Thursday, November 30, 2023

क्या प्रातः काल श्रीहनुमान जी का नाम नहीं लेना चाहिए ? - (हिंदी ब्लॉग)

फोटो (साभार गूगल)
           यह कभी सोचा भी न था कि कोई रामभक्त-श्रीहनुमान का प्रातः नाम लेने से मना भी करेगा। किन्तु आज कल सोशल मीडिया पर तरह तरह के ज्ञानी कुछ भी ज्ञान बाँटने आ जाते हैं। उन्हें बस शब्दार्थ दिख जाये बस। वाक्य का और बात का मर्म नहीं समझना न ही प्रसंग पर ध्यान देना। एक दिन रील (छोटे वीडियो) मोबाइल पर देख रहा था। एक रील में साधू वेशधारी बाबा ने ज्ञान देना शुरू किया कि प्रातः उठकर हनुमानजी का नाम नहीं लेना चाहिए अन्यथा दिन भर भोजन नहीं मिलेगा, ऐसा स्वयं हनुमानजी ने रामचरितमानस के सुंदरकांड में कहा है। वे निम्नलिखित चौपाईओं  का उद्धरण कर रहे थे ,

सुनहु बिभीषन  प्रभु कै रीती। करहिं  सदा  सेवक पर प्रीती।।
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।
प्रात  लेइ  जो   नाम  हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।
अस  मैं अधम सखा  सुनु  मोहू पर रघुबीर।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।
 
   ये पंक्तियाँ हनुमानजी ने विभीषण जी को आश्वस्त करते हुए तब कहीं जब विभीषणजी ने कहा कि हे पवनसुत ! मैं तो लंका में उसी तरह रहता हूँ जैसे अनेक दाँतों के बीच में बेचारी जीभ रहती है। हे तात, क्या कभी मुझे अनाथ जान कर श्रीराम मुझपर कृपा करेंगे ? तामसी शरीर है, कोई साधन नहीं है और न ही उनके पद कमल में आप जैसी प्रीती है। पर अब मुझे भरोसा हो चला है क्योंकि यदि उनकी कृपा न होती तो आप जैसे संत मुझे न मिलते। तब हनुमान जी ने उनको समझाते हुए उपरोक्त पंक्तियाँ कहीं कि हे विभीषण सुनिए, प्रभु का स्वभाव ही है कि वे अपने सेवक पर स्नेह रखते हैं चाहे वह कोई भी हो। अब मैं कौन सा परम कुलीन हूँ ? चंचल और सब तरह से हीन बन्दर हूँ। जो भी प्रातः हमारा नाम लेता है उसे उस दिन आहार भी नहीं मिलता।  
       अब हमें यहाँ इतना भी सरल नहीं होना चाहिये कि शब्दार्थ को ही सत्य मान लें। हमें प्रसंग और हनुमानजी का स्वाभाव भी याद रखना चाहिए। हनुमानजी बल, बुद्धि, विवेक और विद्या से परिपूर्ण हैं फिर भी उनमें लेश मात्र का भी अहंकार नहीं है। याद कीजिये, अशोक वाटिका में माता सीता को भरोसा दिलाने के लिए उन्होंने विशालकाय रूप दिखाया था,

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।।

पर फिर भी उन्होंने अहंकार नहीं विनम्रता दिखाई थी और कहा था - माता सुनो, मैं तो साखामृग (बन्दर) हूँ, बल-बुद्धि ज्यादा नहीं है पर प्रभु की कृपा से सब संभव है।  
        हनुमान जी की विनम्रता का एक और उदहारण है जब वे माता सीता का पता लगा कर श्रीरामजी के पास लौटते हैं। प्रभु प्रसन्न हो कर उन्हें गले से लगाते हैं और पास बिठाते हैं फिर पूछते हैं - हे हनुमान, भला रावण की लंका के विशाल दुर्ग को आपने कैसे जला डाला ? 
         यहाँ कोई दूसरा होता तो अपने बल-बुद्धि की खूब डींग हाँकता आखिर काम ही ऐसा किया था। उनके काम की प्रशंशा जामवन्त जी ने इस प्रकार रामजी से की, 

नाथ पवनसुत किन्हीं जो करनी । सहसऊँ मुख न जाई सो बरनी ।।

    अर्थात् हे नाथ, पवनसुत ने जो कार्य किया है उसका वर्णन हज़ारों मुख से भी नहीं किया जा सकता । पर श्रीहनुमानजी की विनम्रता और अहंकार रहित वाणी को देखिये। कहते हैं - प्रभु मैं तो शाखामृग हूँ, बहुत बल दिखाऊंगा तो एक डाल से दूसरे डाल पर कूदूंगा भला मेरी क्या औकात ? अगर मैंने समुद्र लांघ कर लंका जलाई, राक्षसों को मारकर वाटिका उजाड़ी तो इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है। प्रभु, यह सब आपका प्रताप है। 
           तो विनम्रतापूर्वक श्रीहनुमानजी जब स्वयं कोई नाम या क्रेडिट नहीं लेते या स्वयं को छोटा या अधम बताते हैं तो वास्तव में वैसा नहीं है, यह उनकी बड़ाई है। तो जब वे विभीषण को कहते हैं कि जो प्रातः हमारा नाम लेता है उसे दिनभर भोजन नहीं मिलता तो ऐसा सत्य में नहीं है। समाज में जो एक कहावत है कि प्रातः काल बन्दर का नाम लेने से दिनभर भोजन नहीं मिलता, उसी का सहारा लेकर महावीर हनुमान अपनी वाणी को विनम्रता से परिपूर्ण कर देते हैं। उसी समय वे स्वयं को कुलीन भी नहीं कहते, सब विधि से नीच चंचल बन्दर भी कहते हैं और तो और स्वयं को अधम भी कहते हैं। ऐसा है क्या ? भला श्रीहनुमान कोई साधारण बन्दर हैं? वे पवन देवता के पुत्र हैं, बचपन में ही आकाश में उड़कर सूर्य को निगलने वाले हैं, समुद्र लांघकर रावण जैसे महाबली के सामने ही उसकी लंका को जला डालने वाले हैं और उनके महानायक जैसे कारनामों से तो रामायण और रामचरितमानस भरे पड़े हैं। भारत का जन-जन श्रीहनुमानजी को पूजता है, क्यों? क्योंकि भगवान राम श्रीहनुमानजी के हृदय में बसते हैं। भले ही अवतारी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी इस धरती पर लीला पूर्ण कर सरयू माता की गोद में चले गए हों पर अमरता का वरदान पाये श्रीहनुमान जी में वे सदा बसते हैं। भगवान शिव का रुद्रावतार हैं वे ।
       श्रीहनुमान स्वयं राममय हैं। भला वे प्रातः स्मरणीय न होंगे तो और कौन होगा ?  
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44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Sunday, November 19, 2023

सप्तश्लोकी दुर्गा - Prayer of Durga in seven Shlokas- हिन्दी ब्लॉग

   
माँ दुर्गा दुर्गतिनाशिनी
 माँ दुर्गा की आराधना भक्तजन अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए करते हैं। इसके लिए श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ सर्वोत्तम है विशेषकर नवरात्रों में। किन्तु सात सौ श्लोकों जिनके आगे पीछे रात्रिसूक्त, देवीसूक्त, रहस्य आदि मिलाकर पढ़ना होता है, बहुत ही समय लेने वाला है जिन्हें नित्य पढ़ना व्यस्त रहने वाले गृहस्थजनों के लिए संभव नहीं है। अतः कलियुग में भक्तों के कल्याण के लिए भगवान शिव ने दुर्गा जी से ही पूछा कि कामनाओं की सिद्धि का उपाय बतायें। तब देवी ने "अम्बा स्तुति" नामक यह उपाय बताया जो सात श्लोकों में देवी की स्तुति है। यह कलियुग में सभी कामनों को पूर्ण करने वाला है अतः भक्तजन नित्य पूजा में इस सप्तश्लोकि दुर्गा का पाठ को शामिल करें। यहाँ मैं गीता प्रेस से प्रकाशित "श्रीदुर्गासप्तशती" पुस्तक के प्रारम्भ में दिए गए सप्तश्लोकी दुर्गा और उसके अर्थ को दे रहा हूँ :- 

अथ सप्तश्लोकी दुर्गा
शिव उवाच -
देवी त्वं भक्तसुलभे     सर्वकार्यविधायिनी। 
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रुहि यत्नतः।। 
देव्युवाच - 
शृणु  देव  प्रवक्ष्यामि    कलौ  सर्वेष्टसाधनम्।
मया  तवैव  स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते।। 

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः। 

ॐ ज्ञानिनामपि चेतान्सि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।1।। 

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।।2।।

सर्वमङ्गल      मङ्गल्ये       शिवे     सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमोSस्तु ते ।।3 ।।

शरणागतदीनार्त      परित्राण        परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते।।4।।

सर्वस्वरूपे      सर्वेशे      सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोSस्तु ते।।5।।

रोगानशेषानपहंसि  तुष्टा   रुष्टा   तु   कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।6।।

सर्वाबाधाप्रशमनं       त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।7।।

|| इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णा ||

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भावार्थ
शिवजी बोले - हे देवी ! तुम भक्तों के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो। कलियुग में कामनाओं की सिद्धि-हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक्-रूप से व्यक्त करो। 

देवी ने कहा - हे देव ! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो !उसका नाम है 'अम्बास्तुति'। 
         
          ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमंत्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्री दुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है।   

       वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींच कर मोह में डाल देती हैं।।1।।

     माँ दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवी ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए दयार्द्र रहता हो।।2।।  
 
      नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।।3।। 

       शरण में आये हुए दीनों एवं पीड़ितों  रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणि देवि ! तुम्हें नमस्कार है।।4।।

       सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से संपन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि ! सब भयों से हमारी रक्षा करो ; तुम्हें नमस्कार है।।5।।

         देवि !  प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।।6।। 

          सर्वेश्वरी ! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।।7।।

।।श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण।।
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39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




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14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

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05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

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Thursday, November 16, 2023

दैनिक शिव आराधना - हिंदी ब्लॉग

एक शिव-भक्त की नित्य प्रार्थना कम-से-कम क्या होनी चाहिए ? 

परमेश्वर शिव 🙏
  {Click here to read this post in English}
          एक शिव-भक्त के लिए शिव परमेश्वर हैं। वे सभी तीनों गुणों (सत, रज और तम) से परिपूर्ण सर्व-शक्तिशाली हैं। वे परम सत्य हैं, तारण करने वाले और परमानन्द के दाता हैं। यही कारण है कि शिव सबसे सुन्दर हैं। यह तथ्य संस्कृत के प्रसिद्ध विशेषण-समूह से प्रकट होता है जो शिव की विशेषता बताते हैं -
सत्यम शिवम् सुंदरम. शिव सर्वव्यापी हैं, अनादि हैं और अनन्त हैं। अर्थात वे हर स्थान पर हैं, न कोई उनका जन्म है और न उनका अन्त। इस ब्रह्माण्ड के जन्म से पहले से शिव हैं और जब इसका अन्त होगा तब भी वे रहेंगे क्योकि वे परमेश्वर हैं। शिव परब्रह्म परमात्मा हैं, उनका न आदि है न अंत है।

  इस ब्रह्माण्ड में हर जीव अपने माता -पिता से जन्म लेता है किन्तु शिव के साथ ऐसा नहीं है। वे स्वयं से हैं, इसीलिए उन्हें स्वयंभू या शंभू भी कहा जाता है। एक तरफ तो वे निर्गुण -निराकार ब्रह्म के रूप में इस ब्रह्माण्ड में हैं जिनको ध्यान में लाने के लिए योगीजन परम तप करते हैं तो दूसरी तरफ वे लोकगाथाओं और हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक गृहस्थ की तरह माने जाते हैं जो पत्नी पार्वती, पुत्र कार्तिक और गणेश, वाहन और द्वारपाल वृषभ नन्दी के साथ कैलाश पर्वत पर वास करते हैं। ये शिव -परिवार कहलाते हैं और पंच महादेव के नाम से भी जाने जाते हैं।  

                    शिवलिंग स्वयं भगवान शिव का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ इतिहासकार शिवलिंग को लिंग-आराधना से जोड़ते हैं किन्तु इसका गोल आकार वस्तुतः ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। शिव अर्धनारीश्वर भी कहलाते हैं क्योंकि उनका आधा बायाँ भाग देवी पार्वती हैं जो कि शिव की शक्ति भी हैं। अतः पार्वती के साथ शिव को शिव-शक्ति भी कहा जाता है। जिस तरह यह ब्रह्माण्ड बिना उर्जा या शक्ति के नहीं हो सकता, उसी तरह शिव को भी शक्ति से अलग नहीं किया जा सकता। शिवलिंग में भी देवी पार्वती का स्थान शिवलिंग के निचले भाग में होता है। अतः जब भी शिव की पूजा होती है भगवती पार्वती को भी पूजा जाता है और जब भगवती की पूजा होती है तो शिव को भी पूजा जाता है। शिव का पार्वती से ऐसा अपार प्रेम है कि कुँवारी कन्यायें भगवान शिव की तरह ही वर की कामना करती हैं। संक्षेप में भगवती की पूजा सप्तश्लोकी दुर्गा स्त्रोतों के पाठ से भी की जा सकती है जिसे मैं आगामी ब्लॉग पोस्ट में लिखूंगा।  

         कभी-कभी शिव को पाँच सिर वाले भगवान के रूप में भी पूजा जाता है जिसमें प्रत्येक सिर के अलग अलग नाम होते हैं। इनके लिए शिव-गायत्री इस प्रकार है,   

ॐ पञ्चवक्त्राणि विद्महे महादेवाय धीमहि 

तन्नो          रुद्रः         प्रचोदयात  । ।

      भगवान शिव के अनंत प्रार्थनाएं, कहानियाँ, बखान और पूजा विधि हैं किन्तु हमलोग यहाँ शिव की नित्य आराधना की चर्चा करेंगे जो संतुष्टि देनेवाला और संक्षिप्त हो ताकि फिर व्यक्ति अपने नित्य के व्यवसाय में लग जाये। पर जो भी छोटी सी पूजा करे पूर्ण भक्ति-भाव, विश्वास और ध्यान से करे। मैंने इसे अंग्रेजी ब्लॉग-पोस्ट What-lord-shiva-likes? में भी लिखा है।

जब शिव-भक्त सबेरे बिस्तर से उठें

          बिस्तर से उठते ही सर्वप्रथम सुबह में शिव को ध्यान में लाते हुये उन्हें प्रणाम करें। इसके लिए एक बहुत ही प्यारा स्तोत्र है "शिव प्रातः स्मरण स्तोत्रं" जिसे यादकर नित्य प्रातः पढ़ा जा सकता है। मैंने इसे अपने ब्लॉग पोस्ट Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण)!  (link) में रोमन लिपि और संस्कृत में अर्थ सहित लिखा है। मैं पुनः इस स्तोत्र को यहाँ संस्कृत में दे रहा हूँ :-  

           इसके बाद जब भक्त स्नान कर पवित्र हो कर पूजा के लिए बैठें तो एक दीप जलायें। जल से शरीर-आसन की शुद्धि के पश्चात् शिव का ध्यान श्लोक पढ़कर करना चाहिए। शिव के विभिन्न स्वरुप के लिए कई अलग अलग श्लोक हैं। यहाँ "महामहेश्वर शिव" के ध्यान का श्लोक दे रहा हूँ :-  


     एक लोटा जल के साथ बिल्व - पत्र , "दूब घास" अग्रभाग (दूर्वा दल), चन्दन लेप, आक और धतूरा के फूल शिवलिंग पर अर्पित किये जाने चाहिए। कम-से-कम जल और बेलपत्र अवश्य अर्पित करें। कुछ भोग और आचमन जल दें फिर आता है मन्त्र-जाप का समय। अक्षमाला की पूजा करें "ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः" मन्त्र से (मन्त्र इस लिंक में दिया हुआ है). शिव पंचाक्षरी मन्त्र से अक्षमाला पर कम-से-कम पांच बार जप करें अगर समय मिले तो 108 बार करें।  

"ॐ नमः  शिवाय "

      फिर ग्यारह बार निम्न मन्त्र का जाप करें :- 

"ॐ अघोरेभ्यSथ घोरेभ्य घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः । 

सर्वशर्वेभ्यो        नमस्तेस्तु           रूद्ररुपेभ्यः ।।"

 (शिव-महिम्न स्तोत्र में पुष्पदंत कहते हैं कि इस अघोर मन्त्र से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है।) 

          अब आता है भगवन शिव की पूजा का समय और "शिव मानस पूजा" से अधिक उपयुक्त और क्या होगा ? मैंने इसे रोमन और देवनागरी लिपि में अर्थ सहित ब्लॉग में लिखा है जिसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है - Shiva_Manas_Puja. मैं पुनः यहाँ संस्कृत श्लोकों को JPEG फॉर्मेट में दे रहा हूँ:- 
चित्र में शिव-मानस पूजा
           अक्षमालिका की पुनः पूजा करते हुए कम-से-कम ग्यारह बार महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करना चाहिए। यह नीचे दिया गया है:- 

"ॐ हौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्  मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ "

            अंत में आरती से पहले निम्नलिखित प्रार्थना करें, 

वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगतकारणं,

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनामपतिं

वन्दे सूर्य शशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुंदप्रियं

वन्दे भक्त जनाश्रियंच वरदं वन्दे शिवं शंकरं  

 अंत में भूल-चूक के लिए क्षमा मांगते हुए निम्न स्तोत्र पढ़ें :- 

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेSहर्निशम् मया

दसोSयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। 

आवाहनं न जानामि   न जानामि विसर्जनं

पूजां चैव न जानामि   क्षम्यतां परमेश्वर ।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं   भक्तिहीनं   सुरेश्वर

यत्पूजितं  मया  देव  परिपूर्णं   तदस्तुमे।  

 इसके बाद शिव को दीप-धूप दिखाते हुए आरती करें।  आजकल हिंदी में आरती गीत साथ में गाने का प्रचलन है।  यदि चाहें तो "ॐ जय शिव ओंकारा .." से आरती गए सकते हैं। अब भगवान शिव को पूजा समर्पित करते हुए भूमि पर सिर लगा कर सभी पापों के लिए क्षमा मांगें :-

पापोSहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः

त्राहिमाम बाबा भोलेनाथ सर्वपाप हरोहरः।

         यह संक्षिप्त शिव-पूजा विधि उनलोगों को अपनानी चाहिए जिन्हें समय का आभाव है। कम-से-कम सावन माह में इतनी पूजा अवश्य करें।  

      अब आती है संध्या पूजा जब महिलाएँ दीप जला कर घर के कोने-कोने और तुलसी पिण्डा को दिखाती हैं तब शिव-भक्त को धूप-दीप  दिखा कर निम्नलिखित चार पंक्तियों की स्तुति पढ़नी चाहिए।  

नमस्तुंग शिरश्चुम्बि चन्द्र चामर चारवे

त्रैलोक्य नगरारम्भ मूलस्तम्भाय शम्भवे

चन्द्राननार्ध   देहाय   चन्द्रांशुशित  मूर्तये

चन्द्रार्कानल नेत्राय  चन्द्रार्ध शिरसे नमः।

           पूजा समाप्ति के समय संध्या को रावण द्वारा रचित शिव-तांडव स्तोत्र पढ़ने का बोला गया है किन्तु यह लम्बा और कठिन संस्कृत में है जिसे हर कोई नहीं पढ़ सकता। ऐसे में अंत में कुछ शिव-भजन गा कर संध्या पूजा को विराम देना चाहिए फिर क्षमा हेतु ऊपर लिखित "क्षमा प्रार्थना" पढ़ना चाहिए।  
 
        अगर इन स्तोत्रों और श्लोकों को याद कर लिया जाए तो इस दैनिक शिव पूजा में दस मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता। अतः इसे नित्य की आदत बनायें। यदि यह संभव न हो तो कम से कम सावन के पवित्र माह में शिव कृपा हेतु अवश्य अपनाएं।   
||शिवार्पणम्||     

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