देव वैद्य अश्विनीकुमार द्वय |
अश्विनीकुमार द्वय ऐसे देवता हैं जिन्होंने असंख्य अद्भुत कार्य किये किन्तु साधारण जन को शायद ही उनके बारे में जानकारी हो।बहुत पहले जब बचपन में मेरे पितामह मुझे महाभारत की कहानियाँ सुनाया करते थे तब पांडवों के जन्म की कथा में इनका प्रसंग आया। पांडवों का जन्म पाँच मन्त्रों के द्वारा हुआ जो दुर्वासा मुनि ने अपनी सेवा से प्रसन्न हो कर कुंती को दिए थे, पर कुंती ने सिर्फ चार मन्त्र ही प्रयोग किये।उन चार में से भी एक मन्त्र का उपयोग कुंती ने प्रयोग के तौर पर विवाह के पूर्व ही सूर्यदेव का आवाह्न कर किया था, फलस्वरूप सूर्यदेव ने प्रकट होकर अपने अंश रुपी शिशु कर्ण कुंती को दिया था। लोक-लज्जा के भय से कुंती ने कर्ण का परित्याग कर दिया था। राजा पाण्डु से विवाह के पश्चात् कुंती को पुत्र प्राप्ति हेतु पुनः मन्त्रों का ही सहारा लेना पड़ा क्योंकि श्रापवश पाण्डु पत्नी का संसर्ग नहीं कर सकते थे। कुंती ने देवता धर्मराज (यमराज) का आवाहन कर युधिष्ठिर, पवनदेव का आवाहन कर भीम तथा देवराज इंद्र का आवाहन कर अर्जुन जैसे यशस्वी एवं पराक्रमी पुत्र प्राप्त किये। राजा पाण्डु की एक अन्य पत्नी थी माद्री जिसके पास पुत्र प्राप्ति हेतु कोई मन्त्र न था। कुंती को तीन पुत्र मिल गए पर माद्री को एक भी नहीं, इस कारण माद्री उदास रहने लगी। माद्री की उदासी का कारण जानने पर कुंती को उस पर दया आ गयी यद्यपि वह सौत थी। कुंती ने पांच में से चार मन्त्रों का उपयोग कर लिया था और अब एक मन्त्र ही बचे थे। बचा एक मन्त्र कुंती ने माद्री को दे दिया। माद्री के मन में अब भी यही बात थी कि कुंती को तीन पुत्र हो चुके मुझे तो एक मन्त्र से एक ही पुत्र होगा अर्थात उसके मन में पुत्रों की संख्या का ही गणित चल रहा था। तभी उसके मन में देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों का ध्यान आया। ये ऐसे देवता थे जो जुड़वां थे तथा हर कार्य हमेशा साथ ही करते थे। दो होते हुए भी ये एक देवता ही माने जाते थे। रूप में तो इनकी सुंदरता अद्वितीय थी। माद्री ने इनका ही आह्वान किया। देव अश्विनीकुमारों ने अपने अंश रुपी एक -एक पुत्र माद्री को दिया जो नकुल और सहदेव हुए।नकुल और सहदेव भी देव अश्विनीकुमारों की तरह ही सुंदरता में कोई सानी नहीं रखते थे। इस प्रकार चार मन्त्रों से पांच पांडवों का जन्म हुआ जिनमे से तीन कुंती पुत्र थे जबकि दो माद्री पुत्र।
कौन थे अश्विनीकुमार !
अश्विनीकुमार वास्तव में सूर्य पुत्र थे।भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा थी जो त्वष्टा की पुत्री थी। संज्ञा पतिव्रता थी और हर प्रकार से पति की सेवा में लगी रहती थी परन्तु भगवान भास्कर का प्रचंड तेज उससे सहन नहीं होता था। फिर भी उनके तेज को सहते हुए वह पतिसेवा में लगी रहती थी और सूर्यदेव को अपना कष्ट प्रकट नहीं करती थी। सूर्य से संज्ञा को तीन संतानें हुईं - मनु , यम और यमुना परन्तु तब भी उसमे सूर्य के तेज को सहन करने की शक्ति न आ पायी। संज्ञा ने तपस्या कर सहन शक्ति पाने की सोची किन्तु पतिसेवा छोड़ तपस्या में जाना भी अधर्म है। अतः संज्ञा ने अपनी छाया को पतिसेवा हेतु रखकर अश्वा (घोड़ी) का रूप धरकर उत्तरकुरु नामक स्थान पर तपस्या करने लगी ताकि उसके सतीत्व की भी रक्षा हो सके। जब सूर्यदेव को इस बात की जानकारी हुई तो उन्हें संज्ञा के प्रति दया आई और स्वयं अश्व (घोड़े) का रूप धर कर संज्ञा से मिले। तब उन्हें जुड़वाँ संतानें हुईं जिनका नाम दस्त्र एवं नासत्य है किन्तु उन्हें अश्विनीकुमार के नाम से ही जाना जाता है क्योंकि उनकी माता ने अश्विनी का रूप धरा था। वेदों के अनुसार इनके शरीर से सुनहरी आभा निकलती है और रूप अत्यंत आकर्षक है। इनका स्वाभाव अत्यंत परोपकारी है तथा ध्यान करने मात्र से ये संकट दूर करने उपासक के पास पहुँच जाते हैं।
असुर प्रायः ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करते थे तथा कभी कभी उन्हें जान से भी मार देते थे। ऋषि रेव, ऋषि वंदन, राजर्षि अंतक और राजर्षि भुज्यु को अलग अलग समय में असुरों ने हाथ -पैर बांधकर जल में फेंक दिया था। परन्तु इनके द्वारा स्मरण करने मात्र से अश्विनीकुमार ने आकर उनकी प्राण रक्षा की।
अश्विनीकुमारों के परोपकारों की कथा अगले ब्लॉग में पढ़ें। इस Link पर।
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20. देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अद्भुत कथा ....
(The great doctors of Gods-Ashwinikumars !). भाग - 4 (चिकित्सा के द्वारा चिकित्सा के द्वारा अंधों को दृष्टि प्रदान करना)
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