Sunday, September 29, 2024

हर प्रकार की सम्पदाओं और धन को पाने का अद्भुत उपाय - श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

।।श्रीदुर्गायै नमः।।
महिषासुर मर्दिनी

       जैसा कि मैंने अपने ब्लॉग "सप्तश्लोकी दुर्गा" में लिखा था कि माँ दुर्गा की आराधना भक्तजन अपने कामनाओं की पूर्ति के लिए भी करते हैं, यदि धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में परम मुक्ति की कामना हो तो इसके लिए माँ दुर्गा की आराधना हेतु एक और स्तुति यहाँ दे रहा हूँ जो गीता प्रेस से प्रकाशित "श्रीदुर्गासप्तशती" पुस्तक से लिया गया है। यह स्तुति है "श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्" अर्थात श्री दुर्गाजी के एक सौ आठ नामवाले स्तोत्र। यह स्तुति भी भगवान शंकर और माता पार्वती के बीच के संवाद के रूप में है। स्तोत्र के बाद इसका अर्थ भी लिखूँगा जिसके अंत में पायेंगे कि हर प्रकार की सम्पदाओं को पाने के लिए इस स्तोत्र का किस नियम से पाठ करना चाहिए। ये नियम इसी स्तोत्र का हिस्सा है जो अंत में स्तोत्र की महिमा बताने में दिया गया है।  
                        स्तोत्र :-- 

