Sunday, August 25, 2024

Madhurashtakam by Sri Vallabhacharya (Roman script)

 

Krishna


Madhurashtakam Lyrics in English


adharam madhuram vadanam madhuram
nayanam madhuram  hasitam madhuram
hridayam madhuram gamanam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 1 ||


vachanam madhuram charitam madhuram
vasanam  madhuram  valitam  madhuram
chalitam madhuram bhramitam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 2 ||


venur madhuro renur madhurah
panir madhurah padau madhurau
nrityam madhuram shakhyam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 3 ||


geetam  madhuram    pitam  madhuram
bhuktam madhuram suptam madhuram
rupam madhuram    tilakam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 4 ||


karanam madhuram   taranam madhuram
haranam madhuram ramanam madhuram
vamitam madhuram shamitam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 5 ||


gunja madhura    mala madhura
yamuna madhura vichi madhura
salilam madhuram   kamalam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 6 ||


gopi   madhura      leela   madhura
yuktam madhuram muktam madhuram
dhristam madhuram shistam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 7 ||


gopa madhura      gavo madhura
yastir madhura shristhir madhura
dalitam madhuram    phalitam madhuram
madhuradhipater akhilam madhuram || 8 ||


|| iti Sri Vallabhacharya virachitam madhurastakam sampurnam ||






















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40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                









25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!         {Listen it in only three minutes on YouTube}

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Thursday, August 22, 2024

श्रीवल्लभचार्य विराचित "मधुराष्टकम" - Madhurastakam by Sri Vallabhacharya

मधुरापति श्रीकृष्ण (फोटो ट्विटर से साभार)


            लोकप्रिय भक्ति गीतों में "मधुराष्टकम" का एक अलग ही स्थान है। भक्ति गीत गाने वाले शायद ही कोई गायक होंगे जिन्होंने इस गीत को न गाया हो। एम० एस० सुब्बालक्ष्मी ने इसे शास्त्रीय रूप से तथा के० जे० येसुदास ने अर्धशास्त्रीय रूप से इस गीत को आवाज़ दी है। ओडिसी नृत्य शैली में मधुराष्टकम एक आकर्षक और सुरुचिपूर्ण नृत्य - नाटिका का थीम प्रस्तुत करता है। इस गीत को लिखा है श्री वल्लभाचार्य ने जो भक्ति काल के मूर्धन्य कवि थे। वे एक तेलुगु ब्राह्मण थे जिन्होंने पुष्टि मार्ग को भक्ति का एक ऐसा मार्ग बताया जिसमें ईश्वर से प्रेमसहित भक्ति ही उन्हें पाने का मार्ग है। 
           कहा जाता है कि कृष्ण भक्त श्रीवल्लभाचार्य को श्रीकृष्ण ने श्रावण शुक्ल एकादशी की आधी रात को दर्शन दिया था। तब श्रीकृष्ण के गुणों का बखान करते हुए भक्त ने संस्कृत की अष्टक शैली में "मधुराष्टकम" गीत की रचना की। श्रीकृष्ण का स्मरण, नाम-कीर्तन, मनमोहक स्वरुप का ध्यान में दर्शन एवं सेवा ही पुष्टिमार्ग है जिस पर चलकर हम उन्हें उनके वास्तविक स्वरुप में अनुभव कर सकते हैं और मधुराष्टकम भक्ति गीत इसमें सहायक होता है। 
           यहाँ मधुराष्टकम गीत दिया जा रहा है। इसे गा कर या सुनकर आप स्वयं आनंदित अनुभव करेंगे।  

"मधुराष्टकम"

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ॥१॥


वचनं मधुरं   चरितं मधुरं     वसनं मधुरं   वलितं मधुरं।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ॥२॥


वेणुर्मधुरो   रेणुर्मधुरः   पाणिर्मधुरः  पादौ   मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥३॥


गीतं  मधुरं   पीतं  मधुरं   भुक्तं  मधुरं   सुप्तं  मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥४॥


करणं  मधुरं  तरणं  मधुरं   हरणं  मधुरं  रमणं  मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥५॥


गुञ्जा मधुरा  माला मधुरा   यमुना मधुरा   वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥६॥


गोपी मधुरा लीला मधुरा  युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ॥७॥


गोपा मधुरा     गावो मधुरा     यष्टिर्मधुरा     सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ॥८॥


|| इति श्रीवल्लभाचार्य विराचितम मधुराष्टकम संपूर्णम: ||
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भावार्थ :--

     यहाँ श्रीकृष्ण को मधुराधिपति कहा गया है अर्थात माधुर्य के स्वामी। 

 उनके अधर (होंठ) मधुर हैं, वाणी मधुर हैं, नयन मधुर हैं, मुस्कान मधुर हैं, हृदय मधुर हैं, चलना मधुर है, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।1|   

