Saturday, October 18, 2014

संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

।।ॐ।। 

। । श्रीयंत्र। ।
श्रीसूक्तम् द्वारा लक्ष्मी पूजन हेतु 

               प्रतिदिन हमलोग अपने ईष्टदेवता, पंचदेवता, कुलदेवता एवं अन्य देवों का पूजन तो करते ही हैं। किन्तु कुछ अवसरों पर विशेष देवी/देवता का  कुछ विशेष पूजन करने की इच्छा होती है और करना भी चाहिए। दीपावली ऐसा ही एक अवसर है जिसमे माँ लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है। हर व्यक्ति माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहता है ताकि उसके घर में सुख एवं समृद्धि आये एवं बनी रहे। माँ लक्ष्मी की विस्तृत पूजा तो जानकार पंडित से करानी चाहिए किन्तु इन विशेष अवसरों पर जानकार पंडित जी की मांग ज्यादा होती है और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं। ऐसे में स्वयं ही निष्ठापूर्वक संक्षिप्त विधि से लक्ष्मी पूजन करना उचित है। "श्री सूक्त" से माँ लक्ष्मी का पूजन विशेष महत्व रखता है। "श्री सूक्त" का उल्लेख प्राचीन ऋग्वेद में है। विधि इस प्रकार है :-

               दीपावली पर मिट्टी अथवा पीतल के गणेश - लक्ष्मी का पूजन करने का विधान है। यदि पिछले  वर्ष मिट्टी के  गणेश - लक्ष्मी का पूजन किया गया हो तो इस वर्ष इन्हें श्रद्धापूर्वक प्रवाहित कर दें तथा नए गणेश - लक्ष्मी का पूजन करें।सपत्नीक निराहार अथवा फलाहार रहने के उपरांत स्नान कर नए वस्त्र  धारण करें। सज्जा के बाद सपत्नीक शुद्ध आसन पर पूजा स्थान के पास बैठें। माथे पर तिलक लगाएं। निम्न तीन नामों का उच्चारण करके तीन बार ही आचमन करें :-

ॐ केशवाय नमः    ॐ नारायणाय नमः    ॐ माधवाय नमः। 

              थोड़ा जल ले कर हाथ धो लें। फिर कुश या  स्वर्ण/रजत अंगूठी पर जल छिड़क कर  दाहिने हाथ की अनामिका में "पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ" बोलते हुए धारण करें। हाथ में जल ले कर इस मन्त्र  को पढ़ें :-

"ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा। 

  यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।"

                अब हाथ के जल को स्वयं एवं पूजा सामग्री पर यह बोलते हुए छिड़कें - 

"ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु,  ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु" । 

             सर्वप्रथम प्रथम पूज्य गणेश का पूजन करें। फिर दाहिने हाथ में लाल पुष्प, अक्षत और जल ले कर स्थान एवं काल का स्मरण करते हुए यूँ संकल्प करें  - "मम श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं दीर्घायु आरोग्य पुत्र पौत्र धन धान्यादि  समृद्धयर्थं  श्रीमहालक्ष्मीदेव्याः प्रीत्यर्थं लक्ष्मी पूजन करिष्ये।"

            श्रीलक्ष्मीजी का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक पढ़ें :-
या  सा  पद्मासनस्था   विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी 
गम्भीरावर्तनाभि   स्तनभरनमिता     शुभ्र   वस्त्रोत्तरीया 
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रर्मणि गणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भै-
र्नित्यं सा  पद्महस्ता मम् वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

           तत्पश्चात श्रीलक्ष्मीजी का षोडशोपचार से निम्नवत पूजन करें। यथा सामर्थ्य सामग्रियों  को पहले से ही एकत्रित कर लें। जिस सामग्री का प्रबंध न हो सके उसे मन में ही कल्पना करते हुए देवी को अर्पित करें। 

