जैसा कि मैंने अपने ब्लॉग "सप्तश्लोकी दुर्गा" में लिखा था कि माँ दुर्गा की आराधना भक्तजन अपने कामनाओं की पूर्ति के लिए भी करते हैं, यदि धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में परम मुक्ति की कामना हो तो इसके लिए माँ दुर्गा की आराधना हेतु एक और स्तुति यहाँ दे रहा हूँ जो गीता प्रेस से प्रकाशित "श्रीदुर्गासप्तशती" पुस्तक से लिया गया है। यह स्तुति है "श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्" अर्थात श्री दुर्गाजी के एक सौ आठ नामवाले स्तोत्र। यह स्तुति भी भगवान शंकर और माता पार्वती के बीच के संवाद के रूप में है। स्तोत्र के बाद इसका अर्थ भी लिखूँगा जिसके अंत में पायेंगे कि हर प्रकार की सम्पदाओं को पाने के लिए इस स्तोत्र का किस नियम से पाठ करना चाहिए। ये नियम इसी स्तोत्र का हिस्सा है जो अंत में स्तोत्र की महिमा बताने में दिया गया है।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ।।17।।
कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ।।18।।
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।।19।।
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः।।20।।
भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।।21।।
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भावार्थ :-
शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं -- कमलानने ! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो ; जिसके पाठ या श्रवण मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ।।1।।
1. ॐ सती
2. साध्वी
3. भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखनेवाली)
4. भवानी
5. भवमोचनी (संसार-बन्धन से मुक्त करनेवाली)
6. आर्या
7. दुर्गा
8. जया
9. आद्या
10. त्रिनेत्रा
11. शूलधारिणी
12. पिनाकधारिणी
13. चित्रा
14. चण्डघण्टा (प्रचंड स्वर से घण्टानाद करनेवाली)
15. महातपा (भारी तपस्या करनेवाली)
16. मन
17. बुद्धि
18. अहंकारा (अहंता का आश्रय)
19. चित्तरूपा
20. चिता
21. चिति (चेतना)
22. सर्वमन्त्रमयी
23. सत्ता (सत्-स्वरूपा)
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी
25. अनन्ता (जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं)
26. भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली)
27. भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य)
28. भव्या (कल्याणरूपा)
29. अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं)
30. सदागति
31. शाम्भवी (शिवप्रिया)
32. देवमाता
33. चिन्ता
34. रत्नप्रिया
35. सर्वविद्या
36. दक्षकन्या
37. दक्षयज्ञविनाशिनी
38. अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली)
39. अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली)
40. पाटला (लाल रंग वाली)
41. पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली)
42. पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली)
43. कलमंजीररंजिनी (मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली)
44. अमेयविक्रमा (असीम पराक्रम वाली)
45. क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर)
46. सुन्दरी
47. सुरसुन्दरी
48. वनदुर्गा
49. मातंगी
50. मतंगमुनिपूजिता
51. ब्राह्मी
52. माहेश्वरी
53. ऐन्द्री
54. कौमारी
55. वैष्णवी
56. चामुण्डा
57. वाराही
58. लक्ष्मी
59. पुरुषाकृति
60. विमला
61. उत्कर्षिणी
62. ज्ञाना
63. क्रिया
64. नित्या
65. बुद्धिदा
66. बहुला
67. बहुलप्रेमा
68. सर्ववाहनवाहना
69. निशुम्भ-शुम्भहननी
70. महिषासुरमर्दिनी
71. मधुकैटभहन्त्री
72. चण्डमुण्डविनाशिनी
73. सर्वासुरविनाशा
74. सर्वदानवघातिनी
75. सर्वशास्त्रमयी
76. सत्या
77. सर्वास्त्रधारिणी
78. अनेकशस्त्रहस्ता
79. अनेकास्त्रधारिणी
80. कुमारी
81. एककन्या
82. कैशोरी
83. युवती
84. यति
85. अप्रौढ़ा
86. प्रौढ़ा
87. वृद्धमाता
88. बलप्रदा
89. महोदरी
90. मुक्तकेशी
91. घोररूपा
92. महाबला
93. अग्निज्वाला
94. रौद्रमुखी
95. कालरात्रि
96. तपस्विनी
97. नारायणी