  उनके वचन मधुर हैं, चरित (स्वाभाव) मधुर हैं, पहनावे मधुर हैं, भंगिमा मधुर हैं, गति मधुर हैं, भ्रमण मधुर हैं, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।2| 
 
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  उनकी वंशी मधुर है, चरण-रज मधुर हैं, हाथ मधुर हैं, पाँव मधुर हैं, नृत्य मधुर हैं, मित्रता (साथ) मधुर है,  मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।3| 

  उनके गीत मधुर हैं, उनका पीना मधुर है, खाना मधुर है, सोना मधुर है, रूप मधुर है, तिलक मधुर है,  मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।4|

  उनके कृत्य मधुर हैं, उनका तैरना मधुर है, चोरी करना मधुर है, रमण करना मधुर है, अर्पण मधुर है, शांत मुखाकृति मधुर हैं, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।5| 

  उनकी गुनगुनाहट मधुर हैं, पुष्पहार मधुर हैं, यमुना मधुर हैं, यमुना-तरंगें मधुर हैं, यमुना जल मधुर हैं, उसमें खिले कमल मधुर हैं, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।6|

  उनकी गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीलाएँ मधुर हैं, उनका पकड़ना मधुर है फिर छोड़ना मधुर है, उनकी चितवन मधुर है, आचार मधुर है, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।7|

  उनके ग्वाल सखा मधुर हैं, गायें मधुर हैं, लाठी (गाय चराने वाली) मधुर है, सृष्टि मधुर है, दलन (कालिया का दर्प) है, फल (कृपा) मधुर है, मधुराधिपति के सम्पूर्ण ही मधुर हैं।8|  

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44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

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Saturday, August 3, 2024

नवधा भक्ति - नौ प्रकार की भक्ति (Nine Types of Bhakti)

⬅️ भक्त प्रह्लाद और नारद मुनि (चित्र गूगल से साभार)
                   हमारे धर्मग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति बतायी गयी है और भगवान की कृपा पाने के लिए इन नौ प्रकार की भक्ति में से कोई भी हम अपना सकते हैं। अर्थात भक्ति के ये नौ रास्ते हैं और सभी ईश्वर तक हमें पहुंचाते हैं। समेकित रूप से भक्ति के इन नौ प्रकारों को "नवधा भक्ति" का नाम दिया गया है। नवधा भक्ति की चर्चा मुख्य रूप से दो धर्मग्रंथों में है जिनका वर्णन हम यहाँ कर रहे हैं। पहला ग्रन्थ है श्रीमद्भागवतमहापुराण जो महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित है तथा दूसरा ग्रन्थ है श्रीरामचरितमानस जो बाबा तुलसीदास की लोकप्रिय रचना है। सबसे पहले हमलोग श्रीमद्भागवतमहापुराण में वर्णित नवधा भक्ति की चर्चा करते हैं। 

                श्रीमद्भागवतमहापुराण ऐसा ग्रन्थ है जिसकी रचना करने के बाद महर्षि वेद व्यास को अत्यंत संतोष प्राप्त हुआ जबकि उसके पहले वे अनेक ग्रन्थ लिख चुके थे। यह पुराण काफी लोकप्रिय है एवं इसकी कथा (जिसे भागवत कथा के नाम से जाना जाता है) भारत ही नहीं बल्कि अब विदेशों में भी भक्तजन बड़े भक्ति भाव से सुनते हैं। भागवत-कथा बाँच कर कई कथा वाचक प्रसिद्ध हुए हैं। इसमें नवधा भक्ति का प्रसंग भक्त प्रह्लाद की कथा में आता है जो सतयुग के काल का है। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद के पिता थे और असुरों के राजा। हिरण्यकश्यप बहुत ही बलशाली और अहंकारी था किन्तु उसका सबसे बड़ा अवगुण था कि वह विष्णु का विरोधी था। चूँकि उसने तप से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु के लिए असंभव शर्तें पूरी होनी जरुरी थी। अर्थात एक प्रकार से उसने लगभग अमरत्व ही पा लिया था। इस कारण उसे किसी का भय न था और स्वयं को भगवान विष्णु से बड़ा ही समझता था। कोई भी उसके आगे विष्णु की प्रशंसा नहीं कर सकता था। किन्तु उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था क्योंकि जब वह काफी छोटा था तब एक दिन अपने पिता का स्नेह न पाकर दुखी था तो संयोग से देवऋषि नारदजी की नजर पड़ी। नारदजी ने प्रह्लाद को भगवान् विष्णु की महिमा बताई तथा उनकी भक्ति करने का उपदेश दिया। प्रह्लाद विष्णु भक्त बन गया। जब हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो वह नाराज हुआ और पुत्र को समझाया तथा उसे उन गुरुओं के पास शिक्षा लेने भेजा जो हिरण्यकश्यप को विष्णु जी से बड़ा बताते थे। जब शिक्षा की अवधि पूरी हुई तो गुरु उसे ले कर हिरण्यकश्यप के पास आये। प्रह्लाद को देखकर हिरण्यकश्यप का पुत्र के प्रति स्नेह जाग्रत हुआ तथा उसने प्रह्लाद को गोद में बिठा कर माथे को चूमा। बहुत स्नेह के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि गुरु से जो तुमने शिक्षा प्राप्त की, उनमें से कोई अच्छी बात हमें बताओ। तब जो भक्त प्रह्लाद ने बात बतायी वही नवधा भक्ति से सम्बंधित है। उसने कहा, पिताजी 


