Sunday, August 19, 2018

शनि की पूजा -क्या करें, क्या न करें। The worship of God Shani, What to do & what not!

शनि सिंगणापुर
            शनि देव को सूर्य और छाया का पुत्र माना जाता है। कुछ लोग इन्हें शिव का अवतार तो कुछ इन्हें बलराम और रेवती की संतान मानते हैं। परन्तु अधिसंख्य धर्मग्रंथों की मान्यता है कि ये सूर्य एवं छाया के पुत्र हैं। भगवान शिव इनके गुरु हैं तथा श्रीकृष्ण इष्ट देव। परम शक्तिशाली शनि को शिव ने न्यायाधीश का कार्य सौंपा। वे नियमपूर्वक बिना किसी पक्षपात या दया के समस्त प्राणियों को उनके गलत कार्यों की सजा देते हैं। यही कारण है कि मनुष्य उनसे भयभीत रहते हैं। शनि से भय का अन्य कारण है शनि की दृष्टि। चाहे ज्योतिष शास्त्र के शनि ग्रह की दृष्टि हो या न्यायाधीश देवता शनि की दृष्टि दोनों ही अशुभ और खतरनाक हैं। शनि देवता की अशुभ दृष्टि का कारण उनको पत्नी द्वारा दिया गया श्राप है। पुत्र प्राप्ति की कामना से तेजश्विनी पत्नी जब उनके पास आयीं तो अपने इष्टदेव के ध्यान में लीन होने के कारण शनि ने उन्हें न देखा। क्रोध में पत्नी ने शाप दिया कि जिस पर भी तुम्हारी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा। तब से सभी शनि की दृष्टि से बचते हैं। कहा जाता है की शनि की दृष्टि जिस पर भी पड़ी उसे कष्ट झेलना पड़ा। बाल - गणेश को जब देखा तो उनका सर कट गया। कहा जाता है कि अपराजेय और शिव एवं ब्रह्मा से प्राप्त वरदान के बावजूद रावण को मृत्यु को प्राप्त होना पड़ा जिसका कारण शनि की दृष्टि ही थी। यहाँ तक कहा जाता है कि शनि के गुरु शिव पर भी उनकी दृष्टि पड़ गयी थी जिसके कारण शिव को भी बैल बन कर भटकना पड़ा था। शनि ग्रह की भी दृष्टि ज्योतिष शाश्त्र में अनिष्टकारी मानी जाती है किन्तु वहाँ कुछ परिस्थितियों में यह लाभकारी भी हो सकती है परन्तु शनिदेव की दृष्टि कभी लाभकारी नहीं हो सकती। यही कारण है कि कुछ दसकों पहले तक शनि की मूर्ति पूजा उस प्रकार नहीं की जाती थी जिस प्रकार अज्ञानतावश अब प्रचलन में है। दो तीन दसकों पहले तक बिहार (झारखण्ड सहित), बंगाल, ओडिशा एवं आस पास  राज्यों में शनि का शायद ही कोई मंदिर होगा। शनि का मंदिर होगा तो मूर्ति स्थापित की जाएगी, मूर्ति में आँखें होंगी और सामने भक्त खड़ा होगा तो शनि की दृष्टि भक्त पर पड़ेगी। शनि भक्त से कितना भी प्रसन्न क्यों न हों, शाप के कारण तो अशुभ की ही संभावना होगी। यही कारण है कि पहले शनि के मंदिर में शनि की पूजा नहीं की जाती थी। ज्योतिष में शनि ग्रह को शनि देव से जोड़कर इतना भय फैलाया गया कि आज हर मोहल्ले में आपको शनि मंदिर शनि की प्रतिमा के साथ मिलेंगे। परन्तु ज्ञानी पुरुषों से पूछें वे कहेंगे - उस शनि मंदिर में न जाएँ जिसमें प्रतिमा की खुली आँखे हों। विश्व प्रसिद्ध शनि -सिंगणापुर का उदहारण लें।  वहाँ शनि देव की मूर्ति नहीं है बल्कि शनि देव का प्रतिक है जिसमें आँखें नहीं हैं। 
             अब यह जानें कि बिना मंदिर में गये क्या उपाय हैं जिनसे शनि देव प्रसन्न हों और उनकी शापित दृष्टि भी न पड़े। बल्कि ज्यादा अच्छे उपाय हैं।हम पहले यह देखें कि शनि से सम्बंधित क्या कथाएं है, किन्होंने उनका सामना किया और किन्हें शनि का आशीर्वाद मिला। उपाय और कारण नीचे दिए हैं:-

1. शनि की पूजा का स्थान शनि का मंदिर नहीं बल्कि पीपल का वृक्ष है। पीपल में भगवान विष्णु का निवास है और भगवान् विष्णु शनि देव के इष्टदेव हैं। पीपल के पेड़ में जल डालना और सरसों तेल के दीपक रखना शनि के दुष्प्रभावों को दूर करता है। 