98. भद्रकाली
99. विष्णुमाया
100. जलोदरी
101. शिवदूती
102. कराली
103. अनन्ता (विनाशरहिता)
104. परमेश्वरी
105. कात्यायनी
106. सावित्री
107. प्रत्यक्षा
108. ब्रह्मवादिनी ।।2 - 15।।
देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है ।।16।। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अंत में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ।।17।। कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे ।।18।। देवी ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है ।।19।। गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु - इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप)हो जाता है ।।20।। भौमवती अमावस्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है ।।21।।
वट के पत्ते पर बाल मुकुंद को देखते ऋषि मार्कण्डेय (फोटो : गूगल से साभार)
यह स्तोत्र श्रीबिल्वमंगलाचार्य द्वारा विरचित है। वे भारत के दक्षिण भाग में रहनेवाले एक संपन्न ब्राह्मण कुल में जन्म लिए, नाम पड़ा बिल्वमंगल ठाकुर। इन्हें "लीला सुख" नाम से भी जाना जाता है। किन्तु बड़े होने पर कुमार्गी हो गए जबकि पूर्व जन्म में वे कृष्ण-भक्त थे। इस जन्म में स्त्रियों की सुंदरता के प्रति उनमें अतिशय आसक्ति थी। वेश्याओं पर अपनी सम्पदा लुटायी। चिंतामणि नामक एक विशेष वेश्या के पास तो उनका प्रतिदिन जाना था। कहा जाता है कि एक दिन भारी वर्षा हो रही थी और जाना सम्भव नहीं लग रहा था। किन्तु वह कामी पुरुष कहाँ रुकनेवाला था? जैसे तैसे बड़ी रात होते चिंतामणि के दरवाजे पर पहुँच ही गया। निंद्रावश एवं वर्षा की ध्वनि में चिंतामणि को दरवाजे से आती पुकार न सुनाई पड़ी। दरवाजा न खुलता देख बिल्वमंगल को दरवाजे के ऊपर से एक रस्सी लटकती दिखाई पड़ी जबकि वास्तव में वह एक सांप था। उसी को पकड़ उसने दरवाजा फांद लिया और चिंतामणि के पास पहुँच गया। अब यहाँ की घटना काफी कुछ तुलसीदास बाबा के जैसे ही वर्षा भरी रात में पत्नी के पास पहुँचने की लोक कथा जैसी है। तुलसीदास जी की पत्नी ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा था कि इतना प्रेम यदि श्रीराम में होता तो आपका जीवन भवसागर के पार लग जाता और यहीं से उनका जीवन बदल गया था और राम भक्ति में लीन होकर उन्होंने अनेक कालजयी रचनाएँ लिखीं जिनमें से "श्रीरामचरितमानस" ने तो सनातन समाज में एक ऊँचा स्थान पाया। बिलकुल उसी तरह जब चिंतामणि ने बिल्वमंगल ठाकुर को इन परिस्थितियों में सामने पाया तो उसने भी बिल्वमंगल को धिक्कारते हुए कहा "इतना प्रेम तुम्हारा यदि कृष्ण के प्रति होता तो तर जाते।" कृष्ण का नाम सुनते ही जैसे पूर्व जन्म के कर्म सक्रिय हो गए या भगवद्कृपा हुयी, बिल्वमंगल को जैसे चिंतामणि में अपना गुरु-दर्शन हुआ और कृष्ण का नाम जपते लौट गये। कृष्ण प्रेम में मगन वे वृन्दावन आये और भक्ति में लीन हो गये किन्तु स्त्रियों की सुंदरता देखते ही उनका ध्यान भटकने लगता। एक बार की बात है कि एक धनी व्यापारी की सुन्दर पत्नी को देख कर वे बेसुध से हो कर उसकी ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार अपनी ओर आते व्यक्ति को देखकर उस स्त्री ने अपने पति को बताया। व्यापारी पति ने जब बिल्वमंगल की वेशभूषा देखी तो पत्नी से बोला, डरो नहीं, ये तो कोई संत हैं, इनकी सेवा करो। यह सुनते ही बिल्वमंगल को जैसे होश आ गया। स्वयं पर बड़ी ग्लानि हुई और उस स्त्री से बोला, "माता, कृपया अपने जूड़े में लगे हुए धातु के काँटे मुझे दो।" बिल्वमंगल ने सोचा, 'ये आँखें ही मुझे भक्ति पथ से भटकाती हैं, इन्हें मैं निकल दूंगा।' यह सोच कर उसने जूड़े के कांटे से अपनी दोनों आँखें निकाल कर फेंक दीं और शेष जीवन अंधे बनकर ही जिए। एक लम्बी उम्र जिये और श्रीबिल्वमंगलाचार्य के नाम से विख्यात हुये। कृष्ण-भक्ति में उन्होंने अनेक रचनाएँ कीं। जिसमें से एक लोकप्रिय रचना है -"श्री गोविन्द दामोदर स्तोत्रम"। इसमें कुल 71 स्तोत्र हैं जिनमें से 11 लोकप्रिय स्तोत्र अर्थ सहित यहाँ दिया जा रहा है। नीचे जो पहला श्लोक है वह बालमुकुन्दाष्टक का पहला श्लोक है जिसे परम्परानुसार ध्यान के रूप में पहले पढ़ा जाता है। इस प्रकार यहाँ कुल 12 श्लोक हैं। पढ़ें, समझें, और अपना मन कृष्ण-भक्ति में लगायें।