श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् |

अर्चनं  वन्दनं दास्यं  सख्यमात्मनिवेदनम् ||

     अर्थात् विष्णु भगवान की भक्ति के नौ भेद हैं - भगवान के गुण-लीला-नाम आदि का श्रवण, उन्हीं का कीर्तन, उनके रूप नाम आदि का स्मरण, उनके चरणों की सेवा, पूजा-अर्चा, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन।


इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा।

क्रियते भगवत्यद्धा तन्मन्येSधीतमुत्तमम्।।

 

यदि भगवान के प्रति समर्पण के भाव से यह नौ प्रकार की भक्ति की जाय तो मैं उसी को उत्तम अध्ययन समझता हूँ।  

         भक्त प्रह्लाद के ये वचन सुनकर हिरण्यकश्यप आगबबूला हो गया और शिक्षा देने वाले गुरुओं को बुरा भला कहने लगा। किन्तु गुरुओं ने कहा कि ये सब उन्होंने नहीं सिखाया, ये तो इसकी जन्मजात बुद्धि है। तब उसने प्रह्लाद से ही पूछा कि किसने तुम्हे ये सब सिखाया। प्रह्लाद उसे विष्णु जी की महिमा सुनाता गया और उसका क्रोध बढ़ता गया।

        ये कथा तो जगजाहिर है कि जब विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद को मारने उसका पिता उद्धत हुआ तो स्वयं भगवान विष्णु नृसिंह अवतार लेकर खम्भे से प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप के मृत्यु की सारी शर्तें पूरी करते हुए उसका अंत किया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। 

     हमलोग यहाँ नवधा भक्ति की चर्चा कर रहे थे। भक्त प्रह्लाद द्वारा बताये गए नवधा भक्ति को हमलोग समझते हैं। ये भक्ति इस प्रकार हैं,

1. श्रवण - ईश्वर की शक्ति, कथा, लीला, महत्व, इत्यादि का अतृप्त मन से श्रद्धा भाव से निरंतर सुनना। इसके उदहारण हैं राजा परीक्षित। 

2. कीर्तन - ईश्वर के नाम, चरित्र, गुण और पराक्रम का उत्साह और आनंद के साथ कीर्तन करना। इसके उदहारण हैं श्री शुकदेव जी। 

3. स्मरण - ईश्वर की शक्ति, माहात्म्य और नाम का निरंतर अनन्य भाव से स्मरण करते रहना और उनमें रम जाना। भक्त प्रह्लाद इसके उदहारण हैं। 

4. पाद सेवन - ईश्वर के चरणों में स्वयं को सौंप कर उनका आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सब कुछ समझना। माता लक्ष्मी इसका उदहारण हैं। 

5. अर्चन - पवित्र सामग्रियों एवं पूर्ण भक्ति और श्रद्धा भाव से ईश्वर के चरणों में पूजा समर्पित करना। इसके उदहारण हैं पृथुराजा। 

6. वंदन - ईश्वर की मूर्ती को अथवा उनके भक्तजनों, गुरु, आचार्य, संतजनों, ब्राह्मण, माता-पिता आदि को पूर्ण आदर और सत्कार के साथ पवित्र भाव से प्रणाम करना या सेवा करना। अक्रूरजी इसके उदहारण हैं। 

7. दास्य - ईश्वर को अपना स्वामी और स्वयं को उनका दास समझकर पूर्ण श्रद्धा भाव से उनकी सेवा करना। उदहारण श्री हनुमान जी। 

8. सख्य - ईश्वर को ही अपना परम मित्र मान कर उनको अपना सर्वस्व समर्पण करना तथा सच्चे भाव से अपने पाप और पुण्य को उनसे निवेदन करना। इसके उदहारण हैं अर्जुन। 

9. आत्मनिवेदन - स्वयं को ईश्वर के चरणों में पूर्ण रूप से सदा के लिए समर्पित कर देना और अपनी कुछ भी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की परम और सर्वोत्तम अवस्था है। बलिराजा इसके उदहारण हैं। 