।।श्रीदुर्गायै नमः।।
श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
ईश्वर उवाच
शतनाम  प्रवक्ष्यामि   शृणुष्व  कमलानने ।      
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।।1।।
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।     
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।।2।।
पिनाकधारिणी चित्रा  चन्द्रघण्टा महातपाः।       
मनो  बुद्धिरहंकारा  चित्तरूपा  चिता  चितिः।।3।।
सर्वमन्त्रमयी    सत्ता   सत्यानन्दस्वरूपिणी ।       
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।।4।।
शाम्भवी  देवमाता  च  चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।      
सर्वविद्या    दक्षकन्या    दक्षयज्ञविनाशिनी ।।5।।
अपर्णानेकवर्णा   च   पाटला   पाटलावती ।        
पट्टाम्बरपरीधाना         कलमञ्जीररञ्जिनी ।।6।। 
अमेयविक्रमा     क्रूरा      सुन्दरी    सुरसुन्दरी ।      
वनदुर्गा   च    मातङ्गी    मतङ्गमुनिपूजिता ।।7।।
ब्राह्मी  माहेश्वरी  चैन्द्री  कौमारी  वैष्णवी  तथा ।   
चामुण्डा चैव वाराही  लक्ष्मीश्च  पुरुषाकृतिः ।।8।।
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।  
बहुला        बहुलप्रेमा        सर्ववाहनवाहना ।।9।।
निशुम्भशुम्भहननी                  महिषासुरमर्दिनी ।   
 मधुकैटभहन्त्री     च     चण्डमुण्डविनाशिनी ।।10।।
सर्वासुरविनाशा       च       सर्वदानवघातिनी ।     
सर्वशास्त्रमयी  सत्या  सर्वास्त्रधारिणी  तथा ।।11।।
अनेकशस्त्रहस्ता    च   अनेकास्त्रस्य   धारिणी ।     
कुमारी चैककन्या  च  कैशोरी युवती यतिः ।।12।।
अप्रौढा   चैव   प्रौढा   च   वृद्धमाता   बलप्रदा ।    
महोदरी   मुक्तकेशी     घोररूपा   महाबला ।।13।।
अग्निज्वाला   रौद्रमुखी    कालरात्रिस्तपस्विनी ।     
नारायणी  भद्रकाली  विष्णुमाया  जलोदरी ।।14।।
शिवदूती    कराली    च    अनन्ता    परमेश्वरी ।     
कात्यायनी च सावित्री  प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ।।15।।
य     इदं     प्रपठेन्नित्यं     दुर्गानामशताष्टकम् ।      
नासाध्यं  विद्यते देवि  त्रिषु  लोकेषु  पार्वति ।।16।। 
धनं  धान्यं    सुतं  जायां    हयं  हस्तिनमेव  च ।      
चतुर्वर्गं तथा  चान्ते  लभेन्मुक्तिं  च शाश्वतीम् ।।17।।
कुमारीं  पूजयित्वा  तु  ध्यात्वा  देवीं  सुरेश्वरीम् ।     
पूजयेत्  परया   भक्त्या   पठेन्नामशताष्टकम् ।।18।। 
तस्य    सिद्धिर्भवेद्     देवि     सर्वैः    सुरवरैरपि ।    
राजानो  दासतां यान्ति  राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।।19।।  
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन   सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण ।    
विलख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः।।20।।
भौमावास्यानिशामग्रे     चन्द्रे     शतभिषां     गते ।      
विलख्य प्रपठेत् स्तोत्रं  स भवेत् सम्पदां पदम् ।।21।।  
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 भावार्थ :-
  शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं -- कमलानने ! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो ; जिसके पाठ या श्रवण मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ।।1।।
1. ॐ सती 
2. साध्वी 
3. भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखनेवाली)
4. भवानी 
5. भवमोचनी (संसार-बन्धन से मुक्त करनेवाली)
6. आर्या 
7. दुर्गा 
8. जया 
9. आद्या 
10. त्रिनेत्रा 
11. शूलधारिणी 
12. पिनाकधारिणी 
13. चित्रा 
14. चण्डघण्टा (प्रचंड स्वर से घण्टानाद करनेवाली)
15. महातपा (भारी तपस्या करनेवाली)
16. मन 
17. बुद्धि 
18. अहंकारा (अहंता का आश्रय)
19. चित्तरूपा 
20. चिता 
21. चिति (चेतना)
22. सर्वमन्त्रमयी
23. सत्ता (सत्-स्वरूपा)
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी 
25. अनन्ता (जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं)
26. भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली)
27. भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य)
28. भव्या (कल्याणरूपा)
29. अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं)
30. सदागति 
31. शाम्भवी (शिवप्रिया)
32. देवमाता 
33. चिन्ता 
34. रत्नप्रिया 
35. सर्वविद्या 
36. दक्षकन्या 
37. दक्षयज्ञविनाशिनी 
38. अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली)
39. अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली)
40. पाटला (लाल रंग वाली)
41. पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली)
42. पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली)
43. कलमंजीररंजिनी (मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली)
44. अमेयविक्रमा (असीम पराक्रम वाली)
45. क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर)
46. सुन्दरी 
47. सुरसुन्दरी 
48. वनदुर्गा 
49. मातंगी 
50. मतंगमुनिपूजिता 
51. ब्राह्मी 
52. माहेश्वरी 
53. ऐन्द्री 
54. कौमारी 
55. वैष्णवी 
56. चामुण्डा 
57. वाराही 
58. लक्ष्मी 
59. पुरुषाकृति 
60. विमला 
61. उत्कर्षिणी 
62. ज्ञाना 
63. क्रिया 
64. नित्या 
65. बुद्धिदा 
66. बहुला 
67. बहुलप्रेमा 
68. सर्ववाहनवाहना 
69. निशुम्भ-शुम्भहननी 
70. महिषासुरमर्दिनी 
71. मधुकैटभहन्त्री 
72. चण्डमुण्डविनाशिनी 
73. सर्वासुरविनाशा 
74. सर्वदानवघातिनी 
75. सर्वशास्त्रमयी 
76. सत्या 
77. सर्वास्त्रधारिणी 
78. अनेकशस्त्रहस्ता 
79. अनेकास्त्रधारिणी 
80. कुमारी 
81. एककन्या 
82. कैशोरी 
83. युवती 
84. यति 
85. अप्रौढ़ा 
86. प्रौढ़ा 
87. वृद्धमाता 
88. बलप्रदा 
89. महोदरी 
90. मुक्तकेशी 
91. घोररूपा 
92. महाबला 
93. अग्निज्वाला 
94. रौद्रमुखी 
95. कालरात्रि 
96. तपस्विनी 
97. नारायणी 
98. भद्रकाली 
99. विष्णुमाया 
100. जलोदरी 
101. शिवदूती 
102. कराली 
103. अनन्ता (विनाशरहिता)
104. परमेश्वरी 
105. कात्यायनी 
106. सावित्री 
107. प्रत्यक्षा 
108. ब्रह्मवादिनी  ।।2 - 15।।
             देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है ।।16।। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अंत में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ।।17।। कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे ।।18।। देवी ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है ।।19।। गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु - इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप)हो जाता है ।।20।। भौमवती अमावस्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है ।।21।।
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44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Tuesday, September 10, 2024