। आवाहन । 

ॐ  हिरण्यवर्णां   हरिणीं   सुवर्णरजतस्त्रजाम् । 

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।१।।

 (इस मन्त्र से लक्ष्मीजी का आवाहन करें)


। आसन । 
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् । 
यस्यां  हिरण्यं विन्देयं   गामश्वं  पुरुषानहम् ।।२।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को आसन समर्पित करें)

। पाद्य  । 
ॐ  अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् । 
श्रियं  देवीमुप  ह्वये  श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।३।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को पाद्य समर्पित करें)

। अर्घ्य । 
ॐ  कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्दां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । 
पद्मे    स्थितां    पद्मवर्णां    तमिहोप     ह्वये     श्रियम्   ।।४।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को अर्घ्य समर्पित करें)

। आचमन । 
ॐ  चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदराम्   । 
तां पद्मिनीम् शरणं प्र पद्मे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।५।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को आचमन करायें। पंचामृत से स्नान करायें।)

। स्नान । 
ॐ  आदित्यवर्णे तपसो अधि जातो वनस्पतिस्त्व वृक्षो अथ बिल्वः । 
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी ।।६।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को स्नान करायें। पंचोपचार से पूजन कर "श्रीसूक्त" के १६ मन्त्रों से लक्ष्मीजी का अभिषेक करें।ये षोडशोपचार के सोलह मन्त्र "श्रीसूक्त" के १६ मन्त्र ही हैं। फिर भी अंत में श्रीसूक्त के मन्त्र एक जगह दिए गए हैं )

। वस्त्र । 
ॐ    उपैतु    मां   देवसखः       कीर्तिश्च   मणिना   सह  । 
प्रादुर्भूतोअस्मि राष्ट्रेअस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।७।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को वस्त्र चढ़ाएं।)

। उपवस्त्र । 
ॐ क्षुत्पिपासामलाम् ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्  । 
अभूतिम   समृद्धिं   च  सर्वां  निर्णुद  मे  गृहात्  ।।८।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को कंचुकी (चोली) चढ़ाएं ।)

। गंध। 
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषिणीम् । 
ईश्वरीं  सर्वभूतानां  तमिहोप  ह्वये  श्रियम् ।।९।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को चन्दन चढ़ाएं।)


। सौभाग्यद्रव्य । 
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि  । 
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।१०।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को सौभाग्यद्रव्य, सिन्दूर आदि चढ़ाएं ।)

। पुष्प । 
ॐ   कर्दमेन   प्रजाभूता   मयि   संभव   कर्दम  । 
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्  ।।११।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को पुष्प चढ़ाएं ।)

। धूप। 
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे । 
नि  च  देवी  मातरं   श्रियं   वासय   मे   कुले  ।।१२।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को धूप दिखाएँ ।)

। दीप । 
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्  । 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह  ।।१३।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को दीप दिखाएँ ।)

। नैवैद्य । 
ॐ आर्द्रां  यः  करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्  । 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह   ।।१४।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को नैवैद्य चढ़ाएं ।)

। दक्षिणा । 
ॐ    तां     म    आ     वह     जातवेदो     लक्ष्मी   मनपगामिनीम्  । 
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्यो अश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को दक्षिणा, आरती एवं पुष्पांजलि करें।)

। नमस्कार । 
ॐ  यः  शुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। 
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्   ।।१६।। 
(इस मन्त्र से लक्ष्मीजी को नमस्कार करें।)