               इन नौ प्रकार की भक्ति में एक चीज सबसे महत्वपूर्ण है और वह है ईश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण का भाव होना। यदि इस भाव से आप मंदिर की सफाई का भी कार्य करते हैं तो वह भक्ति का ही एक प्रकार है। 

            अब हमलोग दूसरे धर्मग्रन्थ श्रीरामचरितमानस, जो तुलसीदासजी द्वारा रचित है, के अरण्य काण्ड में वर्णित नवधा भक्ति के बारे में जानें जो ऊपर की नवधा भक्ति से थोड़ा सा भिन्न है। सबसे पहले हमलोग इसका प्रसंग जानें। 

        सीता-हरण के पश्चात् जब श्री राम उन्हें ढूंढते हुए वन में भटक रहे थे तो वे शबरी जी के आश्रम में पहुंचे। शबरी जी एक सरल आदिवासी महिला थीं जिन्हें उनके गुरु ने बताया था कि एक दिन भगवान श्रीराम तुमसे मिलने अवश्य आयेंगे। उनको न मन्त्र आता था न जप-तप, उनके मन में श्रीराम के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति थी। गुरु के वचन में पूर्ण विश्वास कर वे युवावस्था से ही प्रतिदिन आश्रम की सफाई कर मीठे फल चुनकर लातीं और भगवान के आने की प्रतीक्षा करतीं। युवावस्था बीत गयी पर शबरीजी की भक्ति, श्रद्धा और विश्वास में कमी न आयी। आखिर एक दिन भगवान आ ही गए। शबरीजी के हर्ष का अंत न था। उन्होंने श्रीराम को रसीले और स्वादिष्ट कन्द, मूल और फल ला कर दिये। भगवान् ने बार -बार प्रशंसा कर उन्हें प्रेम सहित खाया। उन्हें देख कर शबरी जी का प्रेम अत्यंत बढ़ गया और वे हाथ जोड़ कर सामने खड़ी हो गयीं और बोली - "मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूँ? मैं नीच जाति की और अत्यंत मूढ़बुद्धि हूँ। हे पापनाशन ! अधम से भी अधम में भी मैं स्त्री और मंदबुद्धि हूँ।" 

शबरी जी को प्रभु राम का दर्शन (फोटो गूगल से साभार)


   प्रभु बोले - हे भामिनि, मेरी बात सुन। मैं तो केवल एक भक्ति ही का सम्बन्ध मानता हूँ। जाति, पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुराई- इन सब के होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है, जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखायी पड़ता है। 


{जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई।।

भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।}


  आगे श्रीराम जी ने शबरी जी को इस प्रकार नवधा भक्ति की शिक्षा दी जो सब के लिए अनुकरणीय है। 


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।

प्रथम भगति  संतन्ह कर संगा । दूसरि रति  मम कथा प्रसंगा।।

गुर  पद  पंकज  सेवा     तीसरि  भगति  अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।

मंत्र जाप  मम  दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।।

सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।।

आठवँ   जथालाभ   संतोषा। सपनेहुँ   नहिं   देखइ  परदोषा।।

नवम  सरल  सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।।

नव  महुँ  एकउ  जिन्ह  कें  होई। नारि  पुरुष  सचराचर  कोई।।

सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें।सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।।

जोगि बृंद  दुरलभ गति जोई । तो कहुँ आजु  सुलभ भई सोई।।


       अर्थात - मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ। तू सावधान हो कर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग। 

      दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम। 

     तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़ कर मेरे गुण समूहों का गान करे। 

     मेरे (राम) मन्त्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास - यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। 

     छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वाभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना। 

     सातवीं भक्ति है जगत भर को समभाव से मुझमे ओतप्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक कर के मानना। 

     आठवीं भक्ति है जो कुछ भी मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना। 

     नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का न होना। 

         इन नवों में से जिनके एक भी होती है वह स्त्री पुरुष जड़ चेतन कोई भी हो, हे भामिनि ! मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है वह गति तेरे लिये सुलभ हो गयी है।   

       और भगवान् श्री राम के वचन के अनुसार शबरी जी को वह परम गति प्राप्त हुई जिसके लिए बड़े बड़े ऋषि मुनि आकांक्षा रखते हैं। हम ईश्वर में आस्था रखने वाले भक्तजनों को प्रह्लाद जी और शबरी जी का आभारी होना चाहिए जिनकी कृपा और भक्ति से नवधा-भक्ति का ज्ञान सबके लिए सुलभ हुआ।  

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अध्यात्म ब्लॉग के पोस्टों की सूची :--



















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43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri                                


39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि

38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक




25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

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01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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