Friday, April 9, 2021

शीघ्र विवाह और मनचाहा वर प्राप्त करने का उपाय (रामचरितमानस में)

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        जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है कि यह उपाय युवतियों के लिए ही है। कई मानस के मर्मज्ञ कहते हैं कि मानस में वर्णित ये माता पार्वती की स्तुति शीघ्र विवाह और मनचाहा (शिव या राम जैसा) वर प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। जब श्री राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुर गए थे तो एक दिन सुबह की बेला में ऋषि की आज्ञा लेकर पूजा हेतु फूल तोड़ने दोनों भाई पुष्प-वाटिका में गये। संयोग से सीता जी, जिनके स्वयंवर की तैयारी में उनके पिता राजा जनक जी लगे थे, भी इसी उद्देश्य से वहां अपनी सहेलियों के साथ आयीं। पुष्प-वाटिका में श्रीराम और सीताजी ने पहली बार एक-दूसरे को देखा। देखते ही दोनों के हृदय में वे एक दूसरे को भा गये। बाबा तुलसीदास जी ने पुष्प-वाटिका के इस प्रसङ्ग का बहुत ही सरस वर्णन किया है। 

श्रीराम-जानकी
      इस अवसर के बाद सीता जी के मन में श्रीराम जी को ही वर रूप में पाने की कामना हुई। भगवती पार्वती ने कठिन तपस्या से मनचाहे वर शिवजी को पाया था और वे उनकी कुलदेवी भी थीं अतः माता पार्वती की पूजा और स्तुति से उन्हें प्रसन्न कर अपनी कामना पूर्ति करने का निश्चय सीताजी ने किया। पूजा के बाद जो पार्वती माता की स्तुति सीताजी ने किया वही स्तुति बाबा तुलसीदासजी की रचना श्रीरामचरितमानस से उद्धरित करते हुए नीचे लिख रहा हूँ। इसी स्तुति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने सीताजी को वरदान दिया कि तुम्हारे मन में जैसे वर की इच्छा है वैसा ही वर तुम्हें मिलेगा। और यह वरदान फलित भी हुआ। सीता-स्वयंवर में श्रीराम ने ही शिव-धनुष तोड़ने का लक्ष्य प्राप्त किया और दोनों ने एक दूसरे को पाया। 

   इस स्तुति को कुँवारी कन्याओं को प्रतिदिन गौरी पूजन में पढ़ना चाहिये। इससे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है ऐसा कई मानस मर्मज्ञ कहते हैं। 

भगवती पार्वती स्तुति

जय जय  गिरिबरराज किसोरी ।  जय महेस मुख चंद चकोरी।|

जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता।|

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ  बेदु नहिं जाना।|

भव भव बिभव पराभव करिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।|

पतिदेवता   सुतीय  महुँ     मातु  प्रथम  तव  रेख।

महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।|

सेवत  तोहि  सुलभ  फल चारी।  बरदायिनी पुरारि पिआरि।|

देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।|

मोर  मनोरथु  जानहु  नीकें। बसहु  सदा  उर पुर सबही कें।|

कीन्हेउँ  प्रगट  न  कारन तेहीं। अस  कहि चरन गहे बैदेहीं।|

बिनय  प्रेम  बस  भई  भवानी। खसि  माल मूरति मुसुकानी।|

सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियँ भरेऊ।|

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।|

नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।|

मनु  जाहिं  राचेउ  मिलिहि  सो  बरु सहज सुन्दर साँवरो।

करुना    निधान   सुजान    सीलु    सनेहु   जानत   रावरो।|

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।

तुलसी  भवानिहि  पूजि  पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।|

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल   मंगल   मूल   बाम   अंग   फरकन   लगे।|

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(इस स्तुति का भावार्थ है - हे पर्वतराज हिमाचल की पुत्री आपकी जय हो, जय हो। महादेव के मुखरूपी चन्द्रमा को देखनेवाली चकोरी आपकी जय हो। हे बिजली सी कांति से युक्त जगतजननी, हे गणेश और कार्तिक की माता आपकी जय हो। हे माता न आपका आरम्भ है, न मध्य है और न अंत है।  आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न करनेवाली, पालन करनेवाली और नाश करनेवाली हैं। आप विश्व को मोहित करनेवाली हैं और स्वतंत्र रूप से विहार करनेवाली हैं।   

       पति को इष्टदेव माननेवाली श्रेष्ठ नारियों में हे माता आपकी प्रथम गणना है। आपकी अपार महिमा को हजारों सरस्वती और शेष भी नहीं कह सकते। 

     हे वर देने वाली त्रिपुरारी शिव की पत्नी, आपकी सेवा से चारों फल सुलभ हो जाते हैं। हे देवि ! आपके चरणकमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं। 

   मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं क्योंकि आप सदा सबके हृदय रुपी नगरी में रहती हैं। इसी कारण मैं उसको प्रकट नहीं कर रही, यह कहकर सीताजी ने उनके चरण पकड़ लिये। भगवती पार्वती सीताजी के विनय और प्रेम के वश में हो गयीं, उनके गले से माला खिसक के गिर गयी और उनकी मूर्ति मुस्कुरायी। सीताजी ने आदरपूर्वक प्रसादरूपी माला को उठा कर सिर से लगाया। माता पार्वती का हृदय हर्ष से भर गया और वे बोलीं - "हे सीता ! मेरी सच्ची आशीष सुनो, तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। नारदजी का वचन सदा पवित्र और सत्य है। जो वर तुम्हारे हृदय में बसा है वही वर तुम्हे मिलेगा। जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो  गया है वही स्वाभाव से सुन्दर, साँवला वर तुम्हें मिलेगा। वह दया से पूर्ण और सर्वज्ञ है, तुम्हारे शील और स्नेह को जनता है।"

    इस प्रकार गौरीजी का आशीर्वाद सुनकर सीताजी सभी सखियों सहित हृदय से हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं - भवानीजी को बार-बार पूज कर सीताजी प्रसन्न मन से महल को लौट चलीं। 

   गौरीजी को अनुकूल जान कर सीताजी को जो हर्ष हुआ वह कहा नहीं जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बायें अंग फड़कने लगे।)


       जिस प्रकार माता भवानी सीताजी पर प्रसन्न हुईं उसी प्रकार वे उनकी आराधना -पूजन करने वालों पर भी प्रसन्न होवें। 🙏जय माँ भवानी🙏

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           इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाएँ:-



































44. मिथिला के लोकप्रिय कवि विद्यापति रचित - गोसाओनिक गीत (Gosaonik Geet) अर्थ सहित

43. पौराणिक कथाओं में शल्य - चिकित्सा - Surgery in Indian mythology

42. सुन्दरकाण्ड के पाठ या श्रवण से हनुमानजी प्रसन्न हो कर सब बाधा और कष्ट दूर करते हैं

41. माँ काली की स्तुति - Maa Kali's "Stuti"

40. महाशिवरात्रि - Mahashivaratri

39. तुलसीदास - अनोखे रस - लालित्य के कवि


38. छठ महापर्व - The great festival of Chhath

37. भगवती प्रार्थना - बिहारी गीत (पाँच वरदानों के लिए)

36. सावन में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक

35. श्रीविद्या - सर्वोपरि मन्त्र साधना

34. श्री दुर्गा के बत्तीस नाम - भीषण विपत्ति और संकटों से बचानेवाला

33. मैथिलि भगवती गीत - "माँ सिंह पर एक कमल राजित"

32. माँ दुर्गा की देवीसूक्त से स्तुति करें -Praise Goddess Durga with Devi-Suktam!


31. शनि की पूजा -क्या करें क्या न करें। The worship of God Shani, What to do & what not!

30. संस्कृत सूक्तों के प्रारम्भ में शीर्षक का क्या अर्थ है ?


25. भगवती स्तुति। .... देवी दुर्गा उमा, विश्वजननी रमा......

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24. कृष्ण -जन्माष्टमी -- परमात्मा के पूर्ण अवतार का समय। 

23. क्या सतयुग में पहाड़ों के पंख हुआ करते थे?

22. सावन में शिवपूजा। ..... Shiva Worship in Savan  

21. सद्गुरु की खोज ---- Search of a Satguru! True Guru!

20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा  ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
19. God does not like Ego i.e. अहंकार ! अभिमान ! घमंड !

18. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

17. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

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16. बाबा बासुकीनाथ का नचारी भजन -Baba Basukinath's "Nachari-Bhajan" !

15. शिवषडक्षर स्तोत्र (Shiva Shadakshar Stotra-The Prayer of Shiva related to Six letters)

14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

13. पवित्र शमी एवं मन्दार को वरदान की कथा (Shami patra and Mandar phool)

12. Daily Shiva Prayer - दैनिक शिव आराधना

11. Shiva_Manas_Puja (शिव मानस पूजा)

10. Morning Dhyana of Shiva (शिव प्रातः स्मरण) !

09. जप कैसे करें ?

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08. पूजा में अष्टक का महत्त्व ....Importance of eight-shloka- Prayer (Ashtak) !

07. संक्षिप्त लक्ष्मी पूजन विधि...! How to Worship Lakshmi by yourself ..!!