श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्रम - (श्रीबिल्वमंगलाचार्य विरचित) - हिंदी ब्लॉग

वट के पत्ते पर बाल मुकुंद को देखते ऋषि मार्कण्डेय
(फोटो : गूगल से साभार)

           यह स्तोत्र श्रीबिल्वमंगलाचार्य द्वारा विरचित है। वे भारत के दक्षिण भाग में रहनेवाले एक संपन्न ब्राह्मण कुल में जन्म लिए, नाम पड़ा बिल्वमंगल ठाकुर। इन्हें "लीला सुख" नाम से भी जाना जाता है। किन्तु बड़े होने पर कुमार्गी हो गए जबकि पूर्व जन्म में वे कृष्ण-भक्त थे। इस जन्म में स्त्रियों की सुंदरता के प्रति उनमें अतिशय आसक्ति थी। वेश्याओं पर अपनी सम्पदा लुटायी। चिंतामणि नामक एक विशेष वेश्या के पास तो उनका प्रतिदिन जाना था। कहा जाता है कि एक दिन भारी वर्षा हो रही थी और जाना सम्भव नहीं लग रहा था। किन्तु वह कामी पुरुष कहाँ रुकनेवाला था? जैसे तैसे बड़ी रात होते चिंतामणि के दरवाजे पर पहुँच ही गया। निंद्रावश एवं वर्षा की ध्वनि में चिंतामणि को दरवाजे से आती पुकार न सुनाई पड़ी। दरवाजा न खुलता देख बिल्वमंगल को दरवाजे के ऊपर से एक रस्सी लटकती दिखाई पड़ी जबकि वास्तव में वह एक सांप था। उसी को पकड़ उसने दरवाजा फांद लिया और चिंतामणि के पास पहुँच गया। अब यहाँ की घटना काफी कुछ तुलसीदास बाबा के जैसे ही वर्षा भरी रात में पत्नी के पास पहुँचने की लोक कथा जैसी है। तुलसीदास जी की पत्नी ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा था कि इतना प्रेम यदि श्रीराम में होता तो आपका जीवन भवसागर के पार लग जाता और यहीं से उनका जीवन बदल गया था और राम भक्ति में लीन होकर उन्होंने अनेक कालजयी रचनाएँ लिखीं जिनमें से "श्रीरामचरितमानस" ने तो सनातन समाज में एक ऊँचा स्थान पाया। बिलकुल उसी तरह जब चिंतामणि ने बिल्वमंगल ठाकुर को इन परिस्थितियों में सामने पाया तो उसने भी बिल्वमंगल को धिक्कारते हुए कहा "इतना प्रेम तुम्हारा यदि कृष्ण के प्रति होता तो तर जाते।" कृष्ण का नाम सुनते ही जैसे पूर्व जन्म के कर्म सक्रिय हो गए या भगवद्कृपा हुयी, बिल्वमंगल को जैसे चिंतामणि में अपना गुरु-दर्शन हुआ और कृष्ण का नाम जपते लौट गये। कृष्ण प्रेम में मगन वे वृन्दावन आये और भक्ति में लीन हो गये किन्तु स्त्रियों की सुंदरता देखते ही उनका ध्यान भटकने लगता। एक बार की बात है कि एक धनी व्यापारी की सुन्दर पत्नी को देख कर वे बेसुध से हो कर उसकी ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार अपनी ओर आते व्यक्ति को देखकर उस स्त्री ने अपने पति को बताया। व्यापारी पति ने जब बिल्वमंगल की वेशभूषा देखी तो पत्नी से बोला, डरो नहीं, ये तो कोई संत हैं, इनकी सेवा करो। यह सुनते ही बिल्वमंगल को जैसे होश आ गया। स्वयं पर बड़ी ग्लानि हुई और उस स्त्री से बोला, "माता, कृपया अपने जूड़े में लगे हुए धातु के काँटे मुझे दो।" बिल्वमंगल ने सोचा, 'ये आँखें ही मुझे भक्ति पथ से भटकाती हैं, इन्हें मैं निकल दूंगा।' यह सोच कर उसने जूड़े के कांटे से अपनी दोनों आँखें निकाल कर फेंक दीं और शेष जीवन अंधे बनकर ही जिए। एक लम्बी उम्र जिये और श्रीबिल्वमंगलाचार्य के नाम से विख्यात हुये। कृष्ण-भक्ति में उन्होंने अनेक रचनाएँ कीं। जिसमें से एक लोकप्रिय रचना है -"श्री गोविन्द दामोदर स्तोत्रम"। इसमें कुल 71 स्तोत्र हैं जिनमें से 11 लोकप्रिय स्तोत्र अर्थ सहित यहाँ दिया जा रहा है। नीचे जो पहला श्लोक है वह बालमुकुन्दाष्टक का पहला श्लोक है जिसे परम्परानुसार ध्यान के रूप में पहले पढ़ा जाता है। इस प्रकार यहाँ कुल 12 श्लोक हैं। पढ़ें, समझें, और अपना मन कृष्ण-भक्ति में लगायें।      


