दाहिने हाथ से ही किया जाता है।
जप के लिए माला इस तरह पकड़ा जाना चाहिए |
माला को अनामिका (ring finger )और अंगूठे (Thumb) पर रख कर मध्यमा अंगुली (middle finger) से मानकों को पीछे की ओर प्रत्येक जप पर खीचना चाहिए। जप करते समय कनिष्ठ अंगुली से भी माला का स्पर्श नहीं किया जाता। बगल के चित्र को देखें।
विभिन्न देवताओं के मन्त्र का जप अलग अलग प्रकार के माला पर किया जाता है। तुलसी की लकड़ी से बनी माला वैष्णवों के जप के काम आती है। यथा राम , कृष्ण ,विष्णु एवं इनके अवतारों के नाम -मंत्र जप में। छोटे छोटे पंचमुखी रुद्राक्षों से बनी माला अक्षमाला कहलाती है। अक्षमाला पर भगवन शिव एवं भगवती दुर्गा के विभिन्न रूप -नामों के मन्त्र जप किये जाते हैं। जपमाला के रखने में विशेष शुचिता का ध्यान रखा जाता है। जप प्रारम्भ करने से पूर्व माला की पूजा की जानी चाहिए। अक्षमाला की पूजा का मंत्र दुर्गा सप्तशती के अनुसार यह है :-
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः।
ॐ मां माले महामाये सर्व शक्ति स्वरूपिणि।
चतुर्वर्गः त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदा भव।।
ॐ अविघ्नम् कुरु माले त्वम् गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा।
इसके बाद यथोचित मन्त्र का उपरोक्त विधि से जप प्रारम्भ किया जाता है। जप पूर्ण होने के पश्चात इसे भगवती के वाम हाथ में या भगवान के दाहिने हाथ में निवेदन किया जाता है।
कमलगट्टे (Lotus seeds) की माला |
कमल के बीज जिसे कमलगट्टा भी कहते हैं इसकी माला का भी जप में विशेष स्थान होता है। चूंकि कमल सभी देवताओं के कमलासन से सम्बध रखता है अतः कमलगट्टा की माला पर सभी देवताओं के जप किये जा सकते है। विशेषकर लक्ष्मी के पूजन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। पूजास्थान में इस माला को रखकर साक्षात् लक्ष्मी मानकर पूजन किया जाता है।
कभी कभी 108 से कम जप करने की भी आवश्यकता होती है। ऐसे में जप का आरम्भ सुमेरु के बगल वाली मनका से कभी नहीं करना चाहिए। मान लें 11 जप करना है। सुमेरु के बाद से 11 मनके गिन कर वहाँ से जप आरम्भ करें और सुमेरु के पास पहुँच कर पूर्ण करें।
स्फटिक माला - Quartz Beads
स्फटिक की माला भी पहनने के अतिरिक्त जप कार्य में भी उपयोग किया जाता है। स्फटिक प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले क्वार्टज़ (quartz) पत्थर को कहा जाता है। क्वार्टज़ एक कड़ा (Hard) पत्थर होता है। अतः स्फटिक की पहचान के लिए इसे शीशे पर घिस कर देखा जा सकता है। यदि शीशे पर खरोंच बने तो तो स्फटिक सही होगा। स्वच्छ एवं पारदर्शी क्वार्टज़ पत्थर की कटाई और पॉलिश कर मनकों (beads) का रूप दिया जाता है फिर गूँथ कर माला बनाई जाती है।इस माला का उपयोग लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती, गायत्री तथा विष्णु (अवतार सहित) से सम्बंधित जप में किया जाता है।
तुलसी माला |
हल्दी की माला से माँ बगलामुखी का जप किया जाता है क्योंकि हल्दी एवं पीला रंग उन्हें प्रिय है । तुलसी पौधे की सूखी लकड़ी से मनके बनाकर उससे तुलसी माला बनायी जाती है। यह माला वैष्णवों द्वारा पहनी जाती है। तुलसी माला पर विष्णु ,कृष्ण और राम नाम का जप किया जाता है।
जपमाला को सिर्फ जप कार्य में ही उपयोग में लाना चाहिए। पहनने के लिए दूसरी माला उपयोग में लानी चाहिए।
अब यह स्थिति भी आ सकती है की पूजा के समय इनमे से कोई भी माला न हो। ऐसी स्थिति में जप के लिए दाहिने हाथ की अँगुलियों का भी उपयोग किया जा सकता है। इसमें भी यह उचित होता है कि तर्जनी का इस्तेमाल न किया जाय। अनामिका के बीच वाले पोर से आरम्भ कर दक्षिणवर्ती (Clockwise) गिनती करते हुए पुनः उसी पोर तक पहुचने पर 11 जप पूर्ण होता है। यदि 108 जप करना हो तो प्रत्येक 11 जप के बाद बायीं हाथ के पोर पर एक गिनना चाहिये। जब बायीं हाथ की अँगुलियों के पोर की 9 तक गिनती पूरी हो तो अंतिम चक्र में दाहिने हाथ की उँगलियों की तीसरे पोर से गिनती जारी की जानी चाहिए। इस प्रकार 9 x 11 = 99 और 9 कुल 108 जप पूर्ण होते हैं। साथ के चित्र से यह स्पष्ट है।
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