06. Common misbeliefs about Hindu Gods ... !!

05. Why should we worship Goddess "Durga" ... माँ दुर्गा की आराधना क्यों जरुरी है ?

04. Importance of 'Bilva Patra' in "Shiv-Pujan" & "Bilvastak"... शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व !!

03. Bhagwat path in short ..!! संक्षिप्त भागवत पाठ !!

02. What Lord Shiva likes .. ? भगवान शिव को क्या क्या प्रिय है ?

01. The Sun and the Earth are Gods we can see .....

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Thursday, April 1, 2021

राम कथा (अष्टश्लोकी – आठ श्लोकों में), श्रीरामाष्टकः

श्रीराम / Sri Ram

        धार्मिक ग्रंथों को यदि देखा जाय तो सबसे लोकप्रिय है रामकथा। महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण जो संस्कृत में है वह अन्य भाषाओं में रचित रामकथाओं का मूल है। सरल हिंदी अवधी में तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस तो रामकथाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके बारे में मैंने ब्लॉग पोस्ट "तुलसीदास – अनोखे रस लालित्य के कवि" में लिखा भी है । किंतु ये राम कथाएं चाहे रामायण हो या श्रीरामचरितमानस, लंबी हैं और रामभक्तों का एक ही दिन में इन्हें पढ़ पाना काफी कठिन है। उनकी इच्छा होती है कि संक्षिप्त में राम कथा लिखी जाती तो प्रतिदिन उसका पाठ करते। कुछ अधिक उत्साहित एक भक्त ने सिर्फ दो पंक्तियों में राम कथा कही वो भी भोजपुरी में । उन्होंने कहा,

राम जनमलन, वन में गईलन, 

रावण मारलन,   घरे अयलन।।

(अर्थात, श्रीराम ने जन्म लिया, वे वन को गये जहाँ उन्होंने रावण को मारा फिर वापस घर लौट गये)

     इसे सुनकर एकबारगी तो हँसी भी आती है किन्तु कुछ भोजपुरी भाषी गर्व से कहते हैं - "सबसे संक्षिप्त रामायण तो हमारी भोजपुरी में है।" खैर, जैसी भक्त की इच्छा और भाव। 

        जिनके पास पतली वाली हनुमान चालीसा की छोटी पुस्तिका है उन्होंने ध्यान दिया होगा चालीसा के आगे और भी कई चीजें दी गयी हैं, यथा संकटमोचक हनुमान अष्टक, बजरंग बाण, श्रीरामावतार, आरती, इत्यादि। इन्हीं में एक है - श्रीरामाष्टक। वस्तुतः संस्कृत में रचित इसके आठ श्लोकों में से पहले चार  श्लोकों में  विष्णु और उनके रामावतार और कृष्णावतार की स्तुति की गयी है। बाकी के चार श्लोकों में ही रामकथा संक्षिप्त में कही गयी है। रामभक्तों की सुविधा हेतु तुलसीदास जी रचित "रामाष्टक" नीचे दे रहा हूँ, इसे (यूट्यूब पर सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें):-

श्रीरामाष्टकः

हे  रामा  पुरुषोत्तमा नरहरे  नारायणा  केशवा। 

गोविंदा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।। 

हे कृष्ण   कमलापते  यदुपते  सीतापते श्रीपते। 

वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम।।


आदौ रामतपोवनादिगमनं  हत्वा मृगं कांचनम्।

वैदेहीहरणं   जटायुमरणं    सुग्रीवसंभाषणम् ।। 

बालीनिर्दलनं    समुद्रतरणं    लंकापुरीदाहनम्।

पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननं  एतद्धि  रामायणम् ।।

                

(अर्थ - हे पुरुषोत्तम राम, आप ही नरहरि, नारायण, केशव, गोविन्द, गरुड़ध्वज, गुणनिधि, दामोदर और माधव हैं और हे कृष्ण, आपही कमलापति, यदुपति, सीतापति और श्रीपति हैं अर्थात आपदोनों एक ही हैं। हे वैकुण्ठ के स्वामी, चराचर के मालिक, लक्ष्मीपति ! आप हमारी रक्षा करें, हमारा उद्धार करें।

      प्रारम्भ में श्रीराम तपोवन आदि वनों में गये, वहाँ उन्होंने सोने के हिरण को मारा। फिर सीता जी का हरण हुआ, पक्षीराज जटायु मारे गये, श्रीराम सुग्रीव से मिले, बाली का वध किया। (हनुमानजी द्वारा) समुद्र को लाँघ कर लंकापुरी जलाया गया। इसके पश्चात् श्रीराम ने रावण और कुम्भकरण का वध किया, यही रामायण है।

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14. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -१ (अश्विनीकुमार और नकुल- सहदेव का जन्म)

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