Tuesday, December 3, 2024

द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरणम् - बारह ज्योतिर्लिङ्ग का स्मरण

(यह प्रसिद्ध स्तोत्र एवं अर्थ गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक 'शिवस्तोत्ररत्नाकर' से ली गयी है)

द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरणम्

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् |
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ||1||

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम् |
सेतुबन्धे तु रामेशं    नागेशं दारुकावने ||2||

वाराणस्यां तु विश्वेशं    त्रयंबकं गौतमीतटे |
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ||3||

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः |
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ||4|| 
(इति द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरणम् संपूर्णम्)

12 ज्योतिर्लिङ्ग (चित्र गूगल से साभार)


भावार्थ :--  
1. सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) - में श्रीसोमनाथ  
2. श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, 
3. उज्जयिनी (उज्जैन) - में श्रीमहाकाल, 
4. ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर ||1|| 
5. परली में वैद्यनाथ 
6. डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर,
7. सेतुबन्ध में श्रीरामेश्वर,
8. दारूकावन में श्रीनागेश्वर ||2||
9. वाराणसी (काशी) - में श्रीविश्वनाथ,
10. गौतमी (गोदावरी) - के तट पर श्रीत्रयम्बकेश्वर,
11. हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ, और
12. शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर को स्मरण करना चाहिए ||3||
      जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्याकाल में इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों के नामों का स्मरण करता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिङ्गों के स्मरण मात्र से नष्ट हो जाता है ||4||
|| इस प्रकार द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरण सम्पूर्ण हुआ ||
            


टिपण्णी :-- 

१. श्रीसोमनाथ काठियावाड़ प्रदेश के अंतर्गत प्रभास क्षेत्र में विराजमान हैं। 
२. यह पर्वत (श्रीशैल) मद्रास प्रान्त के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर है, इसे दक्षिण का कैलास कहते हैं। 
३. श्रीमहाकालेश्वर मालवा प्रदेश में क्षिप्रा नदी तट पर उज्जैन नगर में विराजमान हैं, उज्जैन को अवंतिकापुरी भी कहते हैं। 
४. ॐकारेश्वर का स्थान मालवा प्रान्त में नर्मदा नदी के तट पर है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है, वहाँ से यह स्थान ६ मील दूर है। यहाँ ॐकारेश्वर और अमलेश्वर के दो पृथक -पृथक लिंग हैं, परन्तु ये एक ही लिङ्ग के दो स्वरुप हैं। 
५. आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के हैदराबाद नगर से पहले परभनी नामक जंक्शन है, वहाँ से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ नामक ज्योतिर्लिंग है। शिवपुराण में 'वैद्यनाथं चिताभूमौ' ऐसा पाठ है, इसके अनुसार संथाल परगने में इo आईo रेलवे के जसीडीह स्टेशन के पास वाला वैद्यनाथ - शिवलिङ्ग ही वास्तविक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग सिद्ध होता है ; क्योंकि यही चिताभूमि है।
६. श्रीभीमशङ्कर का स्थान मुंबई -से पूर्व और पुणे से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्यपर्वत पर है। यह स्थान लारी के रास्ते से नासिक से लगभग १२० मील दूर है। सह्यपर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। इससे अनुमान होता है कि कभी यहाँ डाकिनी और भूतों का निवास था। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशङ्कर ज्योतिर्लिङ्ग असम के कामरूप जिले में एo बीo रेलवे पर गौहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि नैनीताल जिले के उज्जनक नामक स्थान में एक विशाल शिवमंदिर है, वही भीमशंकर का स्थान है। 
७. श्रीरामेश्वर तीर्थ प्रसिद्ध है, यह तमिलनाडु (मद्रास) प्रान्त के रामनद जिले में है। 
८. यह स्थान बड़ौदा राज्यान्तर्गत गोमतीद्वारका से ईशान कोण में १२-१३ मील की दूरी पर है। कोई-कोई निजाम हैदराबाद राज्य के अंतर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिङ्ग को ही 'नागेश्वर' ज्योतिर्लिङ्ग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से १७ मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिङ्ग ही नागेश ज्योतिर्लिङ्ग है। 
९. काशी के श्री विश्वनाथ जी प्रसिद्ध ही हैं। 
१०. यह ज्योतिर्लिङ्ग महाराष्ट्र के नासिक जिले में नासिक-पञ्चवटी से (जहाँ सूर्पणखा की नाक कटी थी) १८ मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के किनारे है। 
११. श्रीकेदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है। शिखर के पूर्व की ओर अलकनंदा के तट पर श्रीबदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्रीकेदारनाथ विराजमान हैं। यह स्थान हरद्वार से १५० मील और ऋषिकेश से १३२ मील दूर है। 
१२. श्रीघुश्मेश्वर को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गाँव के पास है।                        
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