Friday, February 21, 2025

शिवरात्रि कथा - कुबेर का अहंकार चूर हुआ

कुबेर और गणपति (चित्र :गूगल से साभार)


         कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। तो यक्षों के राजा कुबेर को रावण ने लंका से निकाल दिया और स्वयं लंकाधिपति बन बैठा। कुबेर को मुख्य भूमि की ओर भागना पड़ा। अपने राज्य और प्रजा से विहीन हो कर कुबेर बहुत दुखी हुए। निराशा में उन्हें एक शिव ही आशा की किरण नजर आये। उन्होंने शिव की आराधना करना प्रारम्भ किया और शिव भक्त बन गए। 

           शिव कुबेर की पूजा से प्रसन्न हुए और दया भाव दिखते हुए उन्हें एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया। इस प्रकार कुबेर संसार के सबसे धनी व्यक्ति बन गए। एक प्रकार से कुबेर धन के पर्याय बन गए। धन मतलब कुबेर - यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा। कुबेर अनुग्रहीत हो कर शिवभक्त बन गया और शिव पूजा में बहुत प्रकार के चढ़ावे भेंट करने लगा यद्यपि शिव उसमें से सिर्फ भभूति के आलावा कुछ नहीं छूते थे। किन्तु अब कुबेर के मन में भक्ति का अहंकार आने लगा। उन्हें लगा कि वह महानतम भक्त है। 

           एक दिन कुबेर शिव के पास गए और कहा, "मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ? मैं आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ।" शिव जी ने कहा, "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? कुछ भी नहीं। क्योंकि मुझे किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं है। मैं ऐसे ही ठीक हूँ।" फिर गणपति की ओर इशारा करते हुए कहा, "ये मेरा बेटा हमेशा भूखा रहता है, इसे अच्छे से खिला दो।"

            "यह तो अत्यंत सरल है।" यह कह कर कुबेर गणपति को अपने साथ भोजन के लिए ले गए। उन्होंने गणपति को खिलाना प्रारम्भ किया और गणपति खाते गए, खाते गए। कुबेर ने सैकड़ों रसोइयों की व्यवस्था की और प्रचुर मात्रा में खाना बनवाना शुरू किया। सारा भोजन गणपति को परोसा गया और वे सब खा गए। उनका भोजन अभी समाप्त नहीं हुआ था। यह देख कर कुबेर चिंतित हो गए और कहा, "रुक जाओ, अगर तुम इतना खाओगे तो तुम्हारा पेट फट जायेगा।" गणपति  कहा, "आप उसकी चिंता मत करो, देखिये मैंने साँप को कमर पेटी के रूप में  बाँध रखा है। आप मेरे पेट चिंता न करें, मुझे खाना खिलायें। आप ही ने कहा था कि आप मेरी भूख मिटा सकते हैं।"

              कुबेर ने सारा धन खर्च कर दिया। यहाँ तक कि दूसरे लोकों से भी भोजन मँगवाकर गणपति को खिलाया। गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा, "मैं अभी भी भूखा हूँ। मेरा भोजन  कहाँ है ?" तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा, "मैं समझ गया, मेरा धन आपके सामने एक तिनके के समान भी नहीं है। जो आपने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आपको वापस दे कर मैंने स्वयं को एक महान भक्त समझने की गलती की।" और इस क्षण के बाद कुबेर का अहंकार समाप्त हुआ और शिव कृपा प्राप्त हुई। शिव जी ने कुबेर को एक मुट्ठी चावल दिए और गणपति को खिलाने कहा। वह चावल खाने के बाद गणपति की भूख समाप्त हुई। गणेश ने कुबेर को कहा, "धन भूख को संतुष्ट नहीं कर सकता यदि अहंकार में आ कर खिलाया गया हो। यही भोजन यदि प्रेम और विनम्रता से खिलाया गया होता तो आपको इतना शर्मिंदा न होना पड़ता। "    

                                                         -- सद्गुरु के प्रवचनों से साभार      


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44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Thursday, February 20, 2025

शिवरात्रि कथा - ऋषि भृगु को सीख

महर्षि भृगु (चित्र :गूगल से साभार)


           ऋषि भृगु सप्तऋषियों में से एक थे और वे भगवान शिव के परम भक्त थे। जब भगवान शिव योग का प्रसार और सृष्टि की व्याख्या सप्तऋषियों से कर रहे थे तो यह शिक्षादायी घटना घटी। यह कार्यक्रम कांति सरोवर के किनारे हो रही थी जिसे कृपा की झील के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिदिन की तरह ऋषि भृगु सुबह जल्दी आये और शिव की प्रदक्षिणा करने के लिए उद्यत हुए। उस समय माता पार्वती भी शिवजी के समीप बैठी थीं। भृगु ने दोनों के बीच से हो कर परिक्रमा प्रारम्भ की क्योंकि वे सिर्फ शिव की प्रदक्षिणा करना चाहते थे, पार्वती की नहीं। इससे शिव तो प्रसन्न हुए पर पार्वती नहीं। उन्हें यह पसंद नहीं आया। उन्होंने शिव जी की ओर देखा। 

