श्रेयः प्राप्ति निमित्ताय नमः सोमार्द्ध धारिणे।।
(मैं अर्द्ध चन्द्र को धारण करने वाले उन भगवन शंकर को नमस्कार करता हूँ जिनका समस्त शरीर ही विशुद्ध ज्ञान है, तीनों वेद ही जिनके दिव्य नेत्र हैं और जो कल्याण प्राप्त करने के साधन हैं)
शिव कल्याणकर्ता हैं, उनकी आराधना कभी भी की जाय वह कल्याणकारी होती है। वैसे तो शिव आशुतोष हैं अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले परन्तु ऐसा विश्वास है की सावन के पवित्र मास में उनकी पूजा शीघ्र फलदायी होती है क्योंकि भोलेनाथ अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। सोमवार का दिन शिव पूजा का विशेष दिन होता है परन्तु जब सोमवार सावन का हो तो कहना ही क्या !
सावन जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों की संख्या में वृद्धि का समय होता है। अतः शिव-भक्त सावन में मांसाहार और साग का भक्षण नहीं करते। हृदय में भक्तिभाव के साथ नित्य शिव का पूजन और यथासम्भव शिव मंदिर को जाना अच्छा लगता है। सावन का सोमवार व्रत सोमवारी के नाम से जाना जाता है। इस दिन शिव-मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। भक्त यथासम्भव उपवास अथवा फलाहार रखते हुए शिव-पूजन करते हैं। शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव को प्रिय वस्तुओं का अर्पण करते हैं। यथा गंगाजल, बिल्व-पत्र (बेलपत्र), अर्क-पुष्प, ध्रुव-पुष्प, धतूरा, भांग, कनेर, दूर्वा, इत्यादि।
कांवड़ यात्रा सावन में आम बात है। भक्त नदी में स्नान कर दो पात्रों में जल भरते हैं और पैदल चल कर प्रसिद्ध शिव मंदिरों में अर्पण करते हैं। इस यात्रा में बोल-बम का नारा भक्ति के साथ साथ जोश भी भरता है। स्थानीय तौर पर यह कांवड़ यात्रा सोमवार के दिन अधिक होती है जब भक्त आधी रात को ही नदी स्नान कर कुछ किलोमीटर की यात्रा कर बोल-बम के नारे के साथ जलार्पण हेतु मंदिर पहुँचते हैं। यथा राँची शहर में स्वर्णरेखा नदी में स्नान कर कांवरिये पहाड़ी मंदिर में जल चढ़ाते हैं। परन्तु लम्बी दूरी वाली कांवड़ यात्रा में प्रतिदिन जलार्पण होता है यद्यपि सोमवार को भीड़ विशेष होती है। सबसे प्रसिद्ध कांवड़ यात्रा बिहार के सुल्तानगंज से झारखण्ड के बैद्यनाथधाम तक होती है जो लगभग १०० किलोमीटर है।सुल्तानगंज में गंगा का प्रवाह उत्तर की ओर है अतः यहाँ गंगा-स्नान एवं गंगाजल का बहुत ही विशेष महत्व है जहाँ का जल भोलेनाथ को बहुत प्रिय है। कांवरिये पैदल तो चलते ही हैं और वो भी बिना जूते चप्पल के। प्रतिदिन इनकी संख्या लाखों में पहुँच जाती है।सभी एक दूसरे को बम के नाम से सम्बोधित करते हैं। अधिकांश कांवरिये दो में से एक गंगाजल का पात्र देवघर के बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर अर्पण करते हैं जबकि दूसरा वहां से ४० किलोमीटर दूर बासुकीनाथ के नागेश ज्योतिर्लिंग पर।
यहाँ के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में काँवर यात्राएँ अलग अलग दूरियों के लिए होती हैं। शिव में भक्तों का अपार विश्वास ही है जो सावन में अनेक रूपों में नजर आता है।
कांवड़ यात्रा सावन में आम बात है। भक्त नदी में स्नान कर दो पात्रों में जल भरते हैं और पैदल चल कर प्रसिद्ध शिव मंदिरों में अर्पण करते हैं। इस यात्रा में बोल-बम का नारा भक्ति के साथ साथ जोश भी भरता है। स्थानीय तौर पर यह कांवड़ यात्रा सोमवार के दिन अधिक होती है जब भक्त आधी रात को ही नदी स्नान कर कुछ किलोमीटर की यात्रा कर बोल-बम के नारे के साथ जलार्पण हेतु मंदिर पहुँचते हैं। यथा राँची शहर में स्वर्णरेखा नदी में स्नान कर कांवरिये पहाड़ी मंदिर में जल चढ़ाते हैं। परन्तु लम्बी दूरी वाली कांवड़ यात्रा में प्रतिदिन जलार्पण होता है यद्यपि सोमवार को भीड़ विशेष होती है। सबसे प्रसिद्ध कांवड़ यात्रा बिहार के सुल्तानगंज से झारखण्ड के बैद्यनाथधाम तक होती है जो लगभग १०० किलोमीटर है।