श्री गोविन्द दामोदर स्तोत्रम (श्रीबिल्वमंगलाचार्य विरचित)

 Shri Govind Damodar Stotram


करारविन्देन    पदार्विन्दं,     मुखार्विन्दे    विनिवेशयन्तम्।

वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥1


श्रीकृष्ण  गोविन्द  हरे  मुरारे,  हे  नाथ  नारायण वासुदेव।

जिव्हे पिबस्वामृतमेतद् एव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥2


विक्रेतुकामा किल  गोपकन्या,  मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।

दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥3


गृहे-गृहे  गोपवधू  कदम्बा:, सर्वे  मिलित्वा  समवाप्य योगम्।

पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥4


सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः।

ते निश्चितं  तन्मयतां व्रजन्ति,  गोविन्द दामोदर माधवेति॥5


जिह्‍वे  सदैवं  भज  सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।

समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥6


सुखावसानेत्व  इदमेव  सारं, दुःखावसानेत्व  इदमेव   ज्ञेयम्।

देहावसानेत्व  इदमेव  जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥7


जिह्‍वे  रसज्ञे  मधुरप्रिया  त्वं, सत्यं  हितं  त्वां परमं वदामि।

आवर्णयेथा  मधुराक्षराणि, गोविन्द  दामोदर  माधवेति॥8


त्वामेव  याचे  मम  देहि  जिह्‍वे,  समागते  दण्डधरे कृतान्ते।

वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥9


श्रीनाथ   विश्वेश्वर   विश्वमूर्ते,   श्री देवकीनन्दन   दैत्य  शत्रु ।

जिव्हे पिबस्वामृतमेतद् एव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥10


श्रीकृष्ण  राधावर  गोकुलेश,  गोपाल  गोवर्धननाथ  विष्णो।

जिव्हे पिबस्वामृतमेतद् एव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥11


गोपिपते   कंसरिपो  मुकुंद,    लक्ष्मीपते   केशव   वासुदेव।

जिव्हे पिबस्वामृतमेतद् एव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥12


(टिप्पणी : ऊपर जो शब्द-समूह - "पिबस्वामृतमेतद् एव" है वह वस्तुतः- "पिबस्वामृतम् एतद् एव" के पहले दो शब्दों की संधि है। कहीं कहीं तीनों शब्दों की संधि भी लिखी जाती है, जैसे - "पिबस्वामृतमेतदेव" यह भी सही है। किन्तु कुछ जगह मैंने "पिबस्वामृतमेत देव" लिखा भी देखा है जो सही नहीं लगता, साथ ही "देव'' को अलग लिखने से अर्थ में भ्रम भी उत्पन्न होता है।)


भावार्थ :-

1. मैं उन श्री बालक मुकुंद का मन से स्मरण करता हूँ जो वट के पत्ते पर लेटे हुए अपने हस्त-कमल से कमल समान पैर को पकड़ कर अपने मुख-कमल में डाल रहे हैं।

2. श्रीकृष्ण, गोविन्द, हरि, मुरारी, हे नाथ, नारायण, वासुदेव! अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"

3. दही इत्यादि बेचने के लिए निकली प्रत्येक गोप-कन्या का मन श्रीकृष्ण के चरणों में इस प्रकार अर्पित है कि दही इत्यादि के आवाज़ लगाने के स्थान पर मोहवश उनके मुख से "गोविन्द, दामोदर, माधव" की ध्वनि निकलती है। 

4. घर-घर में गोप-स्त्रियाँ एकत्र हो कर, प्रतिदिन एक साथ भगवान के पुण्य नामों "गोविन्द, दामोदर, माधव" का पाठ करती हैं।

5. अपने घरों में सुख से लेटे हुए जो मरणशील पुरुष भी विष्णु के "गोविन्द, दामोदर, माधव" नाम का जप करते हैं निश्चित ही वे शरीर त्यागने पर प्रभु के स्वरूप से एकाकार हो जाते हैं। 

6. जिह्वा तू सदैव कृष्ण के सुन्दर और मनोहर नामों "गोविन्द, दामोदर, माधव" को भज, जो भक्तों के दुःखों का नाश कर देती हैं।

7. जब सुख का क्षय होने लगे तो "गोविन्द, दामोदर, माधव" ही सार हैं, जब दुःख का क्षय हो तो इन्हीं को जानना चाहिए और जब शरीर त्यागने का समय हो तो इन्हीं को जपना चाहिए। 

8. स्वादों को जानने वाली जिह्वा, तुम्हें मीठे पसंद हैं, मैं तुम्हें परम सत्य बताता हूँ कि "गोविन्द, दामोदर, माधव" के मधुर शब्दों का उच्चारण करती रहो इसी में भलाई है।

9. हे जिह्वा ! मैं तुमसे बस यही माँगता हूँ कि जब मेरे अंत समय में धर्मराज सामने आ जायें तो तुम पूरी भक्ति के साथ "गोविन्द, दामोदर, माधव" का मधुर वक्तव्य करना।

10. श्रीनाथ, विश्वेश्वर, विश्वमूर्ति, दैत्यों के शत्रु श्रीदेवकीनन्दन, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"

11. श्रीकृष्ण, राधा के प्रिय, गोकुल के स्वामी, गोपाल, गोवर्धननाथ, विष्णु, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।" 

12. गोपियों के स्वामी, कंस के शत्रु, मुकुंद, लक्ष्मीपति, केशव, वासुदेव, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।" 


 

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44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Sunday, September 1, 2024

श्रीवल्लभाचार्य विरचित "युगलाष्टकम"- (हिंदी ब्लॉग)

