कोकिल कवि विद्यापति |
कोकिल कवि विद्यापति की रचनाओं में वैसा ही रस और माधुर्य है जैसा बाबा तुलसीदास की रचनाओं में। ऐसे कवि सदियों में एक अवतरित होते हैं। उनकी रचनाओं के कारण ही आज मैथिली भाषा इतनी समृद्ध है। जितनी श्रद्धा बांग्ला भाषी लोग गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिए रखते हैं उतनी ही मैथिली भाषी लोग कवि विद्यापति के लिए रखते हैं। मिथिला क्षेत्र में इनके गीत और भजन जन जन में लोकप्रिय है। गोसाओनिक गीत इन कविवर द्वारा रचित ऐसा गीत है जिससे हर शुभ आयोजन का प्रारम्भ किया जाता है। यह गीत भगवती काली की स्तुति है जिसे नीचे दिया जा रहा है :-
गोसाओनिक गीत
जय -जय भैरवि असुर भयाउनि पशुपति भामिनी माया।
सहज सुमति वर दियओ गोसाओनी अनुगत गति तुअ पाया।
वासर रैन शवासन शोभित चरण चंद्रमणि चूड़ा।
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल कतओ ऊगलि कएल कूड़ा।
साँवर वरन नयन अनुरंजित जलद जोग फुल कोका।
कट कट विकट ओट पुट पाँडड़ि लिधुरी फैन उठि फोका।
घन घन घनन घुंघरू कत बाजय हन हन करय तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक पुत्र विसरु जुनि माता।
जय -जय भैरवि असुर भयाउनि , .. .... .. ....
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भावार्थ : हे भोलेनाथ की अर्धांगिनी, असुरों में भय पैदा करने वाली माता भैरवी ! आपकी जय हो, जय हो। हे भगवती मैं आपकी शरण आया हूँ, मुझे अच्छी बुद्धि का वरदान दें।
हे माता आप हमेशा शव के आसन पर विराजमान होती हैं और आपके चरण चंद्रमणि के सामान शोभित हैं। कभी आप दैत्यों को मारकर अपने मुख के अंदर मसल देती हैं कभी उन्हें कुल्ले जैसा उगल देती हैं।
माता आपके साँवरे वर्ण मुख पर लाल -लाल आँखें ऐसी प्रतीत होती हैं मानो बादलों के बीच लाल -लाल कमल खिले हों। दाँतों से भयानक कट -कट ध्वनि उत्पन्न हो रही है और होंठ पाण्डुर फूल की तरह लाल हैं उसपर लिपटे रक्त में बुलबुले दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
जब आप शीघ्रता से दैत्यों का संहार करती हैं तो कभी आपके पैरों के घुँघरू घन - घन - घनन आवाज़ करते हैं तो कभी आपके द्वारा घुमाने से कटार से हन -हन की ध्वनि आती है। हे माता ! यह विद्यापति कवि आपके चरणों का सेवक है, इस पुत्र को कभी भूलियेगा नहीं।
हे माता आप हमेशा शव के आसन पर विराजमान होती हैं और आपके चरण चंद्रमणि के सामान शोभित हैं। कभी आप दैत्यों को मारकर अपने मुख के अंदर मसल देती हैं कभी उन्हें कुल्ले जैसा उगल देती हैं।
माता आपके साँवरे वर्ण मुख पर लाल -लाल आँखें ऐसी प्रतीत होती हैं मानो बादलों के बीच लाल -लाल कमल खिले हों। दाँतों से भयानक कट -कट ध्वनि उत्पन्न हो रही है और होंठ पाण्डुर फूल की तरह लाल हैं उसपर लिपटे रक्त में बुलबुले दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
जब आप शीघ्रता से दैत्यों का संहार करती हैं तो कभी आपके पैरों के घुँघरू घन - घन - घनन आवाज़ करते हैं तो कभी आपके द्वारा घुमाने से कटार से हन -हन की ध्वनि आती है। हे माता ! यह विद्यापति कवि आपके चरणों का सेवक है, इस पुत्र को कभी भूलियेगा नहीं।
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