श्री गोविन्द दामोदर स्तोत्रम (श्रीबिल्वमंगलाचार्य विरचित)
(टिप्पणी : ऊपर जो शब्द-समूह - "पिबस्वामृतमेतद् एव" है वह वस्तुतः- "पिबस्वामृतम् एतद् एव" के पहले दो शब्दों की संधि है। कहीं कहीं तीनों शब्दों की संधि भी लिखी जाती है, जैसे - "पिबस्वामृतमेतदेव" यह भी सही है। किन्तु कुछ जगह मैंने "पिबस्वामृतमेत देव" लिखा भी देखा है जो सही नहीं लगता, साथ ही "देव'' को अलग लिखने से अर्थ में भ्रम भी उत्पन्न होता है।)
भावार्थ :-
1. मैं उन श्री बालक मुकुंद का मन से स्मरण करता हूँ जो वट के पत्ते पर लेटे हुए अपने हस्त-कमल से कमल समान पैर को पकड़ कर अपने मुख-कमल में डाल रहे हैं।
2. श्रीकृष्ण, गोविन्द, हरि, मुरारी, हे नाथ, नारायण, वासुदेव! अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"
3. दही इत्यादि बेचने के लिए निकली प्रत्येक गोप-कन्या का मन श्रीकृष्ण के चरणों में इस प्रकार अर्पित है कि दही इत्यादि के आवाज़ लगाने के स्थान पर मोहवश उनके मुख से "गोविन्द, दामोदर, माधव" की ध्वनि निकलती है।
4. घर-घर में गोप-स्त्रियाँ एकत्र हो कर, प्रतिदिन एक साथ भगवान के पुण्य नामों "गोविन्द, दामोदर, माधव" का पाठ करती हैं।
5. अपने घरों में सुख से लेटे हुए जो मरणशील पुरुष भी विष्णु के "गोविन्द, दामोदर, माधव" नाम का जप करते हैं निश्चित ही वे शरीर त्यागने पर प्रभु के स्वरूप से एकाकार हो जाते हैं।
6. जिह्वा तू सदैव कृष्ण के सुन्दर और मनोहर नामों "गोविन्द, दामोदर, माधव" को भज, जो भक्तों के दुःखों का नाश कर देती हैं।
7. जब सुख का क्षय होने लगे तो "गोविन्द, दामोदर, माधव" ही सार हैं, जब दुःख का क्षय हो तो इन्हीं को जानना चाहिए और जब शरीर त्यागने का समय हो तो इन्हीं को जपना चाहिए।
8. स्वादों को जानने वाली जिह्वा, तुम्हें मीठे पसंद हैं, मैं तुम्हें परम सत्य बताता हूँ कि "गोविन्द, दामोदर, माधव" के मधुर शब्दों का उच्चारण करती रहो इसी में भलाई है।
9. हे जिह्वा ! मैं तुमसे बस यही माँगता हूँ कि जब मेरे अंत समय में धर्मराज सामने आ जायें तो तुम पूरी भक्ति के साथ "गोविन्द, दामोदर, माधव" का मधुर वक्तव्य करना।
10. श्रीनाथ, विश्वेश्वर, विश्वमूर्ति, दैत्यों के शत्रु श्रीदेवकीनन्दन, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"
11. श्रीकृष्ण, राधा के प्रिय, गोकुल के स्वामी, गोपाल, गोवर्धननाथ, विष्णु, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"
12. गोपियों के स्वामी, कंस के शत्रु, मुकुंद, लक्ष्मीपति, केशव, वासुदेव, अरी जिह्वा, तू सिर्फ इन्हीं के नामों का अमृत पी "गोविन्द, दामोदर, माधव।"
श्रीवल्लभाचार्य "शुद्धद्वैत" एवं "पुष्टिमार्ग" के विख्यात संत थे जो पंद्रहवीं शताब्दी में हुए थे। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु श्रीकृष्ण में अदम्य भक्ति से मोक्ष प्राप्ति की बात कही थी। उनका कहना था कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए वैरागी या सन्यासी होना अनिवार्य नहीं है। श्रीकृष्ण की भक्ति में उनकी कई लोकप्रिय रचनाएँ प्रसिद्ध हुयी हैं जिनमें से "युगलाष्टकम" एक है। इसका भावार्थ है कि श्रीकृष्ण और राधा एक ही हैं जिनके परम आश्रित हमें होना चाहिये चाहे हम जीवन में हों या मृत्यु की अवस्था में - वही हमारे परम गति हैं।
नीचे युगलाष्टकम गीत और इसका अर्थ दिया जा रहा है। साथ ही यूट्यूब को भी एम्बेड किया जा रहा है जिससे आप इसे सुन भी सकें।
राधा पूरी तरह से कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम में डूबी हुई हैं और हरि पूरी तरह से राधा के प्रति शुद्ध प्रेम में डूबे हुए हैं। जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।
राधा ने नीले रंग के कपड़े पहने हैं, कृष्ण और हरि ने पीले रंग के कपड़े पहने हैं, राधा के रंग। जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं।