One of the Shloka of Rigved praising Ashwinikumrs |
एक बार उपमन्यु गुरु की आज्ञा से किसी कार्यवश जंगल गए। न जाने क्यों उन्होंने आक के पत्ते खाये। इससे उनके पेट में भीषण जलन होने लगी और कुछ देर में उनके आँखों की ज्योति चली गयी। अंधे हो जाने के कारण वे एक कुँए में गिर पड़े। शाम को जब वे आश्रम पर नहीं पहुँचे तो गुरु धौम्य चिंतित हुए। फिर स्वयं ही उपमन्यु का नाम पुकारते जंगल में गए। जब उपमन्यु ने सुना तो कुँए से ही आवाज़ दी,"गुरूजी, मैं कुँए में गिर पड़ा हूँ। स्वयं निकल नहीं सकता।" गुरु धौम्य ने जब जाना की आक के पत्ते खाने से इसकी आँखें ख़राब हो गई हैं तो उन्होंने उपमन्यु से कहा,"तुम दयालु और परोपकारी अश्विनीकुमारों की स्तुति करो। वे ही तुम्हारा कल्याण कर सकते हैं। "
गुरु की आज्ञा से उपमन्यु ने ऋग्वेद के मन्त्रों से अश्विनीकुमारों की स्तुति की। मनोहर स्तुति सुन कर अश्विनीकुमार शीघ्र ही पधारे। उन देवों ने उपमन्यु को सांत्वना दी और कहा,"उपमन्यु ! तुम ये पुआ खा लो।" किन्तु कष्ट में होने पर भी उपमन्यु अपने संस्कार नहीं भूले थे। उन्होंने उत्तर दिया कि ब्रह्मचारी होने के कारण बिना गुरु को निवेदन किये वे पुआ नहीं खा सकते। अश्विनीकुमार उनकी गुरु-भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए। उन देव-वैद्यों ने न सिर्फ उपमन्यु को पुनः दृष्टि प्रदान की बल्कि उसके दाँत सोने के बना दिए। इतना ही नहीं, उसी क्षण सारे वेद और धर्मशास्त्र उसकी बुद्धि में डाल दिए।
Sukta of Rigved |
इसी प्रकार कण्व ऋषि की भी कथा है। असुर ऋषियों पर अत्याचार करते रहते थे। एक बार कण्व ऋषि भी असुरों के कहर का शिकार हो गए। न सिर्फ ऋषि को प्रताड़ित किया बल्कि आग में उनकी आँखें भी झुलसा दीं। इससे वे अंधे हो गए थे और कुछ भी देख नहीं पाते थे। जब उनका कष्ट असहनीय हो गया तो अश्विनीकुमारों की शरण में गए।अश्विनीकुमारों को उन पर दया आ गयी और उन्होंने कण्व ऋषि के आँखों की भी चिकित्सा की और पुनः उनकी दृष्टि वापस लौटाई।
कवि नामक व्यक्ति की भी आँखों की ज्योति अश्विनीकुमारों की कृपा से पुनः वापस हुई थी। ये उदहारण ऋग्वेद में उल्लिखित हैं।
ऋग्वेद में ही वधृमति नामक सती महिला का भी प्रसंग है जो पुत्र के न होने से अत्यन्त दुखी रहती थी। अश्विनीकुमारों की दयालुता ज्ञात होने पर वह भी उनकी शरण में गयी। अपनी ख्याति के अनुरूप ही अश्विनीकुमार-द्वय ने वधृमति पर भी कृपा की और उसे "हिरन्यहस्त" नामक अतिसुन्दर और योग्य पुत्र प्रदान किया।
वेदों और पुराणों में अश्विनीकुमारों का उल्लेख एक दक्ष शल्य चिकित्सक (सर्जन) के रूप में मिलता है जो न सिर्फ दयालु, परोपकारी एवं करुणा करने वाले देवता हैं बल्कि दक्ष-प्रजापति से प्राप्त आयुर्वेद की विद्या का जनहित के लिए व्यापक उपयोग किया। इनके आवाहन, स्तुति तथा कई कृत कार्यों का विवरण ऋग्वेद के सूक्त ११७ से १२० तक में देखे जा सकते हैं।
वैदिक काल में अश्विनीकुमारों की बहुत ही लोकप्रियता थी।वेदों को ज्ञान का भण्डार कहा गया है। आज लोग उस ज्ञान को भूलते जा रहे हैं। वेदों से प्रेरणा ले कर हम भी उनकी आराधना करें। शारीरिक एवं मानसिक कष्ट के समय दयालु सूर्य पुत्र अश्विनीकुमारों का स्मरण और स्तुति शुभ फलदायक है।
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20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
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