...... 
घी एवं कर्पूर के दीप से आरती करें


आरती 

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत,     हर विष्णु धाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
उमा, रमा, ब्रह्माणी,         तुम ही जग माता।
सूर्य - चन्द्रमा ध्यावत,     नारद ऋषि गाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
दुर्गा रूप निरंजनि,    सुख - सम्पति - दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
तुम पाताल निवासिनी,    तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
जिस घर में तुम रहती, तहँ सब सदगुण आता।
सब सम्भव हो जाता,       मन नहीं घबराता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
तुम बिन यज्ञ न होते,       बरत न हो पाता।
खान - पान का वैभव,   सब तुमसे आता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
शुभ - गुण - मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि - जाता।
रतन चतुर्दश तुम बिन,      कोई नहीं पाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जान गाता।
उर आनन्द समाता,         पाप उतर जाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।
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पूजा उपरांत इस प्रकार क्षमा प्रार्थना करें :-
। क्षमा प्रार्थना  । 
आवाहनं न जानामि   न जानामि विसर्जनम् । 
पूजां चैव  न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।१।।
मन्त्रहीनं   क्रियाहीनं     भक्तिहीनं   सुरेश्वरि। 
यत्पूजितं  मया  देवी   परिपूर्णं तदस्तु मे।।२।। 
कर्मणा  मनसा  वाचा   पूजनं  यन्मया  कृतम्। 
तेन  तुष्टिं समासाद्य  प्रसीद  परमेश्वरि।।३।। 
पापो अहं पापकर्मा अहं  पापात्मा पापसम्भवः। 
पाहि  मां   सर्वदा मातः   सर्वपापहरा  भव।।४।।

(अंत मे नारायण को  इस मन्त्र से प्रणाम करें।)
   यस्य स्मृता च नमोक्त्या तपो यज्ञ क्रियादिषु।   
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।

ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। 

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।।श्रीसूक्तम्।।

 हिरण्यवर्णां     हरिणीं     सुवर्णरजतस्त्रजाम् । 

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।१।।


तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् । 
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।।२।। 

अश्वपूर्वां   रथमध्यां   हस्तिनादप्रमोदिनीम् । 
श्रियं  देवीमुप  ह्वये  श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।३।। 

कां   सोस्मितां   हिरण्यप्राकारामार्दां   ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । 
पद्मे     स्थितां     पद्मवर्णां     तमिहोप     ह्वये     श्रियम्   ।।४।। 

चन्द्रां  प्रभासां  यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदराम्   । 
तां पद्मिनीम् शरणं प्र पद्मे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।५।। 


आदित्यवर्णे   तपसो  अधि   जातो  वनस्पतिस्त्व वृक्षो अथ बिल्वः । 
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी ।।६।। 


उपैतु    मां     देवसखः       कीर्तिश्च     मणिना     सह  । 
प्रादुर्भूतोअस्मि राष्ट्रेअस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।७।। 


क्षुत्पिपासामलाम्   ज्येष्ठामलक्ष्मीं    नाशयाम्यहम्  । 
अभूतिम   समृद्धिं   च  सर्वां  निर्णुद  मे  गृहात्  ।।८।। 


गन्धद्वारां   दुराधर्षां   नित्य  पुष्टां करीषिणीम् । 
ईश्वरीं  सर्वभूतानां  तमिहोप  ह्वये  श्रियम् ।।९।। 


मनसः   काममाकूतिं   वाचः   सत्यमशीमहि  । 
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।१०।। 


कर्दमेन     प्रजाभूता     मयि     संभव     कर्दम  । 
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्  ।।११।। 


आपः  सृजन्तु  स्निग्धानि   चिक्लीत   वस   मे गृहे । 
नि  च  देवी  मातरं   श्रियं   वासय   मे   कुले  ।।१२।। 


आर्द्रां  पुष्करिणीं  पुष्टिं   पिंगलां  पद्ममालिनीम्  । 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह  ।।१३।। 


आर्द्रां    यः  करिणीं   यष्टिं   सुवर्णां हेममालिनीम्  । 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मा आ वह   ।।१४।। 


तां      म     आ      वह      जातवेदो      लक्ष्मी     मनपगामिनीम्  । 
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्यो अश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५।। 


यः   शुचिः  प्रयतोभूत्वा      जुहुयादाज्यमन्वहम्। 
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्   ।।१६।।

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