Many of the prayers (स्तुति) available in Sanskrit are in the form of Ashtaka (अष्टक). Ashtakas (अष्टक) are a collection of eight shlokas (श्लोक) praising the deity. For example - Suryashtaka (सूर्याष्टक), Rudrashtak (रुद्राष्टक), Lingashtaka (लिंगाष्टक), Bilvashtak (बिल्वाष्टक), Bhawanyashtakam (भवान्यष्टकं), Shivashtakam (शिवाष्टकं).. and so on. And the famous "Sankat Mochak Hanuman Ashtak" (संकट मोचक हनुमान अष्टक) written by "Goswami Tulsidas" is so much popular. Why are they in a group of eight stanzas? Adi Shankaracharya has written more than thirty "Ashtakams" in praise of different deities. What is the importance of the number eight? One, three, five, seven ... these numbers are also important. One can see so many facts and symbolism about these numbers, so are about the number "Eight". See this:--
1. It is the symbol of perfection.
2. There is an eightfold path of Yoga called Ashtangyog (अष्टांगयोग).
3. In the Hindu religion 'eight petaled lotus' is associated with God 'Shiva'. In 'Lingashtakam' it is thus said "Asht-dalo-Pariveshtit lingam'' (अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगम्) means -The 'Linga' is surrounded with eight petaled lotus.
4. In Buddhism "The Eightfold Path" shown by Buddha is well known.
5. Eight is associated with infinity and Egyptians believed that eight represents the stability of universe.
6. Japanese relate it to fertility while some other civilizations see it as the symbol of love and friendship.
7. The number Eight has also importance in Chinese society. You can see the modern and one of the tallest buildings "Shanghai Tower" having all the storeys divided into eight groups vertically.
But the question is why the prayers are composed as Ashtaka in the group of eights. The answer is when we pray we want to do it perfectly. Eight is the number of "Pahars" or "Prahars" in a day (24 hours). In Hindi "आठों पहर" (all the eight Pahars) means - all the time. So the Ashtakas (अष्टक) are prayers for all the times.
Here are some of the Ashtakas (अष्टक):-
सूर्याष्टकम्
Suryashtakam
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तुते।१।
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।२।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।३।
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।४।
बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।५।
बन्धूकपुष्प संकाशं हारकुण्डल भूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।६।
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महतेजःप्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।७।
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।८।
सूर्याष्टम पठेनित्यं ग्रहपीड़ाप्रणाशनम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवानभवेत्।
श्री रामाष्टकम्
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविंदा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।
गोविंदा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहि माम्।
आदौ राम तपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं।
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।
बाली निर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरी दाहनम्।
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननं एतद्धि रामायणं।
रुद्राष्टकम्
Rudrashtakam
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पलं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहं।१।
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशम् गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोअहं।२।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा।३।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।४।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेअहं भवानीपतिं भावगम्यं ।५।
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी सदा सज्जनानन्द दाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।६।
न यावद उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणाम।
न तावत्सुखं शान्ति संताप नाशं प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम्।७।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोअहं सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शम्भो।८।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भू प्रसीदति।
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