Thursday, January 20, 2022

श्रीसूक्तम् - ShreeSooktam, Srisuktam

   श्रीसूक्त दो प्रकार के हैं | पहला वेदोक्त अर्थात वेदों के अनुसार और दूसरा तंत्रोक्त अर्थात तंत्रविद्या के अनुसार | यहाँ दोनों श्रीसूक्त दिए जा रहे हैं | 
(चित्र-गूगल से साभार)

श्रीसूक्तम् (वेदोक्त)

 हिरण्यवर्णां     हरिणीं     सुवर्णरजतस्त्रजाम् । 

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।१।।


तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् । 
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।।२।। 

अश्वपूर्वां   रथमध्यां   हस्तिनादप्रमोदिनीम् । 
श्रियं  देवीमुप  ह्वये  श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।३।। 

कां   सोस्मितां   हिरण्यप्राकारामार्दां   ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । 
पद्मे     स्थितां     पद्मवर्णां     तमिहोप     ह्वये     श्रियम्   ।।४।। 

चन्द्रां  प्रभासां  यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदराम्   । 
तां पद्मिनीम् शरणं प्र पद्मे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।५।। 


आदित्यवर्णे   तपसो  अधि   जातो  वनस्पतिस्त्व वृक्षो अथ बिल्वः । 
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी ।।६।। 


उपैतु    मां     देवसखः       कीर्तिश्च     मणिना     सह  । 
प्रादुर्भूतोअस्मि राष्ट्रेअस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।७।। 


क्षुत्पिपासामलाम्   ज्येष्ठामलक्ष्मीं    नाशयाम्यहम्  । 
अभूतिम   समृद्धिं   च  सर्वां  निर्णुद  मे  गृहात्  ।।८।। 


गन्धद्वारां   दुराधर्षां   नित्य  पुष्टां करीषिणीम् । 
ईश्वरीं  सर्वभूतानां  तमिहोप  ह्वये  श्रियम् ।।९।। 


मनसः   काममाकूतिं   वाचः   सत्यमशीमहि  । 
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।१०।। 


कर्दमेन     प्रजाभूता     मयि     संभव     कर्दम  । 
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्  ।।११।। 


आपः  सृजन्तु  स्निग्धानि   चिक्लीत   वस   मे गृहे । 
नि  च  देवी  मातरं   श्रियं   वासय   मे   कुले  ।।१२।। 


आर्द्रां  पुष्करिणीं  पुष्टिं   पिंगलां  पद्ममालिनीम्  । 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह  ।।१३।। 


आर्द्रां    यः  करिणीं   यष्टिं   सुवर्णां हेममालिनीम्  । 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह   ।।१४।। 


तां      म     आ      वह      जातवेदो      लक्ष्मी     मनपगामिनीम्  । 
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्यो अश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५।। 


यः   शुचिः  प्रयतोभूत्वा      जुहुयादाज्यमन्वहम्। 
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्   ।।१६।।

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श्रीसूक्तम् (तंत्रोक्त)

ॐ   पद्मानने   पद्मविपद्मपत्रे     पद्मप्रिये   पद्मदलायताक्षि |
विश्वप्रिये विष्णुमनोSनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व |१|

पद्मानने    पद्मउरू        पद्माक्षि    पद्मसम्भवे |
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् |२|

अश्वदायि   गोदायि      धनदायि   महाधने |
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामान्श्च् देहि मे |३|

पुत्रपौत्रधनं    धान्यं     हस्त्यश्वाश्वतरी    रथम् |
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे |४ |

धनमग्निर्धनं   वायुर्धनं   सूर्यो   धनं  वसुः |
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना |५|

वैनतेय  सोमं  पिब       सोमं  पिबतु  वृत्रहा |
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः |६|

न  क्रोधो  न  च  मात्सर्यं  न लोभो  नाशुभा  मतिः |
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् |७|

सरसिजनिलये   सरोजहस्ते    धवलतरान्शुकगन्धमाल्यशोभे |
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम् |८|

विष्णुपत्नी  क्षमां  देवीं    माधवीं  माधवप्रियाम् |
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् |९|

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि |
तन्नो          लक्ष्मीः        प्र    चोदयात् ||१०||

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः |
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देविर्देवता मताः |११|

ऋणरोगादिदारिद्र्य           पापक्षुदपमृत्यवः |
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा |१२|

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं     महीयते |
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः |१३|
 
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(शीघ्र फल प्राप्ति हेतु दोनों ही पढ़ना लाभकारी है)

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