Sunday, December 10, 2023

श्रीगणपति की बारह नाममाला - शुभकारी एवं विघ्नहारी -(हिंदी ब्लॉग)

गणेशजी (फोटो :सौजन्य इंटरनेट)
    प्रथमपूज्य श्रीगणेश बुद्धि, रिद्धि,सिद्धि, शुभता और लाभ के दाता तो हैं ही, वे विघ्नहर्ता भी हैं। किसी भी पूजा या शुभ मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम इनका ही आह्वान और इनकी ही पूजा की जाती है। जिस प्रकार किसी मन्त्र में पहला अक्षर प्रणव अक्षर ॐ होता है उसी प्रकार पूजा में श्रीगणेश का प्रथम स्थान है। इनकी पूजा से ही कोई पूजा प्रारम्भ होती है। इसीलिए कहावत भी बनी "श्रीगणेश करना" अर्थात प्रारम्भ करना। 
         श्रीगणेश जी की पूजा में कई मंत्र और श्लोक बोले जाते हैं। उनमें सबसे प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है 👇

"वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। 
निर्विघ्नं कुरु में देव  सर्वकार्येषु सर्वदा।।"

इसके अतिरिक्त ये मन्त्र भी लोकप्रिय हैं :-

 "विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय। 
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमः ते।"

और 

एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।

और 

"एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दंती प्रचोदयात।।"

           किन्तु आज मैं आपको श्रीगणेश जी के बारह नाम वाली स्तुति बताता हूँ जो किसी पूजा, कहीं जाने के समय या किसी शुभ कार्य से पहले पढ़ सकते हैं। यदि संस्कृत में पढ़ने में समस्या हो तो हिंदी में ही ये बारह नाम बोलकर श्रीगणपति को प्रणाम करें। आपके कार्य अथवा पूजा में सफलता अवश्य मिलेगी। नीचे के श्लोक संख्या 1 से 5 तक यही बारह नाम वाली श्रीगणेश स्तुति  है। पूरी स्तुति मङ्गलम् कहलाती है जो पूजा या मांगलिक कार्यों के पहले पाठ की जाती है। 

मङ्गलम्

स  जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कज स्मरणम् ।
वासरमणिरिव तमसां   राशीन्नाशयति  विघ्नानाम् ।1।
 सुमुखश्चैकदन्तश्च           कपिलो          गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च     विकटो      विघ्ननाशो    विनायकः ।2।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो          भालचन्द्रो          गजाननः।
द्वादशैतानि     नामानि     यः  पठेच्छ्ऋणुयादपि।3।
विद्यारम्भे     विवाहे     च     प्रवेशे     निर्गमे    तथा।
संग्रामे    सङ्कटे    चैव   विघ्नस्तस्य    न     जायते।4।
शुक्लाम्बरधरं     देवं           शशिवर्णं     चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं                    ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये।5।

व्यासं वसिष्ठनप्तारं  शक्तेः पौत्रमकल्मषम्।
पराशरात्मजं वन्दे  शुकतातं तपोनिधिम्।6।
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये   वासिष्ठाय  नमो नमः।7।
अचतुर्वदनो    ब्रह्मा    द्विबाहुरपरो    हरिः।
अभाललोचनः  शम्भुर्भगवान् बादरायणः।8।
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     अर्थात - उन गजवदन देवदेव की जय हो जिनके कमलरुपी चरणों का स्मरण विघ्नसमूह को इस प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य अंधेरों का नाश कर देते हैं। जो पुरुष विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निकलने के समय, संग्राम और संकट के समय - सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, गजानन - श्री गणेश के इन बारह नामों का पाठ करते हैं या श्रवण करते हैं उनके काम में विघ्न  नहीं होता। चन्द्रमा के समान वर्ण वाले चार भुजाधारी प्रसन्न-वदन देव जो श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, उन गणेशजी का ध्यान मात्र करने से सारे विघ्न शांत हो जाते हैं। (श्लोक संख्या 1 से 5 तक)  
       जो वसिष्ठ जी के नाती (प्रपौत्र), शक्ति के पौत्र, पराशरजी के पुत्र तथा शुकदेवजी के पिता हैं उन निष्पाप, तपोनिधि श्रीव्यासजी की मैं वन्दना करता हूँ।6। 
       विष्णुरूप व्यास अथवा व्यासरूप विष्णु को नमन है। वसिष्ठजी के वंशज और ब्रह्मज्ञान के निधि व्यासजी को बारम्बार नमस्कार है। (वेद व्यास जी नारायण के 24 अवतारों में से एक हैं)।7।  
        भगवान वेद व्यासजी (बादरायण) बिना चार सिर वाले ब्रह्मा हैं, वे दो भुजाओंवाले हरि हैं तथा ललाटलोचन (तीसरे नेत्र) के बिना शम्भू हैं - उनको नमस्कार है।8।  

(स्रोत :गीता प्रेस की पुस्तक स्तोत्ररत्नावली)

























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