सुल्तानगंज में गंगा का प्रवाह उत्तर की ओर है अतः यहाँ गंगा-स्नान एवं गंगाजल का बहुत ही विशेष महत्व है जहाँ का जल भोलेनाथ को बहुत प्रिय है। कांवरिये पैदल तो चलते ही हैं और वो भी बिना जूते चप्पल के। प्रतिदिन इनकी संख्या लाखों में पहुँच जाती है।सभी एक दूसरे को बम के नाम से सम्बोधित करते हैं। अधिकांश कांवरिये दो में से एक गंगाजल का पात्र देवघर के बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर अर्पण करते हैं जबकि दूसरा वहां से ४० किलोमीटर दूर बासुकीनाथ के नागेश ज्योतिर्लिंग पर।
यहाँ के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में काँवर यात्राएँ अलग अलग दूरियों के लिए होती हैं। शिव में भक्तों का अपार विश्वास ही है जो सावन में अनेक रूपों में नजर आता है।
सावन में शिव का रुद्राभिषेक विशेष मनोरथों को प्रदान करने वाला होता है। जल, गंगाजल, दूध और गन्ने के रस की शिवलिंग पर अविरल धारा से अभिषेक और रुद्र अष्टाध्यायी का ब्राह्मणों द्वारा निरन्तर पाठ रुद्राभिषेक को पूर्ण करता है। मिट्टी से बनाये गए "पार्थिव शिवलिङ्ग" का भी सावन में अभिषेक किया जाता है। [Parthiv Shivling - पार्थिव शिवलिङ्ग को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।]
शिवभक्त प्रातःकाल से ही शिवध्यान और शिवप्रातःस्मरण स्तोत्र का मनन करते हैं। फिर शिवमानस पूजा, शिवपंचाक्षरी स्तोत्र, शिवमहिम्न स्तोत्र, शिवषडक्षर स्तोत्र, रुद्राष्टक, लिंगाष्टक इत्यादि द्वारा शिव-आराधना करते हैं। शिवमहिम्न स्तोत्र के अनुसार :-
शिवभक्त प्रातःकाल से ही शिवध्यान और शिवप्रातःस्मरण स्तोत्र का मनन करते हैं। फिर शिवमानस पूजा, शिवपंचाक्षरी स्तोत्र, शिवमहिम्न स्तोत्र, शिवषडक्षर स्तोत्र, रुद्राष्टक, लिंगाष्टक इत्यादि द्वारा शिव-आराधना करते हैं। शिवमहिम्न स्तोत्र के अनुसार :-
महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः। अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्॥
अर्थात महेश से बड़े कोई देव नहीं, महिम्न स्तोत्र से बड़ी कोई स्तुति नहीं अघोर से बड़ा कोई मन्त्र नहीं और गुरु से बड़ा कोई तत्व नहीं। अघोर शिव को ही कहते हैं। कोई भी मन्त्र अघोर अर्थात शिव से बड़ा नहीं है। इसका अर्थ यह भी कहा जाता है कि अघोर मन्त्र से बड़ा कोई मन्त्र नहीं और "ॐ नमः शिवाय" को ही अघोर मन्त्र भी कहा जाता है। परन्तु शिव की स्तुति हेतु एक अघोर मन्त्र यह भी है,
ॐ अघोरेभ्योSथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः।
सर्वशर्वेभ्यो नमोस्तेSस्तु रुद्र रुपेभ्यः।।
(जो अघोर हैं, जो घोर हैं और जो घोर से भी घोरतर हैं, सर्वसंहारकरी रुद्र को मैं सभी रूपों में नमस्कार करता हूँ।)
इस प्रकार शिव-आराधना करते हुए संध्या पूजन के समय शिवताण्डवस्तोत्र का पाठ एवं शिव की आरती करते हैं। भगवान महादेव से प्रार्थना करते हैं,
ॐ पञ्चवक्त्राणि विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
(हम पाँच मुखों वाले महादेव को जाने, उनका ध्यान करें, वे रुद्र हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।)
सावन का पवित्र माह हमें सर्वव्यापी, कल्याणकारी परमात्मा शिव के सान्निध्य में जाने का और उनसे जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
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20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
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