2. शनि की स्तुति - दशरथ द्वारा रचित शनि की स्तुति प्रभावकारी है। राजा दशरथ अपनी प्रजा को शनि के प्रकोप से बचाने के लिए उनसे युद्ध करने पहुँच गए। पूरी दुनिया जिस शनि से भय खाती थी उनके सामने दशरथ को बिना भय के खड़ा देख स्वयं शनि अचंभित हुए और जब प्रजा की भलाई हेतु उन्हें आया देखा तो प्रसन्न हो उन्हें वरदान भी दिया। यह देख राजा दशरथ ने शनि -स्तोत्र से उनकी स्तुति की, तब शनि देव और भी प्रसन्न हुए और उन्हें अतिरिक्त वरदान दिया। दशरथ की स्तुति चित्र रूप में यहाँ दे रहा हूँ।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र

3. शिव उपासना। शिव शनि के गुरु हैं और जिस पर शिव की कृपा हो उससे शनि भी प्रसन्न रहते हैं। बल्कि यों कहें कि जिस पर शिव की कृपा हो उसका कोई ग्रह कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शिव आशुतोष हैं जल्द प्रसन्न होने वाले। शिव पर शनिवार के दिन नीला पुष्प यथा अपराजिता (Butterfly Pea) या नीली रत्न इस मन्त्र के साथ समर्पित करें - "ह्रीं ॐ नमः शिवाय"। 

4. नित्य शमी वृक्ष (Shami Tree) की पूजा, जलार्पण, काला तिल अर्पण और सरसों तेल के दीपक दिखाना - ये शनि की अशुभ दृष्टि में काफी कमी लाता है।

5. भगवान् गणेश (Ganesha) को शमी -पत्र अर्पित करने से भी शनि की बाधा दूर होती है। 

6. शनि मन्त्रों का जाप - सबसे प्रचलित शनिमंत्र है -"ॐ शं शनैश्चराय नमः", अन्य मन्त्र है - "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः"| शनि का बीज मन्त्र है - ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः तथा वेद मन्त्र है -  प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.ॐ स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम: - इन मन्त्रों का निश्चित संख्या में जाप अति लाभकारी होता है। योग्य ज्योतिषाचार्य से संपर्क कर यह जानें कि शनि का दुष्प्रभाव तो नहीं चल रहा, यदि हाँ, तो उचित होगा कि किसी योग्य पंडित जी को मन्त्र जाप का संकल्प दे दें। यदि स्वयं करना हो तो प्रतिदिन 108 बार जप करें। 

7. शनि ग्रह से सम्बन्धित रत्न यथा नीलम, जमुनिया, नीली, आदि अथवा बिच्छू बूटी या शमी वृक्ष (Shami Tree) की जड़ को उचित पूजा, मन्त्र जाप और समय के साथ दाहिने हाथ में धारण करने से शनि पीड़ा में काफी कमी आती है। 

8. दान - शनिवार को सरसों तेल, काली उरद, काला तिल, चना, भैंस, लोहे का सामान, इत्यादि दान करना लाभकारी होता है। 

9. शनि के सिद्ध पीठों की यात्रा एवं पूजा जिसमें पिंड पर सरसों तेल चढ़ाना भी शामिल है। भारत में शनि के मुख्यतः तीन सिद्ध पीठ हैं:-
     (i) शनि सिंगणापुर का शनि मंदिर  
     (ii) ग्वालियर, मध्य-प्रदेश का शनिश्चरा मंदिर  
    (iii) उप्र के कोसी से छः किमी दूर नंदगाँव के पास कोकिला वन में शनि - मंदिर। 
     
10. सबसे प्रभावकारी एवं महत्वपूर्ण उपाय है रामभक्त हनुमान की पूजा। इसके पीछे है हनुमान को शनि द्वारा दिया गया वरदान। जब शनि ने हनुमान के साथ जबरन युद्ध किया तो शनिदेव की आशा के विपरीत हनुमान ने अपनी पूँछ में शनि को लपेट कर रामसेतु पर दौड़ गए। शनिदेव बेबस और घायल होकर हनुमान से छोड़ने का अनुरोध करने लगे। हनुमान ने उन्हें मुक्त किया। पश्चाताप में शनि ने हनुमान को वरदान दिया कि जो भी आपकी पूजा करेगा, आपकी भक्ति करेगा उसे शनि की पीड़ा नहीं होगी। 
        अतः शनिवार को हनुमान मंदिर जाएँ, महावीर हनुमान की पूजा करें, चालीसा, अष्टक एवं बजरंग -बाण से स्तुति करें, आरती करें तथा हनुमान जी को उनके बल -पराक्रम की याद दिलाते हुए विनती करें कि वे शनि की ग्रह - पीड़ा दूर करें।   
       आजकल यह देखने में आता है कि शनिवार को कुछ लोग व्हाट्सएप्प (Whatsapp) पर मित्रों -सम्बन्धियों को शनि देव का चित्र भेजते हैं किन्तु यह भी उसी कारण से उचित नहीं है जिस कारण से मूर्तिवाले शनि मंदिर में जाना। अतः शनिवार को मित्रों -सम्बन्धियों को सुप्रभात (Wish करने) कहने के लिए महावीर हनुमान जी का चित्र भेजें, शनिदेव का नहीं। और उन्हें भी ऐसा ही करने कहें।  
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