           शिव जी ने कहा थोड़ा और समीप हो जाओ, वह परिक्रमा करेगा। माता पार्वती और समीप आ गयीं। भृगु ने जब देखा कि उनके बीच से निकलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है तो उन्होंने एक चूहे का रूप धारण कर पार्वती को बाहर रखते हुए अकेले शिव की परिक्रमा की। इससे पार्वती क्रोधित हो गयीं। तब भगवान ने उन्हें अपनी जंघा पर बैठा लिया। 

               अब ऋषि भृगु ने एक छोटे पंछी का रूप धारण कर सिर्फ शिव की परिक्रमा की। अब तो माता पार्वती का क्रोध और भी बढ़ गया। यह देख कर शिव जी ने पार्वती को खींच कर स्वयं में मिला लिया और उन्हें अपना आधा हिस्सा बना लिया। अब उनका आधा हिस्सा शिव का था और आधा पार्वती का। यानि वे अर्धनारीश्वर बन गए। 

           यह देख कर भृगु ने स्वयं को एक मधुमक्खी बना लिया और शिवजी के दाहिनी टांग की परिक्रमा कर दी। भृगु का बचकाना भक्तिभाव देख कर शिव तो प्रसन्न हुए पर वे नहीं चाहते थे कि भृगु भक्ति में इतना खो जायें कि वो प्रकृति के परम स्वाभाव को ही न समझ पायें। अतः वे सिद्धासन बैठ गए। 

          अब भृगु ऋषि के पास कोई चारा ही न बचा था कि वे सिर्फ शिव की या उनके शरीर के किसी हिस्से की ही परिक्रमा कर सकें। अगर उन्हें परिक्रमा करनी थी तो दोनों सिद्धांतों, स्त्रैण और पौरुष दोनों की ही करनी पड़ेगी। ऋषि भृगु को सीख मिली कि पुरुष और प्रकृति में सामंजस्य रखना भी योग का भाग है। योग मात्र व्यायाम नहीं है जिससे आप स्वस्थ होते हैं बल्कि यह मानव जाति के परम कल्याण के बारे में है जिसमें जीवन का प्रत्येक पहलू शामिल होता है। यह एक ऐसे तंत्र के बारे में है जिसमें आप अपने पहले से मौजूद तंत्र - यथा मन, शरीर, भावनायें और ऊर्जा को परमात्मा तक जाने वाली सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल कर सकें। यह एक ऐसी पद्धति है जिससे आप परम प्रकृति के लिए स्वयं को पहले कदम के रूप में तैयार कर सकते हैं। 

                                                      ----सद्गुरु के प्रवचनों से साभार  


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Wednesday, February 12, 2025

राधा के सोलह नामों का महत्त्व

श्री राधा जी के परम भक्त संत शिरोमणि श्री प्रेमानंद महाराज जी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।🙏🙏
संत शिरोमणि श्रीप्रेमानंदजी महाराज
(चित्र:गूगल से साभार)
 
       श्री राधा जी की कृपा हो तो परमेश्वर श्री कृष्ण की कृपा स्वतः प्राप्त होती है। राधाजी के नाम की महिमा अपरम्पार है। सामवेद में राधाजी के एक हजार नामों का वर्णन है। किन्तु उनके विशेष सोलह नामों की महिमा भी बहुत फलदायी है। वे सोलह नाम निम्नलिखित हैं जिन्हें प्रतिदिन प्राणी प्रातःकाल उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होने के पश्चात् उच्चारण करे तो उन्हें चल अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है और उनकी समस्त बाधाओं का अंत, भय का नाश एवं रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं :--
1. राधा 
2. रासेश्वरि 
3. रासवासिनी 
4. रसिकेश्वरी 
5. कृष्णप्राणाधिका 
6. कृष्णप्रिया 
7. कृष्णस्वरूपिणी 
8. कृष्णवामाङ्गसंभूता 
9. परमानन्दरूपिणी 
10. कृष्णा 
11. वृन्दावनी 
12. वृन्दा 
13. वृन्दावनविनोदिनी 
14. चन्द्रावली 
15. चंद्रकान्ता 
16. शरच्चन्द्रप्रभानना। 
 
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(इस ब्लॉग पोस्ट को आप इस यूट्यूब में भी सुन सकते हैं)

राधाजी के विभिन्न मन्त्र :--

1. ॐ राधायै स्वाहा -  जो साधक इस षडक्षर मन्त्र का पाठ करता है उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।  

2. ॐ रां राधादेव्यै नमः - जो साधक प्रतिदिन इस मूल मंत्र का जाप करता है उसके सभी कष्टों का नाश होता है।   

3. ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधिका प्रचोदयात्।।
          यह राधा गायत्री मंत्र है। जो साधक इस राधा गायत्री मंत्र की एक माला प्रतिदिन जाप करता है, वह  संसार के सभी ऐश्वर्यों को प्राप्त कर अंत में गोलोक को प्राप्त करता है।   

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