Monday, June 8, 2020

पौराणिक कथाओं में शल्य चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

देवराज इंद्र के सन्दर्भ में
देवराज इंद्र

       भारतीय इतिहास में सबसे चर्चित शल्य चिकित्सक (surgeon) सुश्रुत रहे हैं और पौराणिक कथाओं में अश्विनीकुमारद्वय। किन्तु कई और देवताओं को भी आयुर्वेद और शल्य चिकित्सा की जानकारी थी। बहुत कम लोगों को पता होगा कि देवराज इंद्र भी आयुर्वेद और शल्य चिकित्सा के जानकार थे। उनपर तीनों लोकों के बहुत सारे कामों का बोझ था इसीलिए आयुर्वेद के ज्ञाता होने पर भी उन्होंने इसका प्रयोगात्मक रूप अश्विनीकुमारों पर छोड़ रखा था। फिर भी कुछ ऐसे प्रसंग हैं जहाँ इंद्रदेव ने आयुर्वेद के प्रयोगात्मक रूप का उपयोग किया था। ऐसे ही कुछ प्रसंगों की हमलोग यहाँ चर्चा करेंगे पर पहले ये जान लें कि उन्हें ये विद्या मिली कैसे। 
      त्रिदेवों को तो सम्पूर्ण शाश्वत आयुर्वेद पता था ही। उनमें ब्रह्मा से यह विद्या दक्ष प्रजापति ने प्राप्त की। अश्विनीकुमारों ने इसे दक्ष प्रजापति से प्राप्त किया और देवराज इंद्र ने अश्विनीकुमारों से। अश्विनीकुमारों पर आयुर्वेद का पूर्ण भार देवताओं ने छोड़ रखा था और उन्हें देवताओं के वैद्य के रूप में जाना जाता है। परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में अन्य देवताओं ने भी इसका प्रयोग किया है। देवराज इंद्र ने जिन विशेष परिस्थितियों में इसका प्रयोग किया उनमें निम्नलिखित दो उल्लेखनीय प्रसंग हैं: -
(1) अपाला के चर्मरोग और उसके पिता के खालित्य (गंजेपन) का निवारण 
(2) परावृज ऋषि के अंधापन और पंगुरोग का निवारण 
   
  (1) अपाला के चर्मरोग और उसके पिता के खालित्य (गंजेपन) का निवारण 

   अपाला अत्रि ऋषि की पुत्री थी किन्तु वह चर्मरोग से पीड़ित थी। इसके कारण उसके पति ने अभागी कह कर उसका त्याग कर दिया था। वह अपने पिता के घर में रहने लगी। दुखी अपाला इंद्र की उपासना करने लगी और धीरे धीरे उसकी उपासना कठोर तपस्या का रूप लेने लगी। एकबार अपाला के मन में विचार आया कि देवराज इंद्र को सोमरस बहुत भाता है। क्यों न मैं उन्हें सोमरस अर्पण करुँ जिससे वे प्रसन्न होवें। सोमलता की खोज में वह नदी तट पर पहुँची। नहाकर जब लौट रही थी तो नदीतट पर उसे सोमलता मिल गयी। वह बहुत प्रसन्न हुई। उसने ऋग्वेद की एक ऋचा कन्यावाo (८/९१/१) से सोम की स्तुति की। उसने सोम को चबाया और चबाकर अन्य ऋचा असौ य एषिo (ऋग्वेद ८/९१/२) से इंद्र का आवाहन किया।  
       देवताओं को अपने भक्त के मन की अभिलाषा पता होती है। इंद्र समझ गए की अपाला उन्हें सोमरस पिलाना चाहती है। वे तुरंत उसके सामने आ गए किन्तु अपाला उन्हें पहचान न सकी। सोमलता चबाते समय उसके दांतों के घर्षण की मीठी ध्वनि आ रही थी। उसको लक्ष्य कर इंद्र ने पूछा "क्या पत्थरों से सोमरस पीसा जा रहा है ?" पहचान न पाने के कारण अपाला ने उत्तर दिया "नहीं" | यह सुनकर देवराज लौटने लगे। एकाएक अपाला के मन में संदेह हुआ।  वह बोली "आप लौटने क्यों लगे ? सोमरस पीने के लिए आप घर - घर पहुँचा करते हैं । आप मेरे घर चलिए, आपका अधिक सम्मान करुँगी। आपको सोमरस पिलाऊँगी और भुना हुआ जौ, गुड़ और अपूप भी दूंगी।" जब इंद्र उसके घर पहुंचे तो अपाला ने उन्हें पहचान लिया। उसने अपने मुँह में रखे सोम से कहा - "हे सोम ! तुम आये हुए इंद्र के लिए शीघ्र ही निचुड़ जाओ।" देवता भक्तवत्सल होते हैं। इंद्र ने उसकी इच्छा पूरी की और दिया हुआ सोमरस पी लिया। प्रसन्न हो कर बोले -"अपाले ! क्या चाहती हो? मैं तुम्हारी कामनाएँ पूर्ण करूँगा।"
    अपाला ने पहला वर माँगा - "पिताजी का सर गंजा हो गया है। उनका खालित्य मिटा दीजिये।" फिर दूसरा वर माँगा - "पिताजी का खेत ऊसर हो गया है। वह हरा भरा और फलों से लद जाये।" इंद्र ने उसकी दोनों इच्छाएँ पूर्ण कीं। अपने चर्मरोग से पहले उसने पिता के लिये वर माँगा। उसकी पितृभक्ति देखकर इंद्र ने उसके चर्मरोग को दूर करने का निश्चय किया। चर्मरोग को दूर करने के लिए शल्य - क्रिया का सहारा लिया। इसकेलिए उन्होंने अपने रथ के जुए के बीच के छेद में अपाला को डालकर तीनबार बाहर खींचा। अपाला की त्वचा तीन स्तर की थी। ऊपरी त्वचा शाही जैसी कंटीली, उसके नीचे मगरमच्छ जैसी मोटी खाल और उससे नीचे गिरगिट जैसी त्वचा थी। इंद्र द्वारा पहली बार खींचने पर शाही जैसी त्वचा हट कर मगरमच्छ जैसी त्वचा दिखने लगी। दूसरी बार खींचने पर मगरमच्छ जैसी त्वचा हटकर गिरगिट जैसी नजर आने लगी और तीसरी बार खींचने पर गिरगिट जैसी त्वचा भी हट गई और उसके नीचे की त्वचा को इंद्र ने सूर्य जैसा चमका दिया। किन्तु आश्चर्य की बात यह थी की इन शल्य - क्रियाओं में अपाला को कोई भी कष्ट न हुआ न वर्तमान में न भविष्य में। ऐसी चिकित्सा विस्मयकारी थी। 

(2) परावृज ऋषि के अंधापन और पंगुरोग का निवारण 

परावृज ऋषि अंधे और लंगड़े हो गए थे। उन्होंने भी तप से देवराज इंद्र को प्रसन्न किया।  इंद्र ने उनका अंधापन मिटा दिया और लंगड़ापन हटाकर चलने फिरने लायक बना दिया। इंद्र ने ऋषि की आकृति भी सुन्दर और आकर्षक बना दी। 

            तो यह था देवराज इंद्र का शल्य - कर्म जो बहुत कम लोगों को पता है किन्तु हमारे वेद - पुराणों में वर्णित है।  
-- प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण से साभार
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