श्रीवल्लभाचार्य विरचित "युगलाष्टकम"

राधा-कृष्ण (फोटो-गूगल से साभार)


         श्रीवल्लभाचार्य "शुद्धद्वैत" एवं "पुष्टिमार्ग" के विख्यात संत थे जो पंद्रहवीं शताब्दी में हुए थे। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु श्रीकृष्ण में अदम्य भक्ति से मोक्ष प्राप्ति की बात कही थी। उनका कहना था कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए वैरागी या सन्यासी होना अनिवार्य नहीं है। श्रीकृष्ण की भक्ति में उनकी कई लोकप्रिय रचनाएँ प्रसिद्ध हुयी हैं जिनमें से "युगलाष्टकम" एक है। इसका भावार्थ है कि श्रीकृष्ण और राधा एक ही हैं जिनके परम आश्रित हमें होना चाहिये चाहे हम जीवन में हों या मृत्यु की अवस्था में - वही हमारे परम गति हैं। 

    नीचे युगलाष्टकम गीत और इसका अर्थ दिया जा रहा है। साथ ही यूट्यूब को भी एम्बेड किया जा रहा है जिससे आप इसे सुन भी सकें।   


युगलाष्टकम

कृष्ण-प्रेम-मयी राधा, राधा प्रेम-मयो हरिः
       जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(1)

कृष्णस्य द्रविणं राधा, राधाय द्रविणं हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(2)

कृष्ण-प्राण-मयी राधा, राधा-प्राण-मयो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(3)

कृष्ण-द्रव-मयी राधा, राधा-द्रव-मयो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(4)

कृष्ण-गेहे स्थिता राधा, राधा-गेहे स्थितो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(5)

कृष्ण-चित्त-स्थित राधा, राधा-चित्त-स्थितो हरिः
   जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(6)


नीलांबर-धारा राधा, पीतांबरा-धारो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(7)

वृन्दावनेश्वरी राधा, कृष्णो वृन्दावनेश्वरः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम।(8)




युगलाष्टकम का अर्थ :--


(1)  कृष्ण-प्रेम-मयी राधा, राधा प्रेम-मयो हरिः
       जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा पूरी तरह से कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम में डूबी हुई हैं
और हरि पूरी तरह से राधा के प्रति शुद्ध प्रेम में डूबे हुए हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(2) कृष्णस्य द्रविणं राधा, राधाय द्रविणं हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा कृष्ण की अनमोल निधि हैं
और हरि राधा की अनमोल निधि हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(3) कृष्ण-प्राण-मयी राधा, राधा-प्राण-मयो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा कृष्ण की प्रिय जान हैं
और हरि राधा की प्यारी जान हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(4) कृष्ण-द्रव-मयी राधा, राधा-द्रव-मयो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा पूरी तरह से कृष्ण से पिघल जाती हैं
और हरि पूरी तरह से राधा से पिघल जाते हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(5) कृष्ण-गेहे स्थिता राधा, राधा-गेहे स्थितो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा कृष्ण के हृदय में स्थित हैं
और हरि राधा के हृदय में स्थित हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(6) कृष्ण-चित्त-स्थित राधा, राधा-चित्त-स्थितो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा का मन कृष्ण में
और हरि का मन राधा में स्थिर है।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(7) नीलांबर-धारा राधा, पीतांबरा-धारो हरिः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा ने नीले रंग के कपड़े पहने हैं, कृष्ण
और हरि ने पीले रंग के कपड़े पहने हैं, राधा के रंग।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

(8) वृन्दावनेश्वरी राधा, कृष्णो वृन्दावनेश्वरः
     जीवने निधने नित्यं, राधा-कृष्णौ गतिर्मम। 

राधा वृन्दावन की स्वामिनी हैं
और कृष्ण वृन्दावन के स्वामी हैं।
जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।

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                                                                 →यूट्यूब पर सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें











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17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

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